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डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (Democratic Republic of the Congo) के खेतों में इन दिनों एक हरियाली का नया जश्न है। अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (International Rice Research Institute) यानि IRRI ने वहां Food Security बढ़ाने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए चार नई चावल की किस्में (Four new rice varieties) पेश की हैं। टेंगेटेंगे, किरेरा बाना, मुबुसी और रुटेटे (Tengetenga, Kirera Bana, Mbusi and Rutete)। ये पहल CGIAR और लोकल स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकर की गई है, जिसका टार्गेट DRC, बुरुंडी और रवांडा में 12 लाख घरों तक पहुंचना है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि अफ्रीका के एक देश में चावल की नई किस्मों का भारत से क्या लेना-देना? जवाब है- बहुत कुछ। ये घटना भारत के लिए एक सुनहरे अवसर के दरवाज़े खोलती है।
भारत का चावल उत्पादन: एक शक्तिशाली आधार
बता दें कि भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा एक्सपोर्टर (India is the second largest producer and largest exporter of rice in the world) है। साल 2022-23 में, भारत ने 22 मिलियन टन से ज़्यादा चावल का निर्यात किया, जिससे लगभग 11 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा मिली। भारत के पास बासमती और नॉन-बासमती दोनों तरह के चावल की कई सारी किस्में हैं, और इसका निर्यात बाजार मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और साउथ-ईस्ट एशिया (Middle East, Africa and South-East Asia) तक फैला हुआ है।
अफ्रीका: भारत के निर्यात के लिए एक विशाल, अधूरा बाजार
यहीं पर IRRI की कांगो जैसी पहलें भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं। अफ्रीका चावल का एक बहुत बड़ा आयातक है। बढ़ती आबादी, शहरीकरण और खान-पान की आदतों में बदलाव के कारण महाद्वीप में चावल की मांग तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, प्रोडक्शन लोकल मांग को पूरा करने में असमर्थ है।
IRRI की ओर से नई किस्में पेश करना और किसानों को प्रशिक्षण देना, वास्तव में अफ्रीका में चावल की खपत और उत्पादन के पूरे Ecosystem को विकसित कर रहा है। जैसे-जैसे वहां के किसान प्रोडक्शन बढ़ाएंगे, उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ेगी और बाज़ार का विस्तार होगा।
भारत को कैसे फायदा मिल सकता है? (How Can India Benefit?)
निर्यात बाजार का विस्तार (Expanding the export market)
एक बार अफ्रीका में चावल की खपत का चलन और मजबूत हो जाएगा, तो भारत के लिए निर्यात के नए द्वार खुलेंगे। DRC, बुरुंडी और रवांडा जैसे देश भारतीय चावल के लिए नए बाजार बन सकते हैं। भारत सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले नॉन-बासमती चावल की आपूर्ति करने में सक्षम है।
तकनीकी सहयोग और निर्यात (Technical cooperation and export)
भारत ने चावल की खेती में अत्याधुनिक तकनीक और कृषि प्रबंधन में महारत हासिल की है। भारती कंपनियां और संस्थान (जैसे- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद / ICAR) इन अफ्रीकी देशों के साथ तकनीकी सहयोग कर सकते हैं। सिंचाई तकनीक, उन्नत बीज, और कटाई के बाद के प्रबंधन का भारतीय ज्ञान अफ्रीकी किसानों के लिए बहुमूल्य साबित होगा और भारत के लिए एक नया ‘नॉलेज एक्सपोर्ट’ सेक्टर बन सकता है।
बीज उद्योग के लिए अवसर (Opportunities for the seed industry)
IRRI द्वारा पेश की गई ये किस्में अफ्रीकी जलवायु और स्वाद के अनुरूप हैं। भारत की प्रमुख बीज कंपनियां (जैसे- कैरिलियन, नामधारी, महिको) IRRI के साथ साझेदारी करके इन विशिष्ट किस्मों के बीज का उत्पादन और निर्यात कर सकती हैं।
कृषि मशीनरी का निर्यात (Export of agricultural machinery)
छोटे और मीडिल लेवल की कृषि मशीनरी, जैसे पावर टिलर, छोटे थ्रेशर और मिलिंग मशीनें, जिनका भारत में बड़े पैमाने पर निर्माण होता है, अफ्रीका के उभरते हुए चावल किसानों की ज़रूरतों के लिए आदर्श हैं।
IRRI की कांगो जैसी परियोजनाएं केवल अफ्रीका के लिए ही नहीं, बल्कि The global rice economy के लिए एक कैटलिस्ट (Catalyst) का काम करती हैं। भारत के पास इससे फायदा उठाने के लिए उत्पादन क्षमता, तकनीकी ज्ञान और भू-राजनीतिक संबंध (Production capacity, technical knowledge and geopolitical relations) सभी मौजूद हैं। जरूरत है तो सिर्फ एक सोची-समझी रणनीति बनाने की, जिसमें सरकार, कृषि निर्यातक संगठनों (APEDA) और निजी क्षेत्र की कंपनियों का तालमेल शामिल हो। अफ्रीका में चावल की एक फसल बोई जा रही है, और भारत को उसकी फसल काटने का पूरा मौका मिल सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) क्या है?
ये एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण शोध संस्थान (रिसर्च सेंटर) है जो दुनिया भर में चावल के बारे में रीसर्च करता है।
इसका मेन टार्गेट है:
- दुनिया से गरीबी, भुखमरी और कुपोषण को कम करना।
- चावल खाने वाले और उगाने वाले लोगों की लाइफ बेहतर बनाना।
- ये देखना कि चावल की खेती पर्यावरण के लिए अच्छी हो और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बनी रहे।
इसकी स्थापना सन 1960 में हुई थी। इसे दो बड़े संगठनों, फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन ने फिलीपींस सरकार की मदद से बनाया था। ये एक गैर-लाभकारी (नॉन-प्रॉफिट) संस्थान है, यानी ये पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि लोगों की मदद के लिए काम करता है। इसका मुख्यालय फिलीपींस में है, लेकिन इसके ऑफिस एशिया और अफ्रीका के 17 देशों में फैले हुए हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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