जानिए क्या है जैविक खाद बनाने की विंड्रोव तकनीक, IARI पूसा के वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने बताईं 5 उन्नत विधियां
IARI ने विकसित कीं 5 कम्पोस्टिंग विधियां, आसानी से घर में बना सकते हैं जैविक खाद
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी IARI पूसा नई दिल्ली की बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट ने जैविक खाद बनाने की विंड्रोव तकनीक विकसित की है। किसान ऑफ़ इंडिया ने IARI बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के कोऑर्डिनेटर और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा से ख़ास बातचीत की।
आजकल अधिकतर किसान हार्वेस्टर से फसल की कटाई करते हैं, जिससे फसल के अवशेष खेत में ही रह जाते हैं। फिर किसानों को मजबूरन इन अवशेषों को जलाना पड़ता है। इससे धुएं के रूप में हमारे पर्यावरण में ज़हर घुलता है। मिट्टी में पाए जाने वाले मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं। इससे ज़मीन की उर्वरा शक्ति पर भी बुरा असर पड़ता है। आज देश में सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाएं और व्यक्तिगत तौर पर लोग पराली की समस्या से निपटने के लिए रास्ते निकाल रहे हैं। क्या आपको पता है कि फसल अवशेष यानी पराली से खाद भी बनाई जा सकती है? भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी IARI पूसा नई दिल्ली की बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट ने जैविक खाद बनाने की विंड्रोव तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में पाँच विधियों से खाद बनाई जा सकती है। ये विधियां कम लागत में अधिक गुणवत्ता वाली जैविक खाद देंगी। इसको लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने IARI बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के कोऑर्डिनेटर और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा से ख़ास बातचीत की।
क्या है विंड्रोव तकनीक?
डॉ. शिवधर मिश्रा ने बताया कि विंड्रोव तकनीक सभी स्तरों पर बहुत उपयोगी साबित हो रही है। किसान धान, सोयाबिन, लोबिया, मक्का, ज्वार, बाजरा के कृषि अवशेषों सहित फल और सब्जियों के छिलके, बाग-बगीचों की पत्तियां और फूल आदि से जैविक खाद बना सकते हैं।
डॉ. शिवधर मिश्रा के अनुसार, विंड्रोव तकनीक से बड़े पैमाने पर कम समय में कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि सबसे पहले फसल के अवशेषों का ढेर बना लिया जाता है। इस प्रकार के बने ढेर को ‘विंड्रोव’ कहते हैं। इसकी ऊंचाई और चौड़ाई 2 से 2.5 मीटर रख सकते हैं। लंबाई उपलब्ध जगह के अनुसार 10 से 100 मीटर या उससे अधिक भी हो सकती है। इन ढेरों में जैविक कल्चर मिलाकर उचित मात्रा में नमी रखकर समय-समय पर मशीन द्वारा पलटा जाता है। इस प्रोसेस में सभी पदार्थ समान रुप से मिल जाते हैं। ढेरों में वायुसंचार हो जाता है। इस तरह तीन से चार पलटाई में 3 से 9 हफ़्ते में उत्तम जैविक खाद तैयार हो जाती है।
IARI ने विकसित की 5 कम्पोस्टिंग विधियां
इस तकनीक से पांच तरह की खाद तैयार की जाती है:
1) फसल अवशेष खाद: इसमें एक साथ कई फसलों के अवशेषों को मिलाकर या अलग-अलग फसल की खाद तैयार की जाती है।
2) फसल अवशेष और गोबर खाद: ये खाद गोबर और फसल अवशेष को अलग-अलग अनुपात में मिलाकर तैयार की जाती है। धान, गेहूं और अन्य फसलों जैसे कपास, अरहर, आदि के अवशेषों को श्रेडर मशीन से 8 से 10 सेंटीमीटर छोटा कर लिया जाता है। 80 फ़ीसदी फसल अवशेष और 20 फ़ीसदी ताज़े गोबर का मिश्रण बनाया जाता है।
3) तीसरी विधि में गोशाला से प्राप्त गोबर और बचे हुए चारे से खाद बनाई जाती है।
4) चौथी विधि से बनाई गई खाद को समृद्ध खाद कहते हैं। इस तकनीक में खाद बनाने के लिए फसल अवशेष और गोबर खाद दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस खाद में जिस पोषक तत्व की मात्रा बढ़ानी होती है, उसे ढेर में मिला दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर जैसे फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक फास्फेट प्रयोग करके फॉस्फो कम्पोस्ट तैयार किया जाता है।
