खेती के व्यवसाय पर पानी, मिट्टी, बीज, खाद, जलवायु, प्राकृतिक आपदाएँ, बाज़ार की माँग और पूर्ति जैसे अनेक कारकों का भरपूर असर पड़ता है। देश के बहुत बड़े सिंचित इलाके में फसलों की सिंचाई घटिया क्वालिटी वाले लवणीय या क्षारीय पानी से होती है। यही वजह है कि दुनिया के तमाम देशों के मुकाबले भारत के कुल सिंचित क्षेत्र का इलाका ज़्यादा होने के बावजूद हमारे खेतों की उत्पादकता काफ़ी कम है। ऐसे में पानी की जाँच करना और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। ख़राब पानी की वजह से हमारी खेती ज़्यादा लाभकारी नहीं बन पाती। इसीलिए किसानों को पानी की गुणवत्ता पर बहुत ध्यान देना ज़रूरी है।
धरती की 75 प्रतिशत सतह पर पानी है। इसमें से 97 प्रतिशत ख़ारा समुद्रीय जल है। बाक़ी पानी ही खेती और इंसान के इस्तेमाल के लायक है। जिस पानी का हम उपयोग करते हैं, वह पृथ्वी के सतही पानी का महज 0.5 प्रतिशत है। देश की 72 प्रतिशत सिंचाई प्रदूषित हो चुके भूजल पर निर्भर है। हमारे कई राज्यों के भूजल की गुणवत्ता लवणीय या क्षारीय दर्ज़े की है। इसीलिए हमें खेती के दौरान ही सिंचाई वाले दूषित पानी का भी प्रबन्धन करना बेहद ज़रूरी है। वर्ना, हम अपने खेतों के गिरते उपजाऊपन से उबर नहीं सकते।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सिंचाई के घटिया पानी की वजह से मिट्टी इसलिए ख़राब हो जाती है क्योंकि वाष्पीकरण की वजह से जब खेत का पानी सूखने लगता है तो उसमें मौजूद लवणीय और क्षारीय पदार्थ या मिट्टी की सतह पर ही रह जाते हैं या पसीजकर थोड़ा नीचे की उस सतह तक जा पहुँचते हैं जहाँ से फसल की जड़ों को पोषण लेना होता है। इन दोनों ही वजह से मिट्टी में पोषक तत्वों का सन्तुलन ख़राब हो जाता है और उन्नत किस्म के बीजों की भी अंकुरण प्रक्रिया लड़खड़ा जाती है। पौधों का धीमे विकास, जल्द मुरझाने और सूखने के रूप में इसका प्रभाव नज़र आता है।
पानी की क्वालिटी को कैसे परखें?
मिट्टी की तरह पानी की भी रासायनिक जाँच करवाने से हमें उसमें मौजूद लवणों के अनुपात का पता चलता है। सिंचाई के लिए पानी की गुणवत्ता का निर्धारण करने के लिए निम्न मानकों को आवश्यक माना गया है।
लवणों की सान्द्रता: इसे पानी की विद्युत चालकता अथवा electric conductivity के रूप में मापा जाता है। इसे डेसी सीमन प्रति मीटर या मिलीलीटर प्रति सेंटीमीटर के रूप में प्रदर्शित करते हैं। सामान्यत: पानी में सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे धनायन और कार्बोनेट, बाईकार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फेट, नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे ऋणायन पाये जाते हैं। इसके अलावा, सिलिका तथा बोरॉन आदि आयन भी होते हैं।
अवशोषित सोडियम कार्बोनेट: इसे अवशोषित सोडियम कार्बोनेट (reserve sodium carbonate, RSC) के रूप में दर्शाते हैं। इसमें पता चलता है कि पानी में कार्बोनेट और बाईकार्बोनेट आयनों की मात्रा क्लोराइड और सल्फेट आयन की तुलना में कितनी अधिक है?
