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खेती-किसानी की दुनिया में हम ज़्यादातर पुरुष किसानों की कहानियां ही सुनते आए हैं। लेकिन अब समय बदल रहा है और महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। आज हम एक ऐसी ही महिला किसान की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने खेती को केवल एक काम नहीं, बल्कि अपने जीवन का मिशन बना लिया है। ये कहानी है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा विकासखंड की रहने वाली मनजीत कौर जी की। उन्होंने न केवल प्राकृतिक खेती को अपनाया, बल्कि अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दिया कि सही तरीका और सोच हो तो खेती में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
मनजीत कौर ने अपनी ज़मीन को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त कर प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया। इससे उनकी ज़मीन की उपज बढ़ी और मिट्टी भी पहले से ज़्यादा उपजाऊ हो गई। आज वे न सिर्फ़ खुद आत्मनिर्भर बनी हैं, बल्कि आसपास के किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। उनकी मेहनत और सोच ने उन्हें इलाके की एक मिसाल बना दिया है।
प्राकृतिक खेती की शुरुआत और चुनौतियां
मनजीत कौर ने खेती में कदम रखा तो शुरुआत आसान नहीं थी। उन्हें गांव के लोग ताने देते थे कि ये खेती कामयाब नहीं होगी। परिवार की ज़िम्मेदारियां और सीमित साधनों के बीच उन्होंने खेती की नई राह खोजनी शुरू की। पहले उनकी संतरे की बाग़वानी में पैदावार कम होती थी और उत्पादन लागत भी ज़्यादा थी। कई बार तो पूरा बाग़ान काट देने का विचार भी मन में आता। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और खेत-खलिहान में प्राकृतिक खेती को अपनाने का निर्णय लिया।
प्राकृतिक खेती से मिली नई राह
मनजीत कौर ने बताया कि प्राकृतिक खेती से उनकी बाग़वानी ने फिर से रौनक पकड़ ली। पहले जहां संतरे पेड़ों से गिर जाते थे, वहीं अब बेहतर देखभाल और देसी तरीकों से अच्छी क्वालिटी के फल मिलने लगे। उनके अनुसार, प्राकृतिक खेती में न ख़र्च ज़्यादा होता है और न ही ज़मीन को नुक़सान पहुंचता है। मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फ़सल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। यही कारण है कि उनके संतरे का ठेका अब 60 हज़ार रुपये तक पहुंच गया है, जबकि पहले यह 10 हज़ार रुपये तक ही मिलता था।
32 कनाल ज़मीन पर खेती का प्रयोग
आज मनजीत कौर 32 कनाल (लगभग 16 बीघा) ज़मीन पर खेती कर रही हैं, जिसमें पूरी ज़मीन प्राकृतिक खेती के अंतर्गत है। यहां वह संतरा, सरसों, गेहूं, मक्की, टमाटर और मौसमी सब्ज़ियां उगा रही हैं। साधारण खेती में जहां उनका ख़र्च 15,000 रुपये तक आता था वहीं प्राकृतिक खेती में ख़र्च घटकर 6,000 रुपये रह गया और आमदनी भी बढ़ गई। यानि ख़र्च कम और मुनाफ़ा पहले से ज़्यादा।
गांव और समाज के लिए प्रेरणा
मनजीत कौर न केवल खुद खेती कर रही हैं बल्कि गांव के महिला समूह को भी इस खेती से जोड़ रही हैं। वह अब तक 28 से ज़्यादा प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर चुकी हैं और आसपास की महिलाओं को भी प्राकृतिक खेती की जानकारी दे रही हैं।
उनका कहना है –
“मेरे बाग़ान घर से दूर हैं, इसलिए मैं स्कूटी से जीवामृत और अन्य सामग्री वहां लेकर जाती हूँ। रास्ते में लोग मुझसे इस खेती के बारे में पूछते हैं और कई बार बाग़ान देखने भी आते हैं।”
इस तरह वह न सिर्फ़ अपनी खेती सुधार रही हैं बल्कि समाज में भी जागरूकता फैला रही हैं।
सरकारी सहयोग और प्रशिक्षण
मनजीत कौर को खुशहाल किसान योजना के तहत प्रशिक्षक विष्णु कुमार से प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग मिली। आज वह उस ज्ञान को अपने खेतों में अपनाकर आगे बांट भी रही हैं। उनके खेत अब आसपास के किसानों के लिए एक प्रयोगशाला बन गए हैं, जहां लोग आकर सीखते हैं कि किस तरह बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक के भी अच्छी खेती की जा सकती है।
निष्कर्ष
मनजीत कौर की ये कहानी इस बात का सबूत है कि अगर हिम्मत और लगन हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। प्राकृतिक खेती ने न सिर्फ़ उनकी आर्थिक स्थिति सुधारी बल्कि उन्हें समाज में एक अलग पहचान भी दिलाई। आज उनका नाम उन किसानों की सूची में शामिल है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बनते हैं। उनकी मेहनत और लगन से यह साबित होता है कि प्राकृतिक खेती भविष्य का सही रास्ता है, जिससे न केवल ज़मीन की उर्वरता बनी रहती है बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ती है।
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