5) इस विधि में पत्तियों से खाद बनाई जाती है। इसमें पेड़-पौधों की पत्तियों और कटाई-छंटाई से प्राप्त छोटी-मोटी टहनियों से खाद बनाई जाती है। इस प्रकार की खाद नर्सरी और गमलों में लगे पौधो के लिए बेहतर होती है।
विंड्रोव तकनीक से खाद बनाने की विधि
डॉ. शिवधर मिश्रा के अनुसार, विंड्रोव तकनीक में कूड़ा-कचरा और फसल के अवशेषों को डालने के तुरंत बाद ही पहली पलटाई की जाती है। फिर दूसरी पलटाई 10 दिन बाद करते हैं। तीसरी 25 दिन बाद, चौथी 40 दिन बाद और पांचवीं 55-60 दिन पर करते हैं। पलटाई की संख्या प्रयोग में लाये जाने वाले अवशेषों के आधार पर कम या ज़्यादा भी हो सकती है। समय-समय पर ढेरों पर पानी का छिड़काव भी ज़रूरी है। साथ ही विंड्रोव यानी ढेरों का आकार सही करते रहें।
डॉ. शिवधर मिश्रा ने बताया कि किसान आसानी से विंड्रोव तकनीक से अपने घर पर ही जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। किसान डीएपी, एसएसपी और यूरिया खरीदने पर जितना पैसा खर्च करते हैं, उससे कम पैसे में विंड्रोव कम्पोस्टिंग के ज़रिए खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकते हैं। इससे मिट्टी की अच्छी गुणवत्ता के साथ ही पोषक तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनी रहेगी। विंड्रोव कम्पोस्टिंग लवणीय और क्षारीय भूमि में भी असरदार है, जबकि डीएपी ऐसी भूमि में काम नहीं करते।
हमारी पारम्परिक खेती में पहले कचरा, गोबर, दुधारू पशुओं का मलमूत्र और अन्य वनस्पति कचरे को इकठ्ठा करके खाद बनाई जाती थी। पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व इसमें होते थे। इस तरह से जैविक खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति बरकार रहती थी। इससे फसलों से लगातार उपज मिलती रहती थी। किसानों को लागत भी कम लगती थी। किसानों के लिए जैविक खाद बेहतर फसल पैदावार के साथ ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने और कम लागत के नज़रिये से काफ़ी फ़ायदेमंद है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सब्जियों की खेती: छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली इन भाजियों के बारे में जानते हैं आप?छत्तीसगढ़ में 36 तरह की अलग-अलग भाजियां पाई जाती हैं, जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी अच्छी हैं। इन सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर होती है। राज्य में बस्तर के जंगलों, दुर्ग की बाड़ियों, रायपुर के फ़ार्म्स, कवर्धा की घाटियां, अलग-अलग ज़िलों में अनेक किस्म की भाजियां उगाई जाती हैं।
- पॉलीहाउस में फूलों की खेती कर सालाना करीब 35 लाख का टर्नओवर, ये हैं हिमाचल के रवि शर्मारवि शर्मा ने अपने गांव आने के बाद फूलों की खेती को चुना। इसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया हुआ है। वो पॉलीहाउस में फूलों की खेती करते हैं।
- Bio-Fertilizers: जीवाणु या जैविक खाद बनाने का घरेलू नुस्खाजैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
- Saffron Farming: नोएडा के एक छोटे कमरे में केसर की खेती, किसानों को दे रहे हैं ट्रेनिंगरमेश गेरा ने अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1980 में NIT कुरुक्षेत्र से की। इसके साथ ही रमेश ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब भी की। नौकरी के दौरान बाहर के देशों में उन्हें कृषि के नए-नए तरीके देखने को मिले। वहां से तकनीक देखकर भारत में केसर की खेती चालू की।
- Goat Farming: बकरी पालन से जुड़ी क्या हैं उन्नत तकनीकें और मार्केटिंग का तरीका? कैसे किसानों ने पाई सफलता?भारत में बकरी पालन में नवाचारों का उद्देश्य किसानों की आजीविका को बढ़ाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करना है।
- पाले की समस्या से कैसे पाएं निजात? सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती को कैसे प्रभावित करती है?किसान सर्दियों की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए रणनीतियां अपनाते हैं, और सरकार टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहायता देती है।
