ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation): लाभ, चुनौतियां और समाधान 

भारत में ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती एक लाभदायक अवसर बनती जा रही है। ये लेख बताता है कि कैसे किसान इसकी मदद से अच्छी पैदावार, बेहतर तेल गुणवत्ता, और मिट्टी की उर्वरता सुनिश्चित कर सकते हैं। साथ ही, गर्मी में जल संकट, श्रमिकों की कमी और तापीय तनाव जैसी चुनौतियों के व्यावहारिक समाधान भी जानिए।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation)

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां विभिन्न जलवायु और मौसम के अनुसार कई तरह की फसलों की खेती होती है। मूंगफली, भारत की प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक है, जिसकी ग्रीष्मकालीन खेती किसानों के लिए एक विशेष अवसर बन सकती है। इस लेख में हम ग्रीष्मकालीन मूंगफली खेती के लाभों, इससे जुड़ी चुनौतियों और उनके समाधान के वैज्ञानिक पक्षों को विस्तार से समझेंगे। 

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती से जुड़े 5 प्रमुख लाभ

1. अच्छी उत्पादकता और तुरंत पकने की क्षमता 

• गर्मियों में सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है, जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता बढ़ती है।

• फसल जल्दी पक जाती है, जिससे किसान एक ही मौसम में जल्दी कटाई करके अगली फसल लेने की योजना बना सकते हैं।

• इससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी बढ़ता है, जो आर्थिक लाभ प्रदान करता है।

2. तेल की बेहतर मात्रा और गुणवत्ता

• गर्मी के मौसम में तापमान अधिक होने से मूंगफली के दानों में तेल की मात्रा अधिक होती है।

• तेल की गुणवत्ता भी सुधरती है, जिससे बाज़ार में उत्पाद का मूल्य बढ़ता है।

• अच्छी गुणवत्ता वाले तेल बीजों की मांग अधिक होने से किसानों को बेहतर आर्थिक लाभ मिलता है।

3. कीट एवं रोगों का कम से कम प्रकोप

• गर्मियों के मौसम में उच्च तापमान और शुष्कता के कारण अधिकांश कीट, रोगजनक जीवाणु और फफूंद सक्रिय नहीं रह पाते।

• कीटनाशकों और फंगीसाइड्स के प्रयोग की ज़रूरत कम होती है, जिससे लागत बचती है।

• फसल स्वास्थ्य बेहतर रहता है और पर्यावरण पर रसायनों का दुष्प्रभाव भी घटता है।

4. फसल चक्र में विविधता और मिट्टी स्वास्थ्य में सुधार

• गर्मियों में मूंगफली लगाने से परंपरागत फसल चक्र (गेहूं, धान, दलहन आदि) में विविधता आती है।

• मूंगफली नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है, जिससे मृदा में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है।

• इससे मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्वों का संतुलन बेहतर होता है।

5. जल संसाधनों का कुशल उपयोग

• गर्मियों में ड्रिप या स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों का इस्तेमाल अधिक प्रभावी होता है, जिससे जल संरक्षण होता है।

• ड्रिप इरीगेशन से पानी की खपत लगभग 40-60% तक कम होती है और जल की दक्षता बढ़ती है।

• इससे उन क्षेत्रों में भी मूंगफली की खेती सफल हो सकती है, जहां पानी सीमित मात्रा में उपलब्ध है।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती में आने वाली मुख्य चुनौतियां

1. जल संसाधनों की कमी और सिंचाई समस्या

• गर्मियों के मौसम में जलस्रोत जैसे तालाब, कुएं और नहरें प्रायः सूख जाती हैं, जिससे सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था करना कठिन हो जाता है।

• भूमिगत जलस्तर में भी तेजी से गिरावट आती है, जिससे ट्यूबवेल या बोरिंग जैसे संसाधनों से पानी निकालना महंगा और कठिन होता है।

• नियमित सिंचाई न होने से पौधों के अंकुरण और बढ़ने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो उत्पादन कम कर सकता है।

2. उच्च तापमान से पौधों में तनाव

• गर्मी में तापमान अक्सर 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, जिससे पौधों में तापीय तनाव (हीट स्ट्रेस) पैदा होता है।

• अत्यधिक गर्मी के कारण पौधे की पत्तियाँ सूख सकती हैं, और फूल तथा फल बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।

• पौधों में पानी और पोषक तत्वों की खपत बढ़ जाती है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है।

