Pashu Sakhi Yojana: पशु सखी योजना गांव की महिलाओं के लिए बन रही आत्मनिर्भरता की नई मिसाल

पशु सखी योजना से गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। यह योजना ग्रामीण जीवन में आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण का नया मार्ग दिखा रही है।

पशु सखी योजना Pashu Sakhi Yojana

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार लगातार आत्मनिर्भर भारत की दिशा में काम कर रही है। इस कड़ी में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) गांव-गांव तक पहुंचकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। इस मिशन के तहत शुरू की गई पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) ग्रामीण महिलाओं के जीवन में नया बदलाव लेकर आई है।

कानपुर देहात सहित देश के विभिन्न हिस्सों में इस योजना से जुड़कर महिलाएं अब न केवल पशुपालन का काम कर रही हैं, बल्कि अपने गांव की “डॉक्टर दीदी” भी कहलाने लगी हैं।

क्या है पशु सखी योजना?

पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को पशुपालन और कृषि से जुड़ी तकनीकी जानकारी देकर उन्हें प्रशिक्षित करना है। इन महिलाओं को पैरामेडिकल स्टाफ की तरह तैयार किया जाता है ताकि वे गांव-गांव जाकर पशुओं का इलाज, टीकाकरण और देखभाल कर सकें।

इसके अलावा पशु सखियां किसानों को कृषि संबंधी सलाह, किचन गार्डन और पोषण आहार की जानकारी भी देती हैं। यानी यह योजना केवल पशुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं को बहुआयामी ज्ञान देकर उनके लिए नए अवसर तैयार कर रही है।

Pashu Sakhi Yojana: पशु सखी योजना गांव की महिलाओं के लिए बन रही आत्मनिर्भरता की नई मिसाल

कानपुर में बदल रही तस्वीर

NRLM अधिकारी गंगाराम के अनुसार, कानपुर देहात के विभिन्न इलाकों में लगभग 40 महिलाएं पशु सखी और कृषि सखी के रूप में काम कर रही हैं। यह महिलाएं दूर-दराज के गांवों में जाकर सेवाएं देती हैं। पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) के तहत अब तक हजारों पशुओं का टीकाकरण और इलाज किया जा चुका है।

इन सेवाओं के बदले महिलाएं ग्रामीणों से शुल्क लेती हैं, जिससे उनकी आमदनी 25 से 30 हजार रुपये तक पहुंच रही है। इससे वे अपने परिवार का खर्च आसानी से उठा पा रही हैं और समाज में उनकी पहचान भी मज़बूत हुई है।

पशु सखियों की सफलता की कहानियां

ग्राम पंचायत लोधीपुर की एक महिला ने बताया कि पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) से जुड़ने के बाद उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। पहले उन्हें घर के बाहर काम करने का अनुभव नहीं था, लेकिन आज वे पीपीआर और एटीआर टीकाकरण, कीड़े मारने की दवा और गर्भवती पशुओं की देखभाल जैसे काम आत्मविश्वास से कर रही हैं।

गांव की महिलाएं कहती हैं कि पशु सखियों के आने से उनकी बकरियां और गायें अब ज़्यादा स्वस्थ रहने लगी हैं। पशुओं के इलाज और दवाइयों का खर्च भी कम हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब गांव की महिलाएं खुद 28 से 30 हजार रुपये तक कमा रही हैं और अपने परिवार की मज़बूती का आधार बन गई हैं।

प्रशिक्षण और सशक्तिकरण

पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) के तहत महिलाओं को जिला ग्राम विकास संस्थान से प्रशिक्षण दिया जाता है। सबसे पहले सरवनखेड़ा ब्लॉक में 40 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया, जो अब सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इसके बाद अमरौढ़ा और अकबरपुर ब्लॉक में भी 35-35 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है।

प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को पशुपालन, कृषि, पोषण, किचन गार्डन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जाती है। यह महिलाएं केवल इलाज तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि किसानों को बेहतर फ़सल उत्पादन के लिए खाद और पोषण आहार के उपयोग की सलाह भी देती हैं।

गांव की “डॉक्टर दीदी”

आज गांवों में पशु सखियां इतनी लोकप्रिय हो चुकी हैं कि लोग उन्हें “डॉक्टर दीदी” कहकर बुलाते हैं। ग्रामीण उनकी सलाह को मानते हैं और सम्मान देते हैं। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे समाज में एक नई पहचान बना रही हैं। यह योजना ख़ास इसलिए भी है क्योंकि इससे महिलाओं को रोज़गार के लिए शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ता। उन्हें अपने ही गांव में अवसर मिल रहे हैं और वे परिवार के साथ रहते हुए आत्मनिर्भर बन रही हैं।

क्या-क्या काम करती हैं पशु सखियां?

  • पशुओं का टीकाकरण और बीमारियों से बचाव
  • गर्भवती पशुओं की देखभाल
  • कीड़े मारने की दवा और इलाज
  • किसानों को कृषि संबंधी सलाह
  • घर-घर किचन गार्डन और पोषण आहार की जानकारी
  • ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं से जोड़ना

इन कामों के बदले उन्हें सेवा शुल्क मिलता है, जो उनकी स्थायी आय का साधन बन गया है।

आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम

पशु सखी योजना (Pashu Sakhi Yojana) ग्रामीण भारत के लिए किसी क्रांति से कम नहीं है। यह केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम नहीं बना रही, बल्कि उन्हें समाज में सम्मान और पहचान भी दिला रही है। मोदी सरकार का यह प्रयास न केवल आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा कर रहा है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव भी ला रहा है।

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