मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) भारत के अनेक क्षेत्रों में की जाती है, विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य, जहाँ वर्षा की अनिश्चितता और पानी की कमी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल का प्रभावी प्रबंधन ही उपज और गुणवत्ता की कुंजी बनता जा रहा है। इस लेख में हम भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) के लिए कुछ व्यवहारिक, वैज्ञानिक और सुलभ जल प्रबंधन रणनीतियों पर चर्चा करेंगे।
सूखा प्रभावित क्षेत्रों में मूंगफली की खेती: जल प्रबंधन की ज़रूरत क्यों है? (Groundnut Cultivation in drought prone areas: Why water management is needed?)
- मूंगफली की जड़ें गहरी होती हैं, जिससे वह कुछ हद तक सूखा सहन कर सकती है, लेकिन फ़सल के कुछ “क्रिटिकल स्टेज” ऐसे होते हैं जब जल की उपलब्धता बेहद आवश्यक होती है।
- मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) में कम वर्षा, असमान वितरण और जल भंडारण की कमी भारत के कई अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में मूंगफली उत्पादन को सीमित करती है।
- बारिश पर पूरी निर्भरता उत्पादन को जोखिम में डालती है – अगर बुवाई के बाद लगातार सूखा पड़ जाए या फूल और फली बनने के समय वर्षा न हो, तो उपज में भारी गिरावट आती है।
- मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) में मिट्टी की नमी की कमी से पोषक तत्वों का अवशोषण भी बाधित होता है, जिससे पौधे कमजोर रह जाते हैं और बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।
- मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) में सिंचाई जल की उपलब्धता सीमित होने के कारण हर बूंद का सही इस्तेमाल ज़रूरी है, ताकि पानी की बर्बादी रोकी जा सके और कम से कम संसाधन में ज़्यादा से ज़्यादा लाभ मिल सके।
मूंगफली की खेती में जल प्रबंधन रणनीतियां (Water Management Strategies in Groundnut Cultivation)
- मल्चिंग (Mulching): मिट्टी की नमी बनाए रखने की कला
क्या है मल्चिंग?
मल्चिंग का अर्थ है मिट्टी की सतह को जैविक (जैसे सूखी घास, पत्तियां, भूसी) या अजैविक (प्लास्टिक शीट) पदार्थ से ढंकना। रोपण के तुरंत बाद जैविक मल्च का इस्तेमाल करें — यह कटी हुई मूंगफली के पौधों के अवशेष से भी किया जा सकता है।
लाभ:
- वाष्पीकरण से पानी की हानि कम होती है।
- खरपतवार नियंत्रण में मदद।
- मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है।
- वर्षा के पानी के बहाव (run-off) को कम करता है।
- वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting): हर बूंद कीमती है
क्या करें?
- खेत के किनारों पर बंडिंग करें ताकि वर्षा जल जमा हो और धीरे-धीरे मिट्टी में समा सके।
- खेत तालाब (Farm Pond) बनाएं, जहाँ अतिरिक्त वर्षा जल संग्रह किया जा सके।
- रेन वॉटर डाईवर्ज़न चैनल्स से खेत के नीचले हिस्सों की ओर पानी बहाएं।
- नियंत्रित सिंचाई और उसकी समय-संवेदनशीलता (Critical Irrigation Stages)
मूंगफली की फ़सल के कुछ ऐसे चरण होते हैं, जब जल की आवश्यकता अनिवार्य होती है। अगर इन चरणों पर जल उपलब्ध न हो, तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है।
चरण (Growth Stage) | दिन (बुवाई से) | विशेषता | सिंचाई की भूमिका |
अंकुरण (Germination) | 0-10 दिन | बीज अंकुरित होना | नमी बहुत आवश्यक |
फूल निकलना (Flowering) | 25-35 दिन | अधिकतम फूल आते हैं | जल की कमी से फूल झड़ते हैं |
फली बनना (Pod Formation) | 45-60 दिन | फसल का निर्धारण होता है | नमी की कमी से फली नहीं बनती |
दाना भराव (Pod Filling) | 60-80 दिन | दाने का आकार तय होता है | जल की उपलब्धता से उपज पर असर |
इनमें से फूल निकलने और फली बनने के समय यदि एक बार भी सिंचाई की जाए, तो उपज 25-30% तक बढ़ सकती है।
- फ़सल चक्र और अंतरवर्तीय फ़सलें (Crop Rotation and Intercropping)
- बाजरा + मूंगफली, अरहर + मूंगफली जैसी अंतरवर्तीय फ़सलें जल का समुचित उपयोग करती हैं।
- मूंगफली के साथ गहरी जड़ों वाली फ़सलें लगाने से मिट्टी की नमी बेहतर बनी रहती है।
- इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है और किसानों को अतिरिक्त आय स्रोत मिलते हैं।
- रोटरी हो (Ridge and Furrow Method): जल संचयन और फ़सल वृद्धि दोनों में सहायक
क्या है यह विधि?