3. मिट्टी से जुड़ी समस्या

• रेतीली और हल्की मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है, जिससे सिंचाई के बाद भी नमी लंबे समय तक नहीं टिकती।

• बार-बार सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है, जो श्रम और लागत दोनों में वृद्धि करता है।

• नमी की कमी के कारण पौधे की जड़ों का विकास प्रभावित होता है, जिससे उत्पादन में कमी आ सकती है।

4. कृषि श्रमिकों की कमी

• ग्रीष्मकाल में अत्यधिक गर्मी और लू के कारण कृषि मजदूर दिन में खेतों में काम करने से बचते हैं, जिससे मज़दूरों की कमी हो जाती है।

• समय पर निराई-गुड़ाई, बुवाई, सिंचाई और कटाई जैसे महत्वपूर्ण कृषि कार्यों में विलंब हो सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित होता है।

• श्रमिकों की उपलब्धता न होने से किसानों को अतिरिक्त श्रम लागत और प्रबंधन संबंधी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

5. मृदा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन

• गर्मियों के मौसम में तेज धूप के कारण मिट्टी की ऊपरी परत में मौजूद जैविक पदार्थ तेजी से विघटित होते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है।

• पोषक तत्वों की कमी जल्दी सामने आती है, विशेषकर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की कमी गंभीर हो सकती है।

• इससे किसानों को अतिरिक्त उर्वरक और पोषक तत्वों के लिए निवेश करना पड़ता है, जिससे खेती की कुल लागत बढ़ जाती है। 

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती में चुनौतियों का समाधान कैसे करें? 

1. आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग

• ड्रिप इरीगेशन प्रणाली का प्रयोग करके पानी को पौधे की जड़ों तक सीधा पहुंचाया जा सकता है। ये सिंचाई के दौरान पानी की खपत लगभग 40-60% तक घटा देती है।

• माइक्रो-स्प्रिंकलर सिस्टम से भी पानी की खपत में कमी आती है और पौधों को समान रूप से पानी मिलता है। यह प्रणाली छोटे बूंदों के रूप में पानी वितरित करती है, जिससे जल का अधिकतम उपयोग होता है।

• आधुनिक तकनीकों से भूमिगत जलस्तर में कमी की समस्या का प्रभावी प्रबंधन संभव है।

2. मल्चिंग तकनीक से मिट्टी में नमी संरक्षण

• प्लास्टिक, भूसा या जैविक मल्च जैसे सामग्री का उपयोग करके मिट्टी की ऊपरी सतह को ढका जा सकता है, जिससे मिट्टी की नमी अधिक समय तक बनी रहती है।

• मल्चिंग से मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है, जो पौधों में गर्मी के तनाव को भी कम करता है।

• जैविक मल्च जैसे फसल अवशेषों से मिट्टी में जैविक पदार्थ बढ़ता है, जिससे मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है।

3. मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि

• मिट्टी में गोबर की खाद, कम्पोस्ट और वर्मी-कम्पोस्ट जैसी जैविक खादों का उपयोग करने से मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है।

• जैविक खादों से मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि तेज होती है, जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का प्राकृतिक संतुलन बना रहता है।

• इन पदार्थों का नियमित उपयोग मिट्टी की संरचना सुधारता है, जिससे फसलों को पर्याप्त नमी और पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं।

4. मजदूरों की कमी के लिए कृषि मशीनरी का उपयोग

• सीड ड्रिल, प्लांटर्स और मैकेनिकल हार्वेस्टर्स जैसी आधुनिक कृषि मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की निर्भरता कम हो जाती है।

• ये मशीनें खेती के काम को तेजी से पूरा करती हैं, जिससे समय पर बुवाई, निराई-गुड़ाई, और कटाई होती है।

• मशीनों का उपयोग खेती की उत्पादन लागत को घटाता है, जिससे किसानों का लाभ बढ़ता है।

5. पौधों में तापीय तनाव का प्रबंधन

• पौधों के तापीय तनाव (हीट स्ट्रेस) को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से पौधों को नियमित और नियंत्रित मात्रा में पानी देना आवश्यक है।

• एंटी-ट्रांसपिरेंट स्प्रे (Anti-Transpirant Spray) जैसे उत्पादों का उपयोग कर पौधों में जल हानि को कम किया जा सकता है।

• पौधों को धूप से बचाने के लिए खेतों के आसपास विंड-ब्रेक्स (हवा रोकने वाले पेड़-पौधे) का रोपण भी किया जा सकता है, जो तापमान को नियंत्रित करने और पौधों की वृद्धि में मददगार साबित होते हैं। 

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती के लिए वैज्ञानिक सलाह (What do the scientific recommendations say?)

