अलीगढ़ में कपास की खेती का बढ़ता रुझान, रक़बा 200 हेक्टेयर बढ़ा

अलीगढ़ में कपास की खेती का रक़बा 200 हेक्टेयर बढ़ा। बढ़ते दामों और मुनाफ़े से किसान पारंपरिक फ़सलों से हटकर कपास की ओर बढ़ रहे हैं।

कपास की खेती cotton farming

अलीगढ़ जिले के किसानों में इस बार पारंपरिक फ़सलों की बजाय कपास की खेती का उत्साह देखने को मिल रहा है। गभाना, चंडौस और बरौली जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर कपास की बुवाई की गई है। बढ़े हुए दामों और अच्छी पैदावार की उम्मीद में किसान पारंपरिक फ़सलों से हटकर कपास को अपना रहे हैं। इस साल जिले में कपास का रक़बा पिछले वर्ष की तुलना में 200 हेक्टेयर बढ़ गया है।

किसानों का रुझान पारंपरिक खेती से हटकर कपास की ओर

अब तक अलीगढ़ में धान, गेहूं, मक्का और बाजरा जैसी फ़सलें ही मुख्य रूप से ली जाती थीं। लेकिन इस बार किसानों ने कपास की खेती को अपनाया है। गभाना क्षेत्र के पैराई गांव के किसानों ने पहली बार कपास की बुवाई की है और शुरुआती दिनों में ही उन्हें अच्छी क़ीमत मिलने लगी है। यही कारण है कि कपास की मांग और खेती का रक़बा लगातार बढ़ रहा है।

जिला कृषि विभाग के अनुसार, पिछले साल जहां कपास का रक़बा 6478 हेक्टेयर था, वहीं इस वर्ष यह बढ़कर 6678 हेक्टेयर हो गया है। किसानों का कहना है कि बाज़ार में कपास की बढ़ती क़ीमत ने उनके उत्साह को और बढ़ा दिया है।

मंडियों में पहुंची देसी और अमेरिकी कपास

सर्दियों की आहट के साथ ही अलीगढ़ की मंडियों में अब देसी और अमेरिकी दो तरह की कपास की आवक शुरू हो गई है। मंडियों से इस कपास को जिले की स्थानीय मिलों में भेजा जा रहा है, जहां इसे प्रोसेस कर रूई में बदला जाएगा। यही रूई आगे चलकर वस्त्र उद्योग के लिए कच्चा माल बनती है।

पैराई गांव के किसान करनपाल सिंह ने बताया कि इस बार उन्होंने लगभग 20 हेक्टेयर में कपास बोई है और शुरुआती दौर में ही उन्हें फ़सल के अच्छे दाम मिल रहे हैं। वहीं बलवंत नगलिया के श्योराज सिंह का कहना है कि इस बार पैदावार अच्छी हुई है और लागत से कहीं अधिक दाम मिलने से किसानों का मुनाफ़ा बढ़ा है।

कपास की खेती से बढ़ी किसानों की आय

कपास की खेती किसानों के लिए लाभदायक सौदा साबित हो रही है। अलीगढ़ के उप कृषि निदेशक अरुण कुमार चौधरी ने बताया, “इस बार जिले में किसानों ने बड़ी संख्या में कपास की खेती की है। इससे न केवल रक़बा बढ़ा है बल्कि फ़सल की क़ीमत भी बढ़ी है, जिससे किसानों को सीधा फ़ायदा हुआ है।”

कपास की खेती का आर्थिक महत्व

कपास विश्व और भारत की एक प्रमुख रेशेदार और व्यापारिक फ़सल है। यह न केवल देश के वस्त्र उद्योग को कच्चा माल उपलब्ध कराती है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका का साधन भी है। भारत में कपास की खेती से लगभग 60 लाख किसानों को रोज़गार मिलता है और 40 से 50 लाख लोग कपास के व्यापार से जुड़े हैं। पानी की कम खपत और अच्छी क़ीमत के कारण यह फ़सल तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है।

अलीगढ़ में कपास की खेती का बढ़ता रुझान, रक़बा 200 हेक्टेयर बढ़ा

किन राज्यों में होती है कपास की खेती?

भारत में कपास की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर होती है। उत्तर प्रदेश में भी अब इसका रक़बा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अलीगढ़ इसका एक अच्छा उदाहरण बनता जा रहा है, जहां पारंपरिक खेती से हटकर किसान अब नई फ़सलें आजमा रहे हैं।

कपास की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

कपास की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, बशर्ते पीएच मान 6 से 8 के बीच हो। गहरी, उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी कपास की पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जल जमाव वाली ज़मीन इस फ़सल के लिए ठीक नहीं होती। बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी की गहराई 20–25 सेंटीमीटर से कम नहीं होनी चाहिए।

किसान बोले—कपास बना आत्मनिर्भरता का आधार

कई किसानों ने बताया कि कपास की खेती ने उनकी आर्थिक स्थिति को मज़बूती दी है। कम लागत, उचित सिंचाई और बेहतर बाज़ार मूल्य के कारण किसान इसे अधिक क्षेत्र में उगाने की योजना बना रहे हैं। सरकार और कृषि विभाग की ओर से समय-समय पर तकनीकी सलाह और प्रशिक्षण भी किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है।

भविष्य में कपास की खेती का उज्ज्वल रास्ता

कपास की खेती अलीगढ़ जैसे जिलों में तेज़ी से पैर पसार रही है। बढ़ते रकबे और अच्छी आमदनी के चलते यह फ़सल किसानों के लिए एक मज़बूत विकल्प बनकर उभरी है। उम्मीद है कि आने वाले सीजन में और भी किसान इस ओर रुख करेंगे, जिससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी बल्कि कपास उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी भी और बढ़ेगी।

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