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“प्राकृतिक खेती में मुनाफ़ा बाद में आता है, पहले आता है भरोसा — मिट्टी पर, मेहनत पर और सेहत पर।”
आजकल जब ज़्यादातर किसान रासायनिक खादों और दवाइयों के भरोसे फ़सल उगाने को मजबूर हैं, तब कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्राकृतिक खेती के ज़रिए ज़मीन, और लोगो की सेहत का ध्यान रख रहें हैं।
ऐसे ही किसानों में से एक हैं हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िले की चौपाल ब्लॉक की केड़ी पंचायत के सूरत राम जी। शुरुआत में वे भी बाकी किसानों की तरह रासायनिक खेती ही करते थे। लेकिन कुछ सालों बाद उन्होंने महसूस किया कि इससे ना सिर्फ़ मिट्टी की ताक़त खत्म हो रही है, बल्कि फ़सलों का स्वाद और सेहत भी पहले जैसा नहीं रहा। इसी बीच उन्हें प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला — और साल 2018 में उन्होंने कुफरी में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के 6 दिन के प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया। वहां से लौटकर उन्होंने ठान लिया कि प्राकृतिक खेती करने का।
सेब की खेती में आया बदलाव
सूरत राम पहले रासायनिक खेती से सेब उगाते थे, लेकिन उन्हें हर साल रोगों और कीटों की बड़ी समस्या झेलनी पड़ती थी। ख़र्च ज़्यादा, मुनाफ़ा कम और मिट्टी थकी हुई सी लगती थी। जब उन्होंने प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों को अपनाया, तो सबसे पहले उन्होंने गाय के गोबर और मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत, दशपर्णी अर्क, अग्न्यास्त्र जैसी देसी तैयारियां बनाईं और खेतों में उपयोग शुरू किया।
वो बताते हैं,
“पहले मैं बीमार पौधों पर रासायनिक दवाइयां डालता था, पर अब जीवामृत और खट्टी लस्सी जैसी प्राकृतिक चीज़ें ही काफी होती हैं। न कोई ख़र्चा, न कोई नुक़सान। सेब के पेड़ अब ज़्यादा तंदुरुस्त हैं और फल का स्वाद भी पहले से बेहतर है।”
अब उनके बाग़ में लगभग 750 सेब के पौधे और 150 नाशपाती के पौधे हैं। सब कुछ अब प्राकृतिक खेती के ज़रिए उगाया जा रहा है।
मिट्टी और फ़सल दोनों स्वस्थ
सूरत राम कहते हैं कि प्राकृतिक खेती से न सिर्फ़ फ़सल का उत्पादन बढ़ा बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधर गई है। खेत की मिट्टी अब पहले से ज़्यादा भुरभुरी और उपजाऊ बन गई है।
वो बताते हैं,
“रासायनिक खेती में हर बार ख़र्च बढ़ता जा रहा था। लेकिन अब केवल देशी गाय का गोबर और मूत्र ही काफी है। कोई बाहरी दवा या खाद की जरूरत नहीं पड़ती।”
उनके खेतों में अब सेब के अलावा राजमा, मटर, गोभी, टमाटर, शिमला मिर्च और कद्दू जैसी फ़सलें भी प्राकृतिक खेती से उगाई जा रही हैं। इन सब्ज़ियों और फलों का स्वाद और गुणवत्ता बाज़ार में अलग ही पहचान बना रही है।
ख़र्च कम, मुनाफ़ा ज़्यादा
जहां पहले रासायनिक खेती में सूरत राम का ख़र्च लगभग ₹80,000 तक चला जाता था, वहीं अब प्राकृतिक खेती में उनका ख़र्च केवल ₹5,000 के आसपास रह गया है। सबसे खास बात — आमदनी पहले से कहीं ज़्यादा है। यानी, कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा — यही है प्राकृतिक खेती की असली ताकत।
सूरत राम कहते हैं,
“पहले दवाइयां और खाद खरीदने में ही सारा पैसा चला जाता था। अब वही पैसा बच रहा है। सेब की खेती में जो बचत हुई है, वो ही मेरे लिए सबसे बड़ा मुनाफ़ा है।”
किसानों को दे रहे नई दिशा
आज सूरत राम न सिर्फ़ खुद प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, बल्कि उन्होंने आसपास के किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया है। अब उनके मार्गदर्शन में करीब 20 किसान इस तरीके से खेती कर रहे हैं। सूरत राम ने अपने अनुभवों को कागज़ पर लिखकर गाँव-गाँव में बाँटा है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस खेती को समझ सकें।
वो कहते हैं, “हर किसान को एक बार जरूर प्राकृतिक खेती आजमानी चाहिए। यह न केवल लागत घटाती है, बल्कि शुद्ध और सुरक्षित भोजन भी देती है। सेब की खेती में इसका असर तो मैंने खुद देखा है।”
प्राकृतिक सेब का असली स्वाद
प्राकृतिक खेती से उगे सेब न सिर्फ़ दिखने में सुंदर हैं, बल्कि स्वाद और सुगंध में भी बेहतरीन हैं। इनमें कोई रासायनिक अंश नहीं होता, इसलिए इनकी बाज़ार में अच्छी मांग है। सूरत राम बताते हैं कि जो ग्राहक एक बार उनके सेब चख लेते हैं, वे हर साल उनसे खरीदने आते हैं।
वो मुस्कुराते हुए कहते हैं, “अब ग्राहक खुद कहते हैं कि आपके सेब में देसी स्वाद है। यही सुनकर दिल खुश हो जाता है।”
बेहतर मार्केटिंग से और बढ़ेगा फ़ायदा
सूरत राम मानते हैं कि अगर प्राकृतिक उपज के लिए सही मार्केटिंग सिस्टम बन जाए तो किसानों की आय और भी बढ़ सकती है।
वो कहते हैं, “हमारा देशी माल तो पहले से ही अच्छा है, बस उसे बेचने की सही व्यवस्था हो जाए तो किसान और भी आगे जा सकते हैं।”
निष्कर्ष
सूरत राम की कहानी इस बात का सबूत है कि अगर किसान मन से बदलाव लाना चाहे, तो खेती ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। प्राकृतिक खेती से न सिर्फ़ मिट्टी ज़िंदा होती है, बल्कि किसान की मेहनत भी सही मायने में फल देती है। आज सेब की खेती करने वाले कई किसान सूरत राम से प्रेरणा लेकर अपनी दिशा बदल रहे हैं। ये कहानी सिर्फ़ एक किसान की नहीं, बल्कि उन सभी किसानों की है जो धरती को फिर से ज़िंदा करने का सपना देख रहे हैं।
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