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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में योगी सरकार ने पराली जलाने की समस्या (Problem of stubble burning) से निपटने के लिए इस बार ‘Zero tolerance’ का रुख अपनाया है। प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा के निर्देशों के बाद अब मुख्य सचिव एस.पी. गोयल ने इस मुद्दे पर जिला प्रशासन की कमर कस दी है। साथ ही, Digital Crop Survey के नाम पर होने वाली किसी भी तरह की लापरवाही या फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने के लिए सख़्त चेतावनी जारी की है।
सैटेलाइट से हो रही है निगरानी
मुख्य सचिव एस.पी. गोयल ने साफ कहा है कि पराली और फसल अवशेष (stubble and crop residue) जलाने से पर्यावरण गंभीर रूप से प्रदूषित होता है। इसलिए, इस पर अंकुश लगाना वक्त की सबसे बड़ी मांग है। हैरान करने वाली बात ये है कि अब प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं पर सैटेलाइट के ज़रीये से नज़र रखी जा रही है। यानी, अब कोई भी किसान दूर-दराज़ के खेत में आग लगाएगा, तो उसकी तस्वीर सीधे प्रशासन के कम्प्यूटर स्क्रीन पर दिखाई देगी।
मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से इस संवेदनशील मुद्दे पर ध्यान देने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी संबंधित विभागों के साथ मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। सबसे अहम बात ये है कि किसानों को पराली प्रबंधन (stubble management) के Alternative measures के बारे में जागरूक किया जाए। जैसे कि पराली को जलाने की बजाय खेत में ही दबाकर खाद बनाना या उसे पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल करना। संवेदनशील माने जाने वाले जिलों में विशेष सतर्कता बरतने के भी निर्देश हैं।
डिजिटल क्रॉप सर्वे
पराली प्रबंधन (stubble management) के साथ-साथ योगी सरकार डिजिटल क्रॉप सर्वे अभियान को लेकर भी पूरी तरह सक्रिय है। इस अभियान का उद्देश्य खेत स्तर तक वास्तविक फसल की जानकारी जुटाना है, ताकि योजनाएं बनाने और मुआवजा देने में पारदर्शिता आ सके।
बैठक में मिले आंकड़ों के मुताबिक, डिजिटल क्रॉप सर्वे (Digital Crop Survey) के लिए प्रदेश के कुल 90,153 ग्रामों में से 87,203 ग्रामों (96.73 फीसदी) में सर्वे का काम शुरू हो चुका है। हालांकि, अभी केवल 20,257 ग्रामों (22.47फीसदी) में ही सर्वे का काम पूरा हुआ है। ये आंकड़ा दिखाता है कि अभी लक्ष्य तक पहुंचने में काफी वक्त है।
इस मामले में मीरजापुर जनपद 100 फीसदी सर्वे पूरा कर टॉप पर है। वहीं, एटा (97.72फीसदी), लखनऊ (97.57फीसदी), बाराबंकी (97.36फीसदी), कन्नौज (97.23फीसदी), खीरी (96.29फीसदी), औरैया (96.17फीसदी), बरेली (95.87फीसदी), बिजनौर (95.85फीसदी) और ललितपुर (94.37फीसदी) जैसे जनपदों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
मुख्य सचिव ने दी सख्त चेतावनी
मुख्य सचिव गोयल ने डिजिटल क्रॉप सर्वे को एक महत्वपूर्ण और प्राथमिकता वाला काम बताया। उन्होंने अधिकारियों को साफ निर्देश दिए कि सर्वे के काम में किसी भी तरह की लापरवाही, मनमानी या फर्जीवाड़ा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पराली जलाने का सबसे सीधा प्रभाव वायु प्रदूषण
पराली जलाने का सबसे सीधा और दिखने वाला प्रभाव वायु प्रदूषण है। धुएं में कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें (Smoke contains toxic gases such as carbon monoxide, carbon dioxide, nitrous oxide, and sulfur dioxide) निकलती हैं। यही गैसें सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तरी भारत में जहरीली धुंध का मुख्य कारण बनती हैं। World Health Organization के अनुसार, वायु प्रदूषण से हर साल लाखों लोगों की अकाल मौत हो जाती है।
मिट्टी की शक्ति को छीनना
किसानों को लगता है कि पराली जलाने से खेत साफ हो जाते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि इससे मिट्टी को काफी ज़्यादा नुकसान हो जाता है। आग के ताप से मिट्टी में मौजूद फायदे देने वाले सूक्ष्मजीव और केंचुए मर जाते हैं। ये सूक्ष्मजीव मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शोध बताते हैं कि लगातार पराली जलाने से मिट्टी के जैविक पदार्थ 30-40 फीसदी तक कम हो जाते हैं।
पोषक तत्वों का विनाश
पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सल्फर (Nitrogen, phosphorus, potassium and sulfur) जैसे ज़रूरी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी बंजर होने लगती है और किसानों को अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है और मिट्टी की सेहत और भी ख़राब होती है।
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