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आखिरी बार आपने कब सुना था कि कोई एमबीए ग्रेजुएट कॉरपोरेट नौकरी की आरामदायक कुर्सी छोड़कर अपने गांव की धूल भरी गलियों में लौट आया हो ताकि किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो सके?
एक ऐसी दुनिया में, जहां अक्सर ग्रामीण भारत को लोग पीछे छोड़ देते हैं, भूपेश रेड्डी ने उल्टी दिशा में कदम बढ़ाया, एक मकसद के साथ।
कॉरपोरेट से खेत तक: भूपेश रेड्डी की ग्रामीण क्रांति
मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग में एमबीए की डिग्री के साथ, भूपेश बोर्डरूम में करियर बना सकते थे। लेकिन उनका दिल उन्हें कहीं और खींच रहा था: नेल्लूर की ज़मीन पर, किसानों के बीच, अपनी जड़ों की ओर।
“मुझे पता था कि मैं वहां फ़र्क डालना चाहता हूं, जहां वाकई ज़रूरत है…मेरे लिए सफलता कभी मोटी तनख्वाह का नाम नहीं था। ये किसानों को एंटरप्रेन्योर बनाना था, ये सुनिश्चित करना था कि कोई भी ग्रामीण महिला या पुरुष पीछे न छूटे।”
आज, जेडीआर एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में, भूपेश एक ऐसे मिशन की अगुवाई कर रहे हैं जो हज़ारों लोगों की ज़िंदगियां बदल रहा है- सिर्फ़ आंध्र प्रदेश में नहीं, बल्कि जल्द ही पूरे भारत में। उनका सफ़र सिर्फ़ कृषि तक सीमित नहीं है; ये सपनों को गढ़ने, गरिमा लौटाने और सामूहिक प्रयास की ताक़त को सामने लाने की कहानी है।
शुरुआत: अपनी जड़ों की ओर वापसी
2013 में एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद, भूपेश के पास किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने का मौका था। लेकिन बचपन की यादें, उनके किसान परिवार के संघर्ष और गांव की महिलाओं की निस्वार्थ दृढ़ता उन्हें बार-बार अपनी जड़ों की ओर खींच रही थीं।
“मेरे पिताजी ने ही हमारे गांव में पहला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) शुरू किया था… मैंने देखा कि जब छोटे-छोटे महिला समूहों को सही समर्थन मिलता है, तो वो पूरे गांव का आर्थिक चेहरा बदल सकते हैं।”
भूपेश ने अपने शुरुआती साल नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन (NRLM) के तहत काम करते हुए बिताए, जहां वो ग्रामीण समुदायों के लिए रोज़गार के अवसर तैयार कर रहे थे। वो कहते हैं-
“तभी मुझे एहसास हुआ कि विकास खैरात देने से नहीं होता। विकास होता है लोगों को सही औज़ार और सही सोच देने से।”
ग्रामीण नवाचार के लिए एक छतरी बनाना
इसी विश्वास के साथ, भूपेश ने अपनी पत्नी और भाई के साथ मिलकर जेडीआर एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की।
“हम सिर्फ़ एक कंपनी नहीं हैं। हम एक इकोसिस्टम हैं। हम एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइज़ेशन) चलाते हैं, ट्रेनिंग देते हैं, किसानों को सरकारी योजनाओं से जोड़ते हैं, उन्हें लोन दिलवाते हैं, और उन्हें नवीनतम एग्रीबिजनेस मॉडल्स से परिचित कराते हैं।”
उनकी सेवाएं अलग-अलग तरह की हैं
- कटाई के बाद बर्बादी कम करने के लिए सोलर ड्रायर
- केले के रेशे निकालने की यूनिट्स और मशरूम की खेती
- ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए एग्री-बिज़नेस वर्कशॉप और स्किल बिल्डिंग प्रोग्राम
और सबसे ख़ास बात ये है कि वो सिर्फ़ पारंपरिक किसानों तक सीमित नहीं रहते। भूपेश मुस्कुराते हुए कहते हैं-
“हम उन आईटी प्रोफ़ेशनल्स और शहरी युवाओं को भी ट्रेनिंग देते हैं, जो करियर बदलकर एग्रीप्रेन्योर बनना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य सरल है- खेती को फिर से कूल बनाना।”
भावी एक्वा: मछुआरों को मिला नया रास्ता
जेडीआर एग्रीटेक के तहत एक प्रेरणादायक उदाहरण है भावी एक्वा एंड फिश फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (BAFFPC)। नेल्लूर ज़िले के निधिमुसली गांव में स्थित, BAFFPC एक मिशन के साथ शुरू हुआ- मछुआरों को उनके परिश्रम का सही मूल्य दिलाना। करीब 1000 सदस्यों से मछली संग्रह कर BAFFPC ने उन्हें थोक में निर्यात कंपनियों को बेचना शुरू किया, जिससे मछुआरों को बेहतर दाम और मुनाफ़ा मिल सके।
NABARD, SFAC, मत्स्य विभाग और आंध्र प्रगति ग्रामीण बैंक के समर्थन से, भावी एक्वा की बिक्री 2017-18 में 1.35 लाख रुपये से बढ़कर 2019-20 में 51.7 लाख रुपये हो गई। लेकिन वो यहां नहीं रुके। उन्होंने ‘गुणपति’ ब्रांड लॉन्च किया और मछली से बने वैल्यू-ऐडेड प्रोडक्ट्स जैसे मछली के अचार, खाद बनाने शुरू किए। साथ ही, डिजिटल मार्केटिंग की ओर भी कदम बढ़ाया ताकि पूरे व्यापार की बागडोर किसानों और मछुआरों के हाथों में रहे और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
तकनीक और नवाचार सीधे किसानों तक पहुंचाना
“किसानों को एक्सपोज़र चाहिए,” भूपेश मज़बूती से कहते हैं। “सिर्फ औज़ार देना काफ़ी नहीं है। उन्हें तकनीक समझनी होगी, उसे काम करते देखना होगा और उस पर विश्वास करना होगा।”
इसीलिए जेडीआर एग्रीटेक अवेयरनेस प्रोग्राम्स, ट्रेनिंग ऑफ़ ट्रेनर्स, और फ़ील्ड विज़िट्स आयोजित करता है। वो प्रमुख कृषि संस्थानों के साथ मिलकर काम करते हैं। नई तकनीक और नवाचार सीधे उन किसानों तक पहुंचाते हैं, जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
वो किसानों को फसल विविधीकरण के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। सिर्फ़ धान से आगे बढ़कर, बागवानी, फूल, सब्ज़ियां, और सोलर कोल्ड स्टोरेज सॉल्यूशन्स की ओर।
राष्ट्रीय विस्तार की योजना और उत्तर भारत की ओर कदम
भविष्य की बात करते समय भूपेश की आंखों में चमक आ जाती है।
“हम हैदराबाद तक विस्तार कर रहे हैं। हम प्राकृतिक खेती हब, पोषण-केंद्रित प्रोसेसिंग यूनिट्स, एग्रीटूरिज़्म प्रोजेक्ट्स, यहां तक कि ग्रामीण पर्यटन केंद्र बनाना चाहते हैं।”
और जब मैं उत्तर भारत में उनके मॉडल को लाने की बात करती हूं? उनका जवाब तुरंत आता है:
“बिल्कुल। हम हमेशा तैयार हैं और ज़्यादा किसानों को ट्रेनिंग देने, ज़्यादा पार्टनर्स के साथ काम करने, और भारत के हर कोने तक पहुंचने के लिए।”
हर भारतीय किसान के लिए आशा का संदेश
किसान, उद्यमी या जिज्ञासु शहरी लोग भूपेश की मुहिम से कैसे जुड़ सकते हैं? इसके जवाब में भूपेश कहते हैं-
“ये सरल है, एक ट्रेनिंग में आइए। ज़मीन पर काम देखिए। प्रक्रिया को समझिए। हम वीडियो शेयर कर सकते हैं, वर्कशॉप चला सकते हैं, लेकिन अगर आप वास्तव में शुरुआत करना चाहते हैं तो आपको इसे प्रत्यक्ष अनुभव करना होगा।”
भूपेश रेड्डी की कृषि उद्यमियों को सलाह
- लगातार नवाचार करें
- वैल्यू एडिशन पर ध्यान दें
- सामूहिक ताक़त बनाइए
- सीखना कभी मत रोकिए
क्यों ये कहानी हम सबके लिए मायने रखती है?
एक ऐसी दुनिया में, जहां खेती को अक्सर आखिरी विकल्प माना जाता है, भूपेश रेड्डी इस सोच को बदल रहे हैं। वो साबित कर रहे हैं कि ग्रामीण नवाचार सिर्फ़ एक नारा नहीं है, ये जीवन रेखा है कि किसान एंटरप्रेन्योर बन सकते हैं।
ग्रामीण महिलाएं अपनी खुद की कंपनियों की सीईओ बन सकती हैं और भारतीय कृषि सिर्फ़ दान या सहानुभूति से नहीं, बल्कि रणनीति, साहस और सामूहिक दृष्टि से फल-फूल सकती है।
चाहे आप नीति-निर्माता हों, छात्र हों, या बस भारत के भविष्य के बारे में उत्सुक हों- भूपेश की यात्रा एक स्पष्ट और शक्तिशाली सबक देती है: भारत की समृद्धि का भविष्य उसकी ग्रामीण ज़मीनों से होकर जाता है और भूपेश रेड्डी जैसे लोग सुनिश्चित कर रहे हैं कि हम ये कभी न भूलें।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।