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती को सफल बनाने के लिए वैज्ञानिक अनुशंसाओं का पालन आवश्यक है। इससे न केवल उत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि होती है, बल्कि किसानों की आय में भी सुधार आता है। सबसे पहले, बीज चयन को लेकर सावधानी बरतना ज़रूरी है। अच्छी पैदावार के लिए प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जो रोगों, कीटों और जलवायु संबंधी तनावों के प्रति सहनशील हों। वैज्ञानिक रूप से अनुशंसित मूंगफली की किस्मों में GG-20, GG-2 और TAG-24 प्रमुख हैं। GG-20 जल्दी पकने वाली और उच्च तापमान के अनुकूल होती है, वहीं GG-2 में बेहतर उत्पादन क्षमता और तेल की गुणवत्ता होती है। TAG-24 कम पानी की स्थिति में अच्छा प्रदर्शन करती है और जल्दी परिपक्व होती है। बुवाई से पूर्व बीजों का राइजोबियम, ट्राइकोडर्मा और फॉस्फोरस घोलक बैक्टीरिया (PSB) जैसे जैविक कल्चर से उपचार करना चाहिए, ताकि अंकुरण दर और रोग प्रतिरोधकता बढ़े।

बेहतर उत्पादन के लिए मृदा प्रबंधन

मृदा परीक्षण भी वैज्ञानिक खेती का एक अहम भाग है। खेत में फसल लगाने से पहले मिट्टी की पोषक स्थिति, पीएच मान और जैविक तत्वों की जानकारी के लिए मृदा परीक्षण करवाना चाहिए। इससे यह तय किया जा सकता है कि किस पोषक तत्व की कमी है और उर्वरकों का प्रयोग कितनी मात्रा में करना है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा जरूरी है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर 25-30 किलो नाइट्रोजन, 50-60 किलो फास्फोरस (P₂O₅) और 30-40 किलो पोटाश (K₂O) की अनुशंसा की जाती है। इसके अलावा, जिंक सल्फेट, आयरन, सल्फर और बोरोन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी जरूरत अनुसार प्रयोग करना चाहिए ताकि पौधों की समुचित वृद्धि हो सके।

सिंचाई और पोषक तत्व प्रबंधन के आधुनिक उपाय

सिंचाई प्रबंधन की दृष्टि से गर्मियों में ड्रिप इरीगेशन एक अत्यंत प्रभावी तकनीक मानी जाती है। यह पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाकर नमी बनाए रखती है और जल का अपव्यय रोकती है। इससे पौधों को जल तनाव से बचाया जा सकता है। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, मूंगफली की फसल में फूल आने और फलियों के विकास के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए हर 7 से 10 दिन में सिंचाई की जानी चाहिए।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती से जुड़ी कीट व रोग नियंत्रण तकनीक

मूंगफली की खेती में कीट और रोगों से फसल को बचाना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए पौधों की नियमित निगरानी करनी चाहिए, जिससे किसी भी समस्या की शुरुआत में ही पहचान की जा सके। मल्चिंग तकनीक के तहत प्लास्टिक, भूसा या फसल अवशेषों से मिट्टी की सतह को ढकने से मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है और नमी लंबे समय तक बनी रहती है। इससे पौधों में जल तनाव घटता है और उत्पादन में वृद्धि होती है। फसल चक्र का पालन करते हुए मूंगफली को दलहनी और गैर-दलहनी फसलों के बीच लगाना चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। इसके अलावा, हर फसल चक्र से पहले खेत में गोबर की खाद, कम्पोस्ट और वर्मी-कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए, जिससे न केवल पोषक तत्वों की पूर्ति होती है बल्कि मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि भी बढ़ती है, जो दीर्घकालिक मृदा स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। 

ग्रीष्मकालीन मूंगफली खेती भारतीय किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प है, जो बेहतर आय और मृदा की उर्वरता को बढ़ावा दे सकता है। वैज्ञानिक जानकारी और तकनीकों का उचित इस्तेमाल करते हुए किसान भाई ग्रीष्मकालीन मूंगफली खेती की चुनौतियों को अवसर में बदल सकते हैं, जिससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी बल्कि देश की कृषि अर्थव्यवस्था में भी योगदान होगा।

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