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किसानों के लिए पेड़ों की खेती अब पारंपरिक खेती का विकल्प बनता जा रहा है। कई किसान पेड़ों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छी आय भी अर्जित कर रहे हैं। अहमदाबाद के किसान सुनील अगरवुड पेड़ की खेती कर रहे हैं। इसके साथ ही वो नर