देश की 47 प्रतिशत ज़मीन (15.97 करोड़ हेक्टेयर) पर खेती हो पाती है। जबकि 67.3 लाख हेक्टेयर ज़मीन ऐसी है जिसके लिए लवणता और क्षारीयता (salinity and alkalinity) बहुत गम्भीर समस्या बन चुकी है। इससे मिट्टी का उपजाऊपन घटता है और पैदावार गिरती है। लवणता और क्षारीयता की समस्या आमतौर पर ऐसे शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों में नज़र आती है जहाँ लवणीय मिट्टी में मौजूद लवणों का बारिश में बहकर निकलने का इन्तज़ाम नहीं होता या फिर जहाँ पर्याप्त बारिश नहीं होती। देश में 38 लाख हेक्टेयर ऊसर ज़मीन है, जिसे सुधारकर खेती योग्य बनाने की कोशिशें हो रही हैं।
देश में लवणग्रस्त ज़मीन की समस्या ख़ासतौर पर गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में बड़े पैमाने पर नज़र आती हैं। इन बड़े राज्यों में देश के कुल लवणीय और क्षारीय मिट्टी की तीन चौथाई इलाका मौजूद है। इसका रक़बा करीब 67.3 लाख हेक्टेयर है। लवणीय मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम या उनके क्लोराइड और सल्फ़ेट ज़्यादा मात्रा में होते हैं। ये सभी तत्व पानी में घुलनशील होते हैं। इन्हीं घुलनशील लवणीय तत्वों की सफ़ेद पपड़ी खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह पर बन जाती है।
लवणीय मिट्टी का प्रकोप अक्सर ऐसी ज़मीन पर नज़र आता है जहाँ जलभराव की समस्या होती है। इसीलिए इसे जलग्रस्त लवणीय मिट्टी या रेह भूमि भी कहते हैं। जलभराव की वजह से मिट्टी में मौजूद घुलनशील लवण तैरते हुए मिट्टी की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं और जल-निकासी का सही इन्तज़ाम नहीं होने की वजह से पानी के वाष्पन के बाद मिट्टी की सतह पर जमे रह जाते हैं। इसीलिए यदि लवणीय मिट्टी में जल निकास का सही इन्तज़ाम हो जाए तो इसकी भौतिक दशा सामान्यतः ठीक हो जाती है क्योंकि खेत में सफ़ेद पपड़ी बनकर जमने वाले अधिकांश घुलनशील लवण पानी के साथ बह जाते हैं।
ICAR-भारतीय मिट्टी विज्ञान संस्थान, भोपाल और मिट्टी विज्ञान और कृषि रसायन विभाग, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के विशेषज्ञों के अनुसार, क्षारीय और लवणीय मिट्टी की सफ़ेद पपड़ी को विद्युत चालकता, विनिमय योग्य सोडियम की मात्रा और pH मान के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
मिट्टी का वर्गीकरण
मिट्टी की प्रकृति | विद्युत चालकता (डेसी सीमन्स/ मीटर) | विनिमय योग्य सोडियम (%) | pH मान |
लवणीय | >4.0 | <15 | <8.5 |
क्षारीय और ऊसर | <4.0 | >15 | >8.5 |
लवणीय-क्षारीय | >4.0 | <15 | <8.5 |
लवणीय मिट्टी में सुधार के लिए फ़सल का चुनाव
लवणीय मिट्टी में सुधार के लिए फ़सल का चयन भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऐसी ज़मीन पर लवण सहनशील फ़सलों और किस्मों को अपनाना चाहिए, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पैदावार मिल सके। कम पानी की आवश्यकता वाली तिलहनी फ़सलें लवणीय जल को आसानी से सहन कर सकती हैं जबकि दलहनी फ़सलें इसके प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं। फ़सलों की लवण सहनशीलता और उन्नत प्रजातियों का चयन खेत की मिट्टी की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। इसीलिए सिंचाई जल की लवणता अथवा क्षारीयता को सहन करके ज़्यादा उपज देने के लिए विकसित की गयी विभिन्न फ़सलों की किस्मों को ही अपनाना चाहिए।
फ़सलों की लवण सहनशील प्रजातियाँ
फ़सल | लवण सहनशील प्रजातियाँ | क्षार सहनशील प्रजातियाँ |
धान | CSR 30, CSR 36, सुमति और भूतनाथ | CSR 10, CSR 13, CSR 23, सुमति और भूतनाथ, CSR 30 |
गेहूँ | WH 157, राज 2560, राज 3077, राज 2325 | KLR 1-4, KLR 19, KLR 210, KLR 213, राज 3077 |
सरसों | CS 52, CS 54, CS 56, CS 330-1, | CS 52, CS 54, CS 56 DIRA पूसा बोल्ड, RH 30 336 |
चना | करनाल चना -1 | करनाल चना-1 |
बाजरा | HSB 60, HM 269 HM 331, HM 427 | HSB 392, HM 269, HM 280 |
स्रोत: ICAR-केन्द्रीय मिट्टी लवणता अनुसन्धान संस्थान, करनाल
कैसे करें लवणीय और क्षारीय मिट्टी का सुधार?
