अगर आपने सरसों की फसल लगा रखी है तो इस तरह से करें अपनी फसल का बचाव

इस समय रबी फसलों की बुवाई ज़ोरों पर चल रही है। सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है। सरसों की फसल के रखरखाव पर खास ध्यान देना ज़रूरी होता है। किसानों को सरसों की फसल पर कई रोगों और कीटों से हुए प्रकोप से भारी नुकसान झेलना पड़ता है। हम इस लेख में सरसों की फसल में लगने वाले रोगों का उपचार आपको बता रहे हैं।

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)

देश में अभी रबी फसलों की बुवाई का सीज़न चल रहा है। गेहूं, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर और सरसों रबी की प्रमुख फसलों में आती हैं। सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है। देश के कई राज्यों जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, झारखंड़, बिहार, पंजाब और उत्तर प्रदेश में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है।

हाल ही में साल 2023-24 में रबी फसलों के लिए समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी को मंजूरी दी गई थी। इसमें सरसों के एमएसपी (MSP) में  400 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया। जो सरसों अब तक 5,050 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही थी, वो आने वाले सत्र 2023-2024 में 5450 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकेगी। यही नहीं, इस साल कई जगह तय MSP से भी ज़्यादा में सरसों की खरीदारी हुई। सात हज़ार से लेकर 9500 रुपये प्रति क्विंटल तक ये आंकड़ा पहुंचा।

अच्छी कीमत और सरकार के प्रयासों के कारण इस रबी सीज़न में सरसों की पैदावार दोगुनी होने का अनुमान भी लगाया जा रहा है। सरसों की बुवाई अभी तेज़ी से चल रही है। किसान पूरी लगन से सरसों की फसल से अपने खेतों को सींच रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी ये भी है कि किसान अपनी सरसों की फसल का सही तरह से रखरखाव करें। सरसों की फसल पर कई रोग लगते हैं, जिन्हें वक़्त रहते पहचान लिया जाए तो फसल को बड़े नुकसान से बचाया जा सकता है। इस लेख में हम आपको सरसों की फसल पर लगने वाले कई रोगों और कीटों के बारे में बताएंगे, साथ ही उसके लक्षण पहचानने और उसके उपचार के तरीके भी बताएंगे।

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)
तस्वीर साभार: reutersmedia

सफेद रतुआ रोग

White rust यानी सफेद रतुआ बीमारी से सरसों की फसल अक्सर ग्रसित होती है। ऐसे में ज़रूरी है कि समय-समय पर किसान अपनी फसल की निगरानी करें। 10 से 18 डिग्री सेल्सियस में इस रोग के पनपने की आशंका ज़्यादा रहती हैं। इस बीमारी में सरसों की पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे बनने लगते हैं। ऊपरी सतह पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार: इस रोग से सरसों की फसल को बचाने के लिए फसल के आसपास खरपतवार पनपने न दें। सफेद रतुआ का प्रकोप दिखने पर बिना देरी किए रिडोमिल (एमजेड़ 72 डब्लू.पी.) दवा का छिड़काव करें। दो ग्राम दवा को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं और छिड़काव करें। इसके अलावा, मेनकोजेब दवा का 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं। दो छिड़काव दस दिन के अन्तराल में 45 एवं 55 दिन की फसल पर करें। उपचार करने से पहले विशेषज्ञों की राय ज़रूर लें।  

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)
तस्वीर साभार: istudy

सरसों का झुलसा या काला धब्बा रोग

इस रोग में सरसों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे पत्तियों को नुकसान पहुंचाने लगते हैं और पत्तियों के बीच में छेद बनने लगते हैं। पीली परत जैसी भी बनने लगती है। बाद में इस रोग से ग्रसित पत्तियां गिरने लगती हैं। तनों और फली पर भी इसके धब्बे दिखने लगते हैं। फली के दाने सिकुड़ जाते हैं, जो पैदावार क्षमता पर असर डालता है।

उपचार: रोग दिखने पर 2.5 ग्राम मेनकोजेब दवा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बना लें। फिर दो से 3 छिड़काव 10 दिन के अंतर से 45, 55 एवं 65 दिन की फसल पर करें।

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)
तस्वीर साभार: krishakjagat

सरसों का तना सड़न या पोलियो रोग

ये रोग मुख्य तौर से फसल में फूल आने के बाद ही पनपता है। इसमें तने के निचले भाग में मटमैले भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। शुरू में ये धब्बे किसी सफेद जाल की तरह नज़र आते हैं।  इस रोग के लगने से पौधा मुरझाने लगता है और लटक जाता है।

उपचार: इस रोग से सरसों की फसल को बचाने के लिए पहले से ही, यानी गर्मियों में खेत की अच्छे से गहरी जुताई करें। खेत में खरपतवार न होने दें। फसल में कतारों और पौधों के बीच की उचित दूरी रखें। बीमारी का प्रकोप दिखने पर 0.1 प्रतिशत की दर से कार्बेन्डाजिम दवा का छिड़काव करें। 10 दिन के अन्तराल में दो बार पत्तियों व तने पर छिड़काव करें।

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)
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सरसों का चितकबरा (पेन्टेड बग) कीट

चितकबरा कीट पौधों से रस चूसकर उसको नष्ट कर देता है। ये कीट बुवाई के समय और कटाई के मार्च महीने में ज़्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।

उपचार: चितकबरा कीट से सरसों की फसल को बचाने के लिए पहले से ही तैयारी करें। बुवाई के तीन से चार सप्ताह बाद पहली सिंचाई कर दें। इससे मिट्टी के अन्दर पनपने वाले कीट मर जाते हैं। फसल पर ज़्यादा प्रकोप दिखने पर मेलाथियान 50 ई.सी. दवा की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

सरसों की फसल सरसों की खेती (mustard farming disease)
तस्वीर साभार: merikheti

सरसों का चेंपा लसा या माहू कीट

सरसों का चेंपा का प्रकोप फसल पर दिसम्बर के आखिर में देखने को मिलता है। जनवरी-फरवरी आते आते इसका प्रकोप बढ़ जाता है। ये कीट भी पौधों का रस चूसकर उसे नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीट एक तरह का तरल पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे सरसों के पौधे ब्लैक फंगस से ग्रसित होने लगते हैं। ये कीट 60-80 प्रतिशत नमी वाले क्षेत्र में तेज़ी से पनपते हैं।

उपचार: रोग दिखने पर नीम की खली का 5 प्रतिशत घोल तैयार कर पौधों पर छिड़काव करें। ज़्यादा प्रकोप होने पर ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. दवा  500 मिली लीटर की मात्रा से लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव करें। घोल की ये मात्रा  प्रति हेक्टेयर के लिए काफ़ी होती है।  

स्रोत: ICAR-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय और किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्यप्रदेश

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