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हर किसान का सपना होता है कि उसकी फ़सल अच्छी हो, उत्पादन भरपूर हो और आर्थिक रूप से भी वो सम्पन्न हो। मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) कर रहे किसान भी अपने इस सपने को पूरा कर सकते हैं। ये भारत की एक महत्वपूर्ण तिलहनी फ़सल है, जिसका उत्पादन गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में व्यापक स्तर पर किया जाता है। मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) किसानों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है, इसलिए इसकी देखभाल अत्यंत आवश्यक हो जाती है, लेकिन अक्सर किसानों को पोषक तत्वों की उचित जानकारी न होने के कारण उनकी फ़सल की गुणवत्ता और उपज प्रभावित हो जाती है।
सही पोषक तत्व प्रबंधन से न सिर्फ़ मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) उपज बढ़ती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। इस लेख में हम भारतीय परिस्थितियों में मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) में पोषक तत्व प्रबंधन के वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिससे किसान भाई इसका लाभ उठा सकें।
मृदा परीक्षण एवं पोषक तत्वों का मूल्यांकन पोषक तत्व प्रबंधन का पहला कदम मिट्टी परीक्षण से शुरू होता है। मृदा परीक्षण मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटैशियम (K), कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), सल्फर (S) तथा सूक्ष्म पोषक तत्व (जिंक, आयरन, बोरॉन, कॉपर आदि) की स्थिति स्पष्ट करता है। भारत में सरकारी और निजी प्रयोगशालाओं में यह परीक्षण आसानी से उपलब्ध है। परीक्षण से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक होता है।
मूंगफली की खेती में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स का प्रबंधन (Management of macronutrients in groundnut cultivation)
नाइट्रोजन (N): मूंगफली एक दलहनी फ़सल है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने में सक्षम होती है। फिर भी शुरुआती विकास चरण में लगभग 20-30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देना आवश्यक होता है। अत्यधिक नाइट्रोजन प्रयोग से पौधे के हरे भाग की वृद्धि तो होती है, लेकिन फलियों के उत्पादन में कमी आ सकती है।
फास्फोरस (P): फास्फोरस मूंगफली में जड़ वृद्धि, पुष्पण और फलियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। सामान्यतः 40-60 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है। फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) या डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का प्रयोग किया जा सकता है।
पोटैशियम (K): पोटैशियम पौधे की सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ाता है तथा बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है। भारत की अधिकांश मिट्टियों में पोटैशियम की मात्रा मध्यम स्तर की होती है। मूंगफली की फ़सल के लिए लगभग 40-50 किलो पोटैशियम प्रति हेक्टेयर आवश्यक होता है।
सेकंड्री पोषक तत्वों का महत्व (Importance of secondary nutrients)
कैल्शियम (Ca): मूंगफली की फली में कैल्शियम की कमी से फली के खोल कमजोर हो जाते हैं, जो उपज की गुणवत्ता पर प्रभाव डालता है। जिप्सम (CaSO₄·2H₂O) का उपयोग कैल्शियम की पूर्ति करने के लिए किया जाता है, जो आमतौर पर बुआई के 40-50 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर 200-400 किलो की मात्रा में दिया जाता है।
मैग्नीशियम (Mg) और सल्फर (S): मैग्नीशियम पौधों में क्लोरोफिल निर्माण में सहायक है और सल्फर प्रोटीन निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनकी पूर्ति के लिए मैग्नीशियम सल्फेट का उपयोग किया जा सकता है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन (Management of micronutrients)
जिंक (Zn): भारत की कई मिट्टियों में जिंक की कमी आम समस्या है। इसकी कमी से पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे और कम वृद्धि देखी जाती है। जिंक सल्फेट का 25 किलो प्रति हेक्टेयर या फोलियर स्प्रे 0.5% जिंक सल्फेट घोल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
