Natural Farming: प्राकृतिक खेती से तिलक राज की सेब की खेती बनी नई मिसाल

हिमाचल प्रदेश के रहने वाले तिलक राज ने प्राकृतिक खेती अपनाकर सेब की खेती में नई पहचान बनाई, कम लागत में आमदनी दोगुनी की।

प्राकृतिक खेती Natural farming

हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िले के नारकंडा क्षेत्र की मोगड़ा पंचायत के किसान तिलक राज आज अपने इलाके में एक प्रेरणादायक उदाहरण बन चुके हैं। कभी सरकारी स्कूल में शिक्षक रहे तिलक राज ने साल 2016 में एक डेयरी ट्रेनिंग के दौरान पहली बार प्राकृतिक खेती के बारे में सुना। उसी वक्त उनके मन में कुछ नया करने की इच्छा जगी और उन्होंने रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती करने का निर्णय लिया।

नई राह की शुरुआत

डेयरी ट्रेनिंग के दौरान एक वैज्ञानिक ने तिलक राज को गुरुकुल कुरुक्षेत्र जाने की सलाह दी ताकि वे इस नई खेती विधि को गहराई से समझ सकें। वहां उन्होंने गाय के मूत्र और गोबर से तैयार घोलों के बारे में सीखा और धीरे-धीरे खुद प्रयोग करने लगे। शुरुआत में उन्होंने अपनी बागवानी में केवल 20 सेब के पौधों और कुछ सब्ज़ियों पर यह प्रयोग किया। लेकिन जब परिणाम उम्मीद से बेहतर निकले, तो उन्होंने अपनी पूरी 12 बीघा सेब की खेती को प्राकृतिक विधि से करने का फैसला किया।

परंपरागत ज्ञान से मिली ताकत

तिलक राज के पास पहले से ही पहाड़ी नस्ल की देशी गायें थीं, जिनसे जीवामृत, घनजीवामृत, सप्तधन्यांकुर अर्क जैसे प्राकृतिक इनपुट तैयार करना उनके लिए आसान हो गया। इन घोलों ने सेब के पौधों की सेहत को बेहतर किया, मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाई और फलों की चमक, आकार और स्वाद में जबरदस्त सुधार लाया।

उन्होंने बताया –

“पहले जब मैं केमिकल स्प्रे करता था तो पेड़ों पर रोग बढ़ते जाते थे, और ख़र्च भी बहुत होता था। लेकिन प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद रोग कम हुए और ख़र्च आधे से भी कम रह गया।”

सूखे और पानी की कमी में भी बेहतरीन परिणाम

एक बार तिलक राज ने मटर की बुवाई प्राकृतिक तरीके से की और उनके पड़ोसी ने वही फ़सल रासायनिक तरीके से। बारिश कम होने के बावजूद तिलक राज की फ़सल हरी-भरी रही जबकि पड़ोसी की फ़सल सूख गई।

“मैं कह सकता हूँ कि यह खेती सूखे और पानी की कमी वाले इलाकों में भी सबसे सफल तरीका है,” तिलक राज मुस्कुराते हुए कहते हैं।

रासायनिक खेती में घाटा, प्राकृतिक खेती से बचत

तिलक राज बताते हैं कि रासायनिक खेती में ख़र्च बहुत होता है, लेकिन उत्पादन संतोषजनक नहीं रहता। वर्ष 2020 में जब मौसम प्रतिकूल रहा, तब अधिकांश किसानों को भारी नुकसान हुआ। लेकिन तिलक राज को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई थी।

“प्राकृतिक खेती में बाहर से इनपुट खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मैं अपने खेत और गाय से ही सब तैयार करता हूँ। इससे रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर होने वाला ख़र्च पूरी तरह बच गया और उत्पादन भी अच्छा रहा।”

सेब की खेती में बढ़ी आमदनी

पहले जहाँ रासायनिक खेती में ₹20,000 तक का ख़र्च आता था, वहीं अब प्राकृतिक खेती में यह ख़र्च घटकर ₹2,500 रह गया है और आय भी बढ़ गई है। तिलक राज के अनुसार, “अब सेब का आकार बड़ा है, स्वाद मीठा है और बाज़ार में खरीदार खुद मेरे बगीचे तक आने लगे हैं।” आज उनके बगीचे में सेब के साथ-साथ मटर, राजमाश, गेहूं, जौ, लहसुन और बैंगन जैसी फ़सलें भी लहलहा रही हैं।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती से तिलक राज की सेब की खेती बनी नई मिसाल

रासायनिक खेती छोड़ने की प्रेरणा

तिलक राज ने बताया कि रासायनिक स्प्रे के कारण पेड़ों पर नई बीमारियाँ आती थीं और ख़र्च भी लगातार बढ़ता जा रहा था। इसलिए उन्होंने गाय के गोबर और गोमूत्र से बने देसी घोल और अन्य प्राकृतिक तैयारियाँ (जैसे जीवामृत, घनजीवामृत, खट्टी लस्सी) बनाकर इस्तेमाल करना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने छोटे पैच पर प्रयोग किया और जब परिणाम सकारात्मक दिखे तो उन्होंने पूरे क्षेत्र में यही तरीका अपनाया।

गांव में असर और दूसरों तक जानकारी पहुंचाना

तिलक राज के अनुभवों से प्रेरित होकर कई किसान उनके पास आने लगे। उनके बगीचे की स्थिति और बेहतर उत्पादन देखकर वे प्रभावित हुए।

उनकी उपज की गुणवत्ता बेहतर होने के कारण खरीदारों की दिलचस्पी भी बढ़ी और बाज़ार तक उनका दायरा फैलने लगा। आगे चलकर तिलक राज ने अपने अनुभवों और सीख को साझा करते हुए अन्य किसानों को भी प्रेरित करना शुरू किया — यह दिखाकर कि प्राकृतिक खेती न सिर्फ़ मुनाफ़े का जरिया है, बल्कि ज़मीन और स्वास्थ्य के लिए भी फ़ायदेमंद रास्ता है।

आंकड़ों में सफलता

  • कुल ज़मीन: 20 बीघा
  • प्राकृतिक खेती के अंतर्गत: 12 बीघा
  • मुख्य फ़सलें: सेब (Jeromine, Red Velox, King Roat, Tiderman, Gale Gala), मटर, गेहूं, राजमाश, जौ, लहसुन, बैंगन, आलू, प्लम, पीच
  • रासायनिक खेती में ख़र्च: ₹20,000
  • प्राकृतिक खेती में ख़र्च: ₹2,500

निष्कर्ष

तिलक राज की कहानी बताती है कि अगर लगन और समझदारी के साथ प्राकृतिक खेती की जाए तो किसी भी इलाके में सफलता पाई जा सकती है। उन्होंने सेब की खेती को पर्यावरण के साथ जोड़कर यह साबित कर दिया कि मेहनत और सच्ची सोच से खेती भी जीवन बदल सकती है। आज वे न सिर्फ़ एक सफल किसान हैं, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा हैं जो मिट्टी से जुड़कर आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं।

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