हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह ने अपनाई प्राकृतिक खेती, पाई बड़ी सफलता

नरेंद्र सिंह ने प्राकृतिक खेती से कम ख़र्च और अधिक आमदनी पाई उनकी कहानी किसानों को नई दिशा और प्रेरणा देती है।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

खेती हमेशा से मेहनत, धैर्य और समर्पण का काम रहा है। यह सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जिसमें किसान दिन-रात मेहनत करता है, मौसम की मार झेलता है, और फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ता। लेकिन जब बात प्राकृतिक खेती की आती है, तो यह किसानों के लिए उम्मीद की एक नई किरण बन जाती है। रासायनिक खादों और कीटनाशकों से दूर, यह खेती मिट्टी, पानी और पर्यावरण – तीनों को बचाने का काम करती है।

हिमाचल प्रदेश के सुनेट पंचायत क्षेत्र के किसान नरेंद्र सिंह भी उन्हीं किसानों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी सोच और मेहनत से प्राकृतिक खेती को अपनाकर एक मिसाल कायम की है। नरेंद्र बताते हैं कि शुरू में जब वे खेतों में जैविक और अन्य पारंपरिक तरीके अपनाते थे, तो आसपास के लोग उन्हें देखकर हँसी उड़ाते थे। उन्हें ‘पुराना तरीका’ कहकर टोकते थे, और कई बार तो खुद नरेंद्र को भी यह शक होता था कि क्या यह तरीका सफल हो पाएगा या नहीं।

लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। धैर्य रखा, अपने काम पर भरोसा किया। धीरे-धीरे जब खेतों में अच्छे परिणाम दिखने लगे, फ़सल की गुणवत्ता बढ़ी, मिट्टी की उर्वरता लौटी – तो उनका विश्वास और भी गहरा हो गया। अब वही लोग, जो कभी मज़ाक उड़ाते थे, आज उनके पास आकर प्राकृतिक खेती के फ़ायदे पूछते हैं।

प्रशिक्षण से मिली नई दिशा

साल 2018 में नरेंद्र सिंह ने पालमपुर में पद्म श्री सुभाष पालेकर जी से प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण लिया। यह प्रशिक्षण उनके लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 10 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर से लौटने के बाद उन्होंने घर पर ही पहाड़ी गाय खरीदी और उसके साथ अपने खेतों में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। इस प्रशिक्षण ने न केवल उनके ज्ञान को बढ़ाया बल्कि खेती के प्रति उनका उत्साह भी दोगुना कर दिया। अच्छे परिणामों ने उन्हें प्रेरित किया और उन्होंने धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ाना शुरू किया।

प्राकृतिक खेती में परिवार का सहयोग

नरेंद्र सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका परिवार है। उनका पूरा परिवार आज प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने में उनके साथ खड़ा है। वे मानते हैं कि बिना परिवार के सहयोग के इस तरह का बदलाव संभव नहीं है। नरेंद्र का कहना है कि कीटनाशक और जहरीली खादों की वजह से पहले लोग खेतों से दूर भागते थे। बच्चे भी खेतों में खेलने नहीं आते थे। लेकिन प्राकृतिक खेती ने इस स्थिति को पूरी तरह बदल दिया। अब परिवार के लोग ही नहीं बल्कि आसपास के गांव के बच्चे भी खेतों में आने लगे हैं। यह बदलाव नरेंद्र के लिए सबसे बड़ी सफलता है।

सब्ज़ियों और अनाज से बेहतर आमदनी

नरेंद्र ने शुरुआत में अपने खेतों में मौसमी सब्ज़ियां और धान-गेहूं की फ़सल लगाई। धीरे-धीरे उन्होंने सरसों, मक्की और गोभी जैसी फ़सलें भी शामिल कीं। प्राकृतिक खेती से पैदा हुई सब्ज़ियों और अनाज का स्वाद इतना अच्छा और गुणकारी था कि लोग खुद उनके पास आकर खरीदने लगे। आस-पास के गांव के लोग उनके ग्राहक बने और अब नरेंद्र को मंडी तक जाने की ज़रूरत नहीं रहती। उनकी सब्ज़ियां और अनाज पहले से ही बिक जाते हैं।

ख़र्च कम, मुनाफ़ा ज़्यादा

अगर हम आंकड़ों की बात करें तो नरेंद्र सिंह की प्राकृतिक खेती ने उन्हें आर्थिक रूप से भी मज़बूत किया।

  • कुल ज़मीन – 16 कनाल (8 बीघा)
  • प्राकृतिक खेती के अधीन – 15 कनाल (7.5 बीघा)
  • फ़सलें – सरसों, मक्की, गेहूं, मटर, गोभी

 रासायनिक खेती – ख़र्च 40,000 रुपये
प्राकृतिक खेती – ख़र्च 6,000 रुपये

प्राकृतिक खेती में ख़र्च बहुत कम और आमदनी कहीं ज़्यादा है। यही कारण है कि नरेंद्र आज इस विधि के बड़े समर्थक बन गए हैं।

किसानों में जागरूकता फैलाने का काम

नरेंद्र सिंह सिर्फ़ अपने खेतों तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने अन्य किसानों को भी प्रेरित करने का काम शुरू किया। वे प्राकृतिक खेती के फ़ायदों के बारे में बताते हैं और किसानों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अब तक वे 1,000 से ज़्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक कर चुके हैं। उनकी ये कोशिश किसानों के बीच नई सोच पैदा कर रही है।

हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह ने अपनाई प्राकृतिक खेती, पाई बड़ी सफलता

भविष्य की योजना

नरेंद्र सिंह की योजना है कि वे आने वाले समय में अपने क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को और बढ़ावा दें। वे बागवानी में भी प्राकृतिक खेती से प्रयोग करना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित और सेहतमंद खेती का विकल्प मिल सके।

निष्कर्ष

किसान नरेंद्र सिंह की कहानी हमें ये सिखाती है कि अगर विश्वास और मेहनत हो तो प्राकृतिक खेती से न सिर्फ़ अच्छी आमदनी बल्कि समाज में सम्मान भी पाया जा सकता है। यह खेती आज हर किसान के लिए उम्मीद की एक किरण है।

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