इसमें खेत को ऊँची मेड़ (ridge) और गहरी नालियों (furrows) में बाँटा जाता है। मूंगफली को मेड़ों पर बोया जाता है और वर्षा का या सिंचाई का पानी नालियों में जमा होता है।
लाभ:
- बारिश का पानी बहता नहीं, नालियों में संग्रह होता है।
- पानी की जड़ तक आपूर्ति होती है।
- जल-जमाव से बचाव होता है, जिससे जड़ें सड़ती नहीं।
- यह विधि हल्की ढलान वाले खेतों में विशेष रूप से कारगर है।
- जैवचार (Biochar) और जैविक मिट्टी संशोधन: मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ाने का तरीका
क्या है Biochar?
जैविक कचरे को नियंत्रित तापमान पर जलाकर तैयार किया गया काला, कार्बनयुक्त पदार्थ जिसे मिट्टी में मिलाया जाता है।
लाभ:
- मिट्टी की जल-धारण क्षमता (Water Holding Capacity) बढ़ती है।
- कम पानी में भी पौधे लंबे समय तक नमी पा सकते हैं।
- मिट्टी की संरचना और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- जैवचार के साथ गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर उपयोग करने से प्रभाव दोगुना होता है।
प्रयोग कैसे करें?
प्रति एकड़ 5-10 क्विंटल जैवचार को मिट्टी में जुताई से पहले मिला दें। यह विशेषकर रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में अत्यधिक प्रभावी है, जैसे राजस्थान के कुछ हिस्से।
इन रणनीतियों को मिलाकर अपनाया जाए, तो मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) को सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी स्थायित्व, लाभ और उत्पादकता की दृष्टि से मज़बूत बनाया जा सकता है।
कुछ व्यवहारिक सुझाव और लोकज्ञान
- सुबह या शाम की सिंचाई करें ताकि पानी की बर्बादी कम हो।
- ड्रिप इरिगेशन जैसी सूक्ष्म सिंचाई विधियों का उपयोग करें जहां संभव हो।
- ‘पानी बचाओ, फ़सल बचाओ’ जैसे ग्राम स्तरीय अभियान चलाएं।
व्यापक लाभ जो इन रणनीतियों से मिलते हैं
- फ़सल की उपज में 20-40% तक की वृद्धि।
- सिंचाई की जरूरतों में 30-50% तक की कमी।
- खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी कटाव में कमी।
- पर्यावरणीय संतुलन और जलवायु अनुकूल खेती।
सरकार और कृषि वैज्ञानिकों के लिए ठोस सिफ़ारिशें (Concrete recommendations for the government and agricultural scientists)
- ग्राम स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम:
- प्रत्येक ब्लॉक या पंचायत स्तर पर जल प्रबंधन और टिकाऊ खेती पर किसानों के लिए ट्रेनिंग आयोजित की जाए।
- उदाहरण-आधारित और क्षेत्रीय भाषा में कार्यशालाएं हों जिनमें स्थानीय किसानों की भागीदारी हो।
- खेत तालाबों और रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर पर सब्सिडी बढ़ाना:
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं को और प्रभावी बनाते हुए, छोटे और सीमांत किसानों के लिए 80% तक अनुदान दिया जाए।
- तालाब निर्माण के लिए भूमि-स्वामित्व में लचीलापन लाया जाए।
- मल्चिंग सामग्री और ड्रिप सिंचाई उपकरण पर वित्तीय सहायता:
- सरकार ग्राम स्तर पर किसान समूहों को सामूहिक मल्चिंग रोल या प्लास्टिक शीट देने की व्यवस्था करे।
- ड्रिप और स्प्रिंकलर इरिगेशन के लिए कर्ज या रेंटल मॉडल को बढ़ावा दिया जाए।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और NGO की भागीदारी:
- KVK को स्थानीय जल प्रबंधन समाधान विकसित करने और किसानों को समझाने की ज़िम्मेदारी दी जाए।
- ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को जैवचार उत्पादन और विक्रय में लगाया जाए।
जल की एक-एक बूंद भारत के करोड़ों किसानों के भविष्य को आकार दे सकती है। मूंगफली जैसी फ़सलें, जो कम जल में भी अच्छी उपज देने की क्षमता रखती हैं, सही रणनीतियों और सरकारी सहयोग के साथ न सिर्फ़ किसानों की आमदनी बढ़ा सकती हैं, बल्कि देश की खाद्य तेल आत्मनिर्भरता में भी योगदान दे सकती हैं।
ये भी पढ़िए: मूंगफली की फ़सल में पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।