जिप्सम का प्रयोग: क्षारीय मिट्टी के सुधार के लिए जिप्सम बहुत असरदार सुधारक तत्व है। यह बाज़ार में सस्ते दाम पर आसानी से मिलता है। सस्ता और बेहद उपयोगी होने की वजह से इसका बहुतायत से इस्तेमाल होता है। लेकिन जिप्सम के इस्तेमाल से पहले ये पक्का होना चाहिए कि इसकी शुद्धता 75% से कम नहीं हो। यदि मिट्टी का pH मान अधिक हो तो जिप्सम का सीधे खेतों में डालना चाहिए। आमतौर पर क्षारीय मिट्टी को सुधारने के लिए 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर जिप्सम की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन ये जानने के लिए किसी ख़ास खेत के लिए जिप्सम की कितनी मात्रा उपयुक्त होगी, किसानों को मिट्टी की जाँच करवाकर ही उसका उपचार करना चाहिए।
जल निकास विधि: चूँकि जिन खेतों में जल निकास की अच्छी व्यवस्था नहीं होती वहाँ लवणीय मिट्टी पनपने लगती है, इसीलिए लवणीयता से प्रभावित खेतों में सबसे पहले ज़्यादा से ज़्यादा नालियाँ और नाला वग़ैरह बनाकर जल निकासी की व्यवस्था को पुख़्ता करना बेहद ज़रूरी है। जहाँ भूमि में परतें सख़्त हों या भूजूल स्तर ऊँचा हो वहाँ के लिए ये विधि बहुत उपयोगी होती है। ऐसी ज़मीन पर सिंचाई का सही प्रबन्धन भी बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि सिंचाई की मात्रा, उनके बीच का अन्तराल तथा लगायी जाने वाले फ़सल, सभी का भूजल स्तर से सीधा नाता होता है। कम या ज़्यादा सिंचाई और अनुचित अन्तराल से भी पैदावार घटती है।
लीचिंग या निक्षालन विधि: इस विधि में सबसे पहले लवणीयता से पीड़ित खेत को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटकर इसकी मेड़बन्दी करते हैं। इसके बाद खेत में 10-15 सेमी की ऊँचाई तक पानी भर देते हैं। इससे मिट्टी में मौजूद घुलनशील लवण पानी में घुलकर उस स्तर से नीचे चले जाते हैं जहाँ तक फ़सल के पौधों की जड़ें पहुँचती हैं और अपने लिए पोषण हासिल करती हैं। लीचिंग विधि उन इलाकों में अपनानी चाहिए जहाँ भूजल स्तर बहुत नीचा हो। वर्ना इस बात जोख़िम बना रहेगा कि मिट्टी के घुलनशील लवण भूजल को ही प्रदूषित करने लगेंगे। लीचिंग विधि के लिए गर्मी के मौसम को उत्तम माना गया है। जिन इलाकों की मिट्टी की निचली सतहें कठोर परतों वाली हों, वहाँ लीचिंग विधि को नहीं अपनाना चाहिए।
भारतीय राज्यों में लवणग्रस्त मिट्टी का रक़बा
राज्य | लवणीय मिट्टी (हज़ार हेक्टेयर) | क्षारीय मिट्टी (हज़ार हेक्टेयर) | कुल लवणग्रस्त मिट्टी (हज़ार हेक्टेयर) |
आँध्र प्रदेश | 77.6 | 196.6 | 274.2 |
गुजरात | 1680.6 | 541.4 | 2222.0 |
उत्तर प्रदेश | 22.0 | 1347.0 | 1369.0 |
महाराष्ट्र | 184.1 | 422.7 | 606.8 |
पश्चिम बंगाल | 441.3 | 0 | 441.3 |
राजस्थान | 195.6 | 179.4 | 375.0 |
हरियाणा | 49.2 | 183.4 | 232.6 |
बिहार | 47.3 | 105.9 | 153.2 |
पंजाब | 0 | 151.7 | 151.7 |
मध्य प्रदेश | 0 | 139.7 | 139.7 |
तमिलनाडु | 13.2 | 354.8 | 368.0 |
कर्नाटक | 1.9 | 148.1 | 150.0 |
ओडिशा | 0 | 147.1 | 147.1 |
केरल | 20.0 | 0 | 20.0 |
अंडमान और निकोबार | 77. 0 | 0 | 77.0 |
जम्मू और कश्मीर | 0 | 17.5 | 17.5 |
कुल क्षेत्रफल | 2809.8 | 3953.3 | 6745.1 |
कुल लवणीय और क्षारीय मिट्टी: 67.5 लाख हेक्टेयर |
स्रोत: ICAR-राष्ट्रीय मिट्टी सर्वेक्षण और भूमि नियोजन ब्यूरो, नागपुर
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