आयरन (Fe): आयरन क्लोरोफिल के निर्माण के लिए आवश्यक है। आयरन की कमी से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। फेरस सल्फेट का 0.5% घोल बनाकर फोलियर स्प्रे के माध्यम से इसका प्रयोग किया जा सकता है।
बोरॉन (B): बोरॉन की कमी से फली की वृद्धि और फलों का आकार प्रभावित होता है। बोरैक्स या बोरोनेटेड उर्वरकों के माध्यम से बोरॉन पूर्ति की जा सकती है। प्रति हेक्टेयर 10 किलो बोरेक्स का मिट्टी में प्रयोग या 0.1% बोरेक्स का फोलियर स्प्रे उपयोगी है।
जैविक उर्वरकों का समावेश (Incorporation of organic fertilizers)
मूंगफली की फ़सल में पोषक तत्व प्रबंधन में जैविक उर्वरकों का प्रयोग भी लाभकारी है। जैविक उर्वरकों में मुख्यतः राइजोबियम, फॉस्फोरस घोलक जीवाणु (PSB), और पोटाश घोलक जीवाणु (KSB) का उपयोग किया जाता है। राइजोबियम एक लाभकारी जीवाणु है, जो मूंगफली की जड़ों में गांठें बनाकर वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करता है, जिससे पौधे को प्राकृतिक नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है। फॉस्फोरस घोलक जीवाणु मिट्टी में उपलब्ध अघुलनशील फॉस्फोरस को घोलकर पौधों के लिए उपलब्ध कराते हैं।
पोटाश घोलक जीवाणु (KSB) मिट्टी में पोटैशियम की उपलब्धता को बढ़ाते हैं। इन जीवाणुओं के नियमित प्रयोग से मृदा का जैविक संतुलन बना रहता है, मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है, जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। जैविक उर्वरकों के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है, जिससे खेती की लागत भी घटती है।
मूंगफली की खेती में जल प्रबंधन और पोषक तत्वों की उपलब्धता (Water management and nutrient availability in groundnut cultivation)
पोषक तत्वों का अवशोषण उचित जल प्रबंधन पर निर्भर करता है। जल की सही उपलब्धता मिट्टी में पोषक तत्वों की गतिशीलता को बढ़ाती है, जिससे पौधों द्वारा उनका अवशोषण सुगमता से होता है। मूंगफली की फ़सल की जल आवश्यकता इसके विकास के विभिन्न चरणों में भिन्न होती है। बुवाई से लेकर फूल आने तक, और फिर फलियों के विकास के समय जल की मांग विशेष रूप से अधिक होती है। भारत में मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) के लिए ड्रिप इरीगेशन और माइक्रो-स्प्रिंकलर प्रणाली का प्रयोग अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।
ये सिंचाई विधियां पानी की बचत करती हैं, जिससे पानी की खपत लगभग 40-60% तक कम हो जाती है। इसके अलावा, इन विधियों से सिंचाई करने से मृदा अपरदन में भी कमी आती है और पोषक तत्व पौधों की जड़ों तक अधिक कुशलता से पहुँचते हैं। उचित जल प्रबंधन के कारण फ़सल की रोगों और कीटों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित होती है।
भारत में किसानों की चुनौतियां अनंत हैं, लेकिन सही जानकारी और वैज्ञानिक तरीकों के अपनाने से इन चुनौतियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है, यदि वे पोषक तत्व प्रबंधन को सही और वैज्ञानिक तरीके से अपनाएं। खेती के दौरान मिट्टी परीक्षण से लेकर जैविक उर्वरकों और सूक्ष्म पोषक तत्वों के सही इस्तेमाल तक, प्रत्येक कदम पर जागरूकता और सावधानी बरतना ज़रूरी है।
आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग और जल प्रबंधन का उचित तरीका भी पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने में सहायता करता है। किसान भाइयों को चाहिए कि वे कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों से नियमित संपर्क रखें, उनके दिशा-निर्देशों का पालन करें और अपने खेतों में होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तनों को भी गंभीरता से लें।
अंततः, सही पोषक तत्व प्रबंधन के माध्यम से मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) में पैदावार और गुणवत्ता बढ़ेगी, जिससे किसान भाई आर्थिक रूप से सशक्त होंगे और कृषि क्षेत्र में समृद्धि आएगी। किसान भाइयों की मेहनत, वैज्ञानिक समझ और समर्पण से ही भारत की कृषि नई ऊँचाइयों को छू सकेगी। आइए, मिलकर कदम बढ़ाएँ, मिट्टी को समझें, फ़सल को पहचानें और देश के कृषि विकास में अपना अमूल्य योगदान दें।
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