- कैसे Startup India के तहत शुरू की मिलेट बेकरी? छत्तीसगढ़ की हेमलता ने Millets के दम पर खड़ा किया स्टार्टअपमिलेट से बने व्यंजनों की वैरायटी लिस्ट काफ़ी लंबी है। छत्तीसगढ़ की रहने वाली हेमलता ने Startup India के तहत मिलेट बेकरी (Millet Bakery) की शुरुआत की।
- Makhana Farming: मखाने की खेती में छत्तीसगढ़ के किसान गजेंद्र चंद्राकर ने अपनाई उन्नत तकनीकइस विधि द्वारा मखाने की खेती 1 फ़ीट तक पानी से भरी कृषि भूमि में की जाती है। किसान अब मखाने की खेती कर, धान से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के किसान इस सुपर फ़ूड मखाने की खेती को लेकर काफ़ी जागरूक हो गए हैं।
- Pearl Farming: मोती की खेती के साथ मछली पालन, ‘पर्ल क्वीन’ के नाम से जानी जाती हैं पूजा विश्वकर्मापूजा विश्वकर्मा ने 6 साल पहले 40 हज़ार रुपये की लागत से मोती की खेती का व्यवसाय शुरु किया। लगातार 2 साल तक संघर्ष करने के बाद उन्हें सफलता मिली।
- कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती): बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ, क्या है तरीका?ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा सबसे अच्छा विकल्प है। वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक ईज़ाद की है, जिसमें बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ होगा। इस तकनीक का नाम है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)।
- Biofertilizer Rhizobium: जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने का जैविक तरीकादलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
- Seed Production: कैसे बीज उत्पादन व्यवसाय इन किसानों की आय का अच्छा स्रोत बन रहा है?बीज खेती का आधार है, तभी तो कहते हैं कि हर बीज एक अनाज है, लेकिन हर अनाज एक बीज नहीं हो सकता क्योंकि सभी अनाज में एक समान अंकुरण क्षमता नहीं होती। बीज उत्पादन के लिए किसानों को बीज के प्रकार और उत्पादन का सही तरीका पता होना चाहिए।
- Berseem Farming: बरसीम की खेती से जुड़ी अहम बातें, जानिए कीट-रोगों से कैसे बचाएं बरसीम की फसलबरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
- डेयरी उद्योग (Dairy Farming): क्यों दूध उत्पादन क्षेत्र में फ़ार्म रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है?जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
- Green Manure Crops: हरी खाद वाली फसलें कौन सी हैं और कितने प्रकार की होती हैं?खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
- जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण: पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए फ़ायदेमंदबढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- Crop Residue Management: क्यों ज़रूरी है फसल अवशेष प्रबंधन? इससे जुड़े ये आंकड़ें जानते हैं आप?फसल अवशेष जलाने से हमारी ज़मीन में उपलब्ध पोषक तत्वों को हानि होती है। धीरे-धीरे ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम होती चली जाती है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी कई घटनाएं हम देख भी चुके हैं।
- जानिए कैसे कंद वर्गीय फसल अरारोट की खेती से किसान ले सकते हैं लाभ, क्या हैं इसके फ़ायदे?अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
- Red Rice: विलुप्त होते लाल चावल को मिल रहा जीवनदान, दोबारा शुरु हुई खेतीसेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
- Carp Fish: नर्सरी तालाब में कार्प मछली उत्पादन कैसे करें? किन बातों का रखें ध्यान?मछली पालन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। पहले स्थान पर चीन है। हमारे देश में मछली उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सेदारी कार्प मछलियों की है। कार्प मछली उत्पादन में मछली पालकों को इसके बीजों की गुणवत्ता पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है।