Seaweed Farming: जानिए कैसे समुद्री शैवाल की खेती ज़बरदस्त कमाई का ज़रिया बन सकती है

मछली पालन, नारियल की खेती और टूरिज़्म के बाद अब समुद्री शैवाल की खेती लक्षद्वीप के लोगों की आमदनी का नया ज़रिया बन रही है। प्रशासन इसे एक उद्यम के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

शैवाल की खेती

समुद्री शैवाल की खेती Seaweed Farming: शैवाल जिसे अंग्रेज़ी में Seaweed कहा जाता है, एक तरह का जलीय पौधा (Aquatic plant) होता है। इसमें जड़, तना और पत्तियां और फूल नहीं होते हैं। ये समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। ये पानी के नीचे जंगल बनाते हैं, जिन्हें केल्प फॉरेस्ट (Kelp Forest) कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे जैसे जलीय जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हैं।

इन शैवालों का इस्तेमाल दवा बनाने से लेकर उर्वरक और भोजन के रूप में भी किया जा सकता है। इसके लिए सही शैवाल की पहचान ज़रूरी है। शैवाल बहुत उपयोगी है। यही वजह है कि लक्षद्वीप में प्रशासन ने शैवाल की खेती को एक व्यवसाय के रूप में विकसित करके लोगों को आजीविका का नया साधन देने की कोशिश की है।

शैवाल की खेती का केंद्र बनाने की योजना

अपने खूबसूरत समुद्री तट के लिए जाना जाने वाला लक्षद्वीप अब जल्द ही शैवाल की खेती के लिए मशहूर हो सकता है। यहां के 9 द्वीपों पर समुद्री शैवाल की खेती के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसका मकसद है क्षेत्र की तरक्की कराना। दरअसल, प्रशासन के इस कार्यक्रम को ICAR-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) का तकनीकी समर्थन मिला हुआ है। लक्षद्वीप के शांत और प्रदूषण मुक्त जलवायु में गुणवत्ता वाले समुद्री शैवाल के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इन शैवालों का इस्तेमाल फार्मास्यूटिकल्स, भोजन और न्यूट्रास्यूटिकल्स में किया जा सकता है।

Seaweed Farming: जानिए कैसे समुद्री शैवाल की खेती ज़बरदस्त कमाई का ज़रिया बन सकती है

समुद्री शैवाल की खेती
लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल की खेती (तस्वीर साभार: icar)

शैवाल की प्रजातियां

शैवाल की ग्रेसिलिरिया एडुलिस, ग्रेसिलिरिया क्रैसा, ग्रेसिलिरिया वेरुकोसा, सरगस्सुम एसपीपी और टर्बिनारिया एसपीपी जैसी कई प्रजातियां होती हैं। लक्षद्वीप में 2500 बांस राफ्ट पर स्वदेशी लाल शैवाल की ग्रेसिलेरिया एडुलिस और एकेंथोफोरा स्पाइसीफेरा किस्म की खेती की जा रही है।

इससे 10 महिला स्वयं सहायता समूहों के 100 परिवारों को लाभ हो रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute) की ओर से आयोजित प्रदर्शन का मकसद द्वीप समूह में शैवाल की खेती को लोकप्रिय बनाना है ताकि इससे लोगों की आजीविका में सुधार हो। शैवाल की खेती से बड़े पैमाने पर महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जिससे उन्हें कमाई का नया ज़रिया मिल गया है।

शैवाल की 60 गुना वृद्धि

ICAR-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) की ओर से हाल ही में किए गए अध्ययन ने द्वीप समूह में शैवाल की अपार वृद्धि की संभावनाओं पर मुहर लगाई है। लक्षद्वीप के विभिन्न लैगून में स्वदेशी समुद्री शैवाल की प्रजातियों के विकास के बारे में पता चला है जिसमें ग्रेसिलेरिया एडुलिस प्रजाति की सबसे तेज़ वृद्धि देखी गई। इसमें 45 दिनों में लगभग 60 गुना वृद्धि हुई।

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लक्षद्वीप प्रशासन ने बहु-स्थानीय परीक्षण खेती और हितधारकों की क्षमता निर्माण के लिए संस्थान के साथ हाथ मिलाया है। इस तरह 2020-21 के दौरान किल्टन, चेतलाह, कदमथ, अगत्ती और कवारत्ती द्वीपों में प्रायोगिक तौर पर परीक्षण खेती का आयोजन किया गया, जो सफल रही।

समुद्री शैवाल की खेती
लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल की खेती (तस्वीर साभार: civileats)

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हर साल 75 हज़ार करोड़ की खेती

संस्थान की ओर से किए अध्ययन से ये भी पता चला है कि द्वीप समूह में हर साल करीब 30,000 टन सूखे समुद्री शैवाल के उत्पादन की क्षमता है, जिसकी कीमत 75 हज़ार करोड़ है। इतना उत्पादन 21,290 हेक्टेयर वाले द्वीप के सिर्फ़ 1 प्रतिशत क्षेत्र पर खेती से ही प्राप्त किया जा सकता है।

पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद

समुद्र बड़े पैमाने पर कार्बनडाईऑक्साइड को अवशोषित करता है और समुद्री शैवाल में कार्बन को अलग करने का गुण होता है। इस तरह बड़े पैमाने पर समुद्री शैवाल की खेती से प्रति दिन लगभग 6,500 टन कार्बन डाईऑक्साइड (Carbon Dioxide) को अलग किया जा सकता है। इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने। समुद्री शैवाल न सिर्फ़ द्वीप के लोगों को आजीविका प्रदान करेगी, बल्कि समुद्र को साफ रखकर पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी।

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