सोडियम अवशोषण अनुपात (Sodium absorption ratio, SAR): ये पानी में मौजूद धनायनों में कैल्शियम तथा मैग्नीशियम की अपेक्षा सोडियम आयन के तुलनात्मक रूप से कितना अधिक है, इसकी जानकारी देता है।
लवणीय और क्षारीय पानी का प्रभाव
लवणीय और क्षारीय पानी के प्रयोग से मिट्टी का विनिमय सोडियम प्रतिशत बढ़ जाता है। इससे मिट्टी के कण बिखर जाते हैं, गीले होने पर ढेले का रूप ले लेते हैं और सूखने पर कठोर हो जाते हैं। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह पर बारीक पपड़ी बन जाती है और पौधों को समुचित पानी नहीं मिल पाता। लवणीय और क्षारीय पानी से मिट्टी का pH मान बढ़ जाता है और नाइट्रोजन, जिंक, आयरन जैसे पोषक तत्व पौधों को नहीं मिल पाते। इससे मिट्टी में कैल्शियम तथा मैग्नीशियम का अनुपात घट जाता है और सोडियम, बोरॉन, मॉलिब्डेनम, क्लोरीन, लिथियम, सेलिनियम जैसे तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। इन सभी के असर से मिट्टी का जहरीलापन यानी intoxication बढ़ जाता है।

कैसे करें लवणीय और क्षारीय पानी से मुक़ाबला?
मिट्टी की किस्म: सिंचाई के ज़रिये मिट्टी में जमा होने वाले लवणों का अनुपात मिट्टी की किस्म पर भी निर्भर करता है। सामान्य पानी निकास व्यवस्था में दोमट और बलुई जैसी मोटे किस्म की मिट्टी पर लवणीय पानी का आधा भाग जमा हो जाता है। इसी तरह बलुई दोमट और दोमट में करीब बराबर भाग तथा मटियार और मटियार दोमट जैसी बारीक मिट्टी में सिंचाई के पानी में मौजूद लवणीय अंश दोगुनी मात्रा में जमा होती है। इसीलिए यदि पानी में लवण अनुपात बहुत ज़्यादा हो, उसे मोटी किस्म वाली मिट्टी में इस्तेमाल करें।
- जहाँ सालाना वर्षा 400 मिलीमीटर से कम नहीं होती हो वहाँ लवण सहनशील और मध्यम लवण सहनशील वाली फसलों का ही चुनाव करना चाहिए।
- जहाँ 400 मिलीमीटर से ज़्यादा बारिश होती है, वहाँ पानी के साथ नुकसानदायक लवणों का बहाल आसानी से हो जाता है। लिहाज़ा, ऐसे इलाकों में परम्परागत ढंग से सिंचाई हो सकती है।
- जिस साल बारिश सामान्य से कम हो, उस साल बुआई के पहले लवणीय पानी से भारी सिंचाई करना चाहिए। इससे आगामी रबी के मौसम में लवणीय तत्व जड़ क्षेत्र के नीचे चले जाएँगे।
- लवणीय पानी से सिंचाई में कुल सिंचाइयों की संख्या को बढ़ाना भी बेहद उपयोगी उपाय है। इसके लिए प्रत्येक सिंचाई में कम से कम पानी का इस्तेमाल होना चाहिए या हरेक सिंचाई का हल्की-हल्की ही रखना चाहिए।
- नहरी और क्षारीय पानी को मिलाकर या बारी-बारी से इस्तेमाल करना भी उपयोगी रहता है। इसके लिए बुआई से पहले खेत में अच्छे से पलेवा कर लेना चाहिए और नहर का पानी इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि खड़ी फसल की सिंचाई के लिए क्षारीय पानी का उपयोग किया जा सकता है।
- क्षारीय पानी से प्रभावित मिट्टी में सामान्य मिट्टी की अपेक्षा 15-20 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन खाद देना भी बहुत फ़ायदेमन्द साबित होता है।
- लवणीय और क्षारीय मिट्टी में बीज की मात्रा भी 25 प्रतिशत अधिक देनी चाहिए।
जिप्सम से मिट्टी का उपचार
क्षारीय पानी की सिंचाई से ख़राब हुई मिट्टी को सुधारने के लिए जिप्सम जैसे कैल्शियमयुक्त रासायनिक सुधारक का इस्तेमाल करना चाहिए। जिप्सम से अवशोषित सोडियम कार्बोनेट निष्क्रिय हो जाता है। लेकिन इसकी सही मात्रा जानने के लिए मिट्टी और पानी की जाँच करवाना ज़रूरी है। जिप्सम छना हुआ होना चाहिए। इसे मई के अन्तिम सप्ताह अथवा जून के पहले सप्ताह में खेत में 10 सेंटीमीटर की गहराई तक मिलाना चाहिए।
जिप्सम पानी में कम घुलनशील होता है। इसीलिए खेत में 15 दिनों तक करीब 5 सेंटीमीटर पानी भरा रहना चाहिए। इससे कैल्शियम घुलकर मिट्टी में जाएगा तथा सोडियम बाइकार्बोनेट मिट्टी से बाहर आ जाएगा। जिप्सम की बोरी को पानी के हौज़ में रखकर भी सिंचाई में इस्तेमाल कर सकते हैं। जिप्सम मिलाने के बाद यदि हरी खाद की फसल बोकर और पलटकर गेहूँ बोया जाए तो बहुत अच्छी उपज मिलती है।
खाद और उर्वरक से मिट्टी का उपचार
लवणीय तथा क्षारीय पानी से प्रभावित खेतों में गोबर और कम्पोस्ट की खाद का इस्तेमाल भी बेहद ज़रूरी है। इससे लवणों के बह जाने की प्रक्रिया आसान हो जाती है, मिट्टी के भौतिक गुण सुधरते हैं और पोषक तत्व बढ़ते हैं। लवणीय पानी से सिंचाई करके अच्छी उपज पाने के लिए सामान्य से करीब 20 से 30 प्रतिशत ज़्यादा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश तथा ज़िंक उर्वरकों की मात्रा का इस्तेमाल भी मिट्टी की जाँच करवाकर करना चाहिए।

लवण सहनशील फसलों का चुनाव
लवणीय पानी से सिंचाई के बावजूद खेत से अच्छी पैदावार लेने के लिए ऐसी फसलों का चुनाव भी बेहद महत्वपूर्ण होता है जिनमें लवणीय सहनशील ज़्यादा होती है। मिसाल के तौर पर कपास जैसी फसलें लवणीय पानी के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। बरमूडा घास, पारा घास और चुकन्दर जैसी फसलों की लवणीय संवेदनशीलता और भी कम होती है यानी इन्हें कम उपजाऊ खेतों में भी उगाया जा सकता है।
फसलों में मौजूद लवणीय सहनशीलता का स्वभाव | ||||
सहनशीलता स्तर | खाद्यान्न, दलहन और तिलहन | सब्ज़ियाँ | चारा फसलें | फल |
अधिक सहनशील | जौ, चुकन्दर, कपास, ढेंचा | पालक, शलजम, शकरकन्द | साल्ट बुश, बथुआ, दूब घास, बरमूडा घास, जौ | खजूर, नारियल |
मध्यम सहनशील | गेहूँ, जई, धान, ज्वार, तारामीरा, सरसों, मक्का, बाजरा, गन्ना, सूरजमुखी, अरंड | टमाटर, पत्ता गोभी, आलू, गाजर, प्याज़, बैंगन, कद्दू, मेथी, मटर | रिजका, बरसीम सूडान घास, जई, नेपियर घास, मक्का, ज्वार | अनार, अंजीर, जैतून, अंगूर |
संवेदनशील | चना, मटर, ग्वार, तिल, लोबिया, मोंठ, मूँगफली, मूँग | सेम, भिंडी, तोरई, लौकी, मूली | नाशपाती, सेब, सन्तरा, बेर, बादाम, नीम्बू आडू, पपीता, आम, अमरूद |
ये भी पढ़ें- लवणीय मिट्टी (Saline Soil): जानिए कैसे करें लवणीय या रेह मिट्टी का सुधार और प्रबन्धन?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- What is Precision Farming: स्मार्ट तकनीक से Agriculture Revolution! क्यों ये है भविष्य की खेती? पढ़ें डीटेल मेंप्रिसिजन फार्मिंग (Precision Farming) एक ऐसी आधुनिक तकनीक जो GPS, सेंसर, ड्रोन और AI का इस्तेमाल करके खेती को ‘इंच-इंच सटीक’ बना देती है।
- गुरेज़ घाटी में खेती और बागवानी को मिली नई पहचान, MIDP और HADP Schemes से आई हरियाली की बहारगुरेज़ घाटी में MIDP और HADP Schemes से खेती में आई क्रांति, किसान अब उगा रहे हैं सेब, चेरी और सर्दियों की सब्ज़ियां।
- 10 Years Of Digital India : e-NAM के ज़रीये किसानों की बदल रही जिंदगी, नई टेक्नोलॉजी से आई डिजिटल क्रांतिडिजिटल क्रांति (10 Years Of Digital India) ने किसानों की जिंदगी को कैसे बदला है? ई-नाम (e-NAM) एक ऐसी ही क्रांतिकारी पहल है, जिसने कृषि व्यापार (Agricultural Business) को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त करके किसानों को सीधा बाजार से जोड़ दिया है।
- ‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project: मध्य प्रदेश सरकार की मदद से महिलाओं को मिलेगी आर्थिक आज़ादी‘एक बगिया मां के नाम’ (‘Ek Bagiya Maa Ke Naam’ Project) नाम की इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की हज़ारों महिलाओं को अपनी ज़मीन पर फलदार पौधे लगाने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और प्रदेश हरा-भरा बनेगा।
- VIV ASIA Poultry Expo 2026: भारत में पहली बार होने जा रहा है लाइव स्टॉक एक्सपो का महाकुंभ!दुनिया के सबसे बड़े लाइव स्टॉक और पोल्ट्री एक्सपो (The world’s largest livestock and poultry expo) में से एक, VIV ASIA, (VIV ASIA Poultry Expo 2026) अब भारत में होने जा रहा है। ये पहली बार है जब ये प्रतिष्ठित एक्सपो थाईलैंड और यूरोप से निकलकर भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।
- हेम्प वेस्ट से बन रही बायो-प्लास्टिक, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रहा नया सहाराहेम्प वेस्ट से बन रही बायो-प्लास्टिक (Bio-plastic being made from hemp waste) दे रही पर्यावरण को राहत और गांवों को रोज़गार, संभल में शुरू हुआ हरित नवाचार।
- 200 Years of Assam Tea: स्वाद, विरासत और इनोवेशन संग न्यूयॉर्क में जश्न, धूमधाम से मना असम चाय का द्विशताब्दी समारोहन्यूयॉर्क में समर फैंसी फूड शो 2025 (Summer Fancy Food Show 2025) में असम चाय के 200 साल पूरे (200 Years of Assam Tea) होने का भव्य उत्सव मनाया।
- National Turmeric Board Inaugurated: किसानों को मिली बिचौलियों से मुक्ति, अब दुनियाभर में धाक जमाएगी ‘निज़ामाबाद की हल्दी’केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह (Union Cooperation Minister Amit Shah) ने ‘राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड’ (National Turmeric Board) का उद्घाटन किया। ये कदम दशकों से हल्दी किसानों की मांग को पूरा करने वाला साबित होगा।
- गुना का गुलाब अब महकेगा पेरिस और लंदन तक – गुलाब की खेती से किसानों को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय बाज़ारगुलाब की खेती से गुना के किसान अब पेरिस और लंदन में गुलाब भेजने को तैयार हैं। गुना का गुलाब देगा अंतरराष्ट्रीय पहचान।
- Obesity in India: पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में की ‘कम तेल,अच्छी सेहत’ की अपील, FSSAI ने दिये मोटापा कम करने के ज़बरदस्त टिप्स!मोटापे की बढ़ती समस्या (Obesity in India) पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी मुहिम शुरू करने का आग्रह किया है। यह सिर्फ एक सुझाव नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मिशन है, जिसमें हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। साथ ही, FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) और AIIMS की विशेषज्ञ डॉ. स्वप्ना चतुर्वेदी ने स्वस्थ खानपान के ऐसे ऑप्शन सुझाए हैं, जो न सिर्फ आसान हैं बल्कि सेहत के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं।
- डोंडुबाई हन्नू चव्हाण जिन्होंने अपनाई एकीकृत कृषि प्रणाली और बदल दी ज़िंदगीएकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर डोंडुबाई चव्हाण ने खेती की तस्वीर बदली, कम ज़मीन में हासिल की लाखों की कमाई और सम्मान।
- Agri Infra Fund (AIF): किसानों और उद्यमियों के सपनों को कृषि इंफ्रा फंड दे रहा नई उड़ान, जानिए कैसे करें अप्लाईकृषि अवसंचना कोष (Agri Infra Fund – AIF) के जरिए सरकार किसानों, एग्री-उद्यमियों, FPOs (किसान उत्पादक संगठनों) और कृषि व्यवसायियों को वित्तीय सहायता देकर आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद कर रही है।
- DialogueNEXT 2025: विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन, CIMMYT और बोरलॉग संस्थान के साथ किसानों से होगा संवाद, बढ़ेगी विज्ञान की रफ्तार!DialogueNEXT 2025 का आयोजन ICAR, विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन (World Food Prize Foundation), CIMMYT और बोरलॉग इंस्टीट्यूट (Borlaug Institute) के साथ मिलकर 8-9 सितंबर 2025 में किया जा रहा है।
- Agri Stack: ‘किसान पहचान पत्र’ से लेकर किसानों का नया डिजिटल साथी Multilingual AI Chatbot के बारें में अहम बातेंएग्री स्टैक (Agri Stack) भारत सरकार की एक डिजिटल पहल है, जिसका उद्देश्य किसानों को तकनीक के जरिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करना है। भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक’ (‘Agri Stack’) पहल के तहत एक मल्टीलिंगुअल AI चैटबॉट लॉन्च (Multilingual AI chatbot) किया गया है, जो किसानों को उनकी भाषा में सलाह देता है।
- प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना सप्ताह 1 जुलाई से आरंभ, इस ख़रीफ़ सीजन में अपनाएं PMFBY का सुरक्षा कवचख़रीफ़ 2025 के लिए फ़सल बीमा पंजीकरण शुरू हो रहा है। प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना से फ़सल और किसान दोनों होंगे सुरक्षित।
- बुरहानपुर में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत कृषि सखियां बनीं गांव की नई कृषि मार्गदर्शकराष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से जुड़कर कृषि सखियां गांवों में प्राकृतिक खेती का ज्ञान फैला रही हैं और महिला किसानों को सशक्त बना रही हैं।
- Cloud Farming: क्लाउड फ़ार्मिंग आसमान से फ़सलों को पानी देने का एक नया तरीकाक्लाउड फ़ार्मिंग (Cloud Farming) एक तकनीक है जिससे कोहरे, धुंध और ओस जैसे अदृश्य जल स्रोतों को इकट्ठा कर सूखे क्षेत्रों में पानी जुटाया जाता है।
- Red Flour Beetle: अनाज का दुश्मन नंबर-1 ‘लाल आटा बीटल’ से बचाव के लिए IARI ने टेस्ट डेवलप किया‘लाल आटा बीटल’ (Red Flour Beetle) भंडारित अनाज को अंदर से खोखला कर देते हैं। ये कीट न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में किसानों और अनाज भंडारकर्ताओं (grain storekeepers) के लिए एक बड़ी समस्या बने हुए हैं।
- Improved Varieties Of Soybean: जीनोम एडिटिंग से तैयार की जाएंगी सोयाबीन की उन्नत किस्में, कृषि मंत्री का ऐलानभारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (Indian Soybean Research Institute) में आयोजित बैठक की। अब जीनोम एडिटिंग (Genome Editing) के ज़रीये से सोयाबीन की उन्नत किस्मों (Improved Varieties of Soybean) को उगाया जाएगा।
- समुद्र का रंग-बिरंगा जादूगर Clownfish: CMFRI ने क्लाउनफिश के Captive Breeding में सफलता पाईभारत के केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute) यानि CMFRI ने हाल ही में क्लाउनफिश (Clownfish) के बंदी प्रजनन (Captive breeding) में सफलता हासिल की है। इससे न सिर्फ़ समुद्री सजावटी मछलियों (marine ornamental fishes) के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी कम होगा।