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आज देशभर में किसान नई–नई खेती की विधियां अपनाकर सफलता के नए कीर्तिमान बना रहे हैं। परंपरागत खेती से हटकर अब किसान जैविक, प्राकृतिक और तकनीकी सहायता से खेती में नए प्रयोग कर रहे हैं, जिससे उन्हें न सिर्फ़ अच्छा उत्पादन मिल रहा है, बल्कि मुनाफ़ा भी बढ़ रहा है। इन्हीं मेहनती और प्रेरणादायक किसानों में से एक नाम है हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ विकास खंड के रहने वाले अशोक कुमार का। अशोक कुमार उन किसानों में से हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, सोच और नए तरीके अपनाकर खेती को नई दिशा दी है।
कभी कपड़ों की दुकान में करने वाले अशोक आज अपनी मेहनत और लगन से प्राकृतिक खेती की मिसाल बने हुए हैं। व्यापार छोड़कर खेती में कदम रखना आसान फैसला नहीं था, लेकिन अशोक ने हार नहीं मानी। उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया और अब उनकी मेहनत रंग ला रही है। आज वे न सिर्फ़ खुद सफल हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं।
दुकान से खेत तक का सफ़र
अशोक कुमार पहले कपड़ों की दुकान में काम करते थे और उनकी नौकरी ठीक–ठाक चल रही थी। आमदनी भी हो रही थी, लेकिन मन कहीं और था। खेतों की हरियाली, मिट्टी की खुशबू और किसानी से जुड़ी यादें उन्हें हमेशा खींचती थीं। बचपन से ही उनका लगाव खेती से था, और यही जुड़ाव उन्हें वापस खेतों की ओर ले आया।
कपड़ों की दुकान छोड़कर खेती में आना आसान नहीं था, लेकिन अशोक ने ठान लिया था कि वे अपनी असली पहचान खेती में ही बनाएँगे। शुरुआत में उन्होंने परंपरागत तरीके से यानी रासायनिक खादों और कीटनाशकों के सहारे खेती शुरू की। फ़सल तो हुई, लेकिन संतोष नहीं मिला। धीरे–धीरे उन्हें यह समझ आया कि रासायनिक खेती न तो स्वास्थ्य के लिए सही है और न ही मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती है। यहीं से उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ आया। उन्होंने तय कर लिया कि अब से वे सिर्फ़ प्राकृतिक खेती ही करेंगे — बिना किसी रसायन, बिना ज़हर के। अब उनका सपना था ऐसी खेती करना, जिससे ज़मीन भी स्वस्थ रहे और इंसान भी।
प्रशिक्षण से मिली नई दिशा
साल 2019 में पालमुपर में आयोजित सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के 6 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में अशोक कुमार ने हिस्सा लिया। इस प्रशिक्षण ने उनकी सोच को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने महसूस किया कि गाय का गोबर और गोमूत्र, स्थानीय जैविक घोल और बीज उपचार जैसी परंपरागत विधियां ही खेती को टिकाऊ और लाभकारी बना सकती हैं। शिविर से लौटकर उन्होंने अपने खेत को प्रयोगशाला बना दिया और हर दिन कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ते गए।
पहली कोशिश और बढ़ता आत्मविश्वास
अशोक कुमार ने शुरुआत में करीब 7 कनाल (लगभग 3.5 बीघा) ज़मीन पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग किया। पहले ही सीजन में उन्हें अच्छे परिणाम मिले। उत्पादन भी अच्छा रहा और ख़र्च भी बहुत कम आया। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने पूरे खेत को प्राकृतिक खेती के तहत ले लिया।
लाल चावल की ख़ास पैदावार
अशोक कुमार का सबसे बड़ा प्रयोग था – लाल चावल की खेती।
- सिर्फ़ 1 किलो बीज से उन्होंने 2–5 क्विंटल तक लाल चावल की पैदावार ली।
- लाल चावल का स्वाद और पौष्टिकता अलग ही है।
- बाज़ार में इसकी अच्छी मांग है। जहां साधारण चावल 30 रुपये किलो बिकता है, वहीं लाल चावल 50 रुपये किलो तक आसानी से बिक जाता है।
इससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ी बल्कि गांव–गांव में उनकी पहचान भी बन गई। लोग अब उनसे लाल चावल के बीज और खेती के तरीके जानने आते हैं।
विविध फ़सलें और आत्मनिर्भरता
अशोक कुमार केवल धान पर निर्भर नहीं हैं। वे अपने खेतों में गेहूं, मक्का, मटर, गोभी, आलू और हरी सब्ज़ियां भी उगाते हैं। परिवार की ज़रूरत की लगभग सारी अनाज–सब्ज़ियां खेत से ही मिल जाती हैं।
वे कहते हैं –
“आज मेरे परिवार को बाज़ार से अनाज खरीदने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। हम वही खाते हैं जो खेत से निकलता है और यही सबसे बड़ी संतुष्टि है।”
ख़र्च और आमदनी का अंतर
अशोक कुमार बताते हैं कि रासायनिक खेती में ख़र्च ज़्यादा और मुनाफ़ा कम था। रासायनिक खेती में एक सीजन का ख़र्च काफी अधिक था, जबकि आमदनी सीमित थी। वहीं, प्राकृतिक खेती में ख़र्च काफी कम था, लेकिन आमदनी अपेक्षाकृत बहुत ज़्यादा हो गई। इससे पता चलता है कि प्राकृतिक खेती से कम लागत में ज़्यादा लाभ संभव है।
बीज संरक्षण का प्रयास
अशोक कुमार का मानना है कि खेती तभी टिकाऊ बन सकती है जब किसान अपने बीज खुद तैयार करें। इसी सोच के तहत उन्होंने लाल चावल सहित कई स्थानीय फ़सलों के बीज संरक्षित किए हैं। वे न केवल खुद इन बीजों का इस्तेमाल करते हैं बल्कि आसपास के किसानों को भी बांटते हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग प्राकृतिक खेती की राह पर बढ़ सकें।
पहचान और प्रेरणा
आज अशोक कुमार का नाम मंडी ज़िले ही नहीं, बल्कि आसपास के कई इलाकों में लिया जाता है। वे गांव–गांव जाकर किसानों को बताते हैं कि किस तरह से प्राकृतिक खेती कम लागत में भी बड़े नतीजे दे सकती है।
उनका कहना है –
“मेरे अनुभव में न्यूनतम लागत में बंपर मुनाफ़ा देने वाली एक ही खेती है – प्राकृतिक खेती।”
निष्कर्ष
अशोक कुमार की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर इच्छाशक्ति मज़बूत हो और सही दिशा मिले तो खेती से नई उम्मीदें और संभावनाएँ पैदा की जा सकती हैं। प्राकृतिक खेती ने न केवल उनकी आमदनी बढ़ाई बल्कि मिट्टी की सेहत सुधारी, फ़सलों की गुणवत्ता बढ़ाई और समाज में उन्हें सम्मान दिलाया। आज अशोक कुमार जैसे किसान यह साबित कर रहे हैं कि खेती केवल गुज़ारे का साधन नहीं, बल्कि गर्व और समृद्धि का रास्ता भी बन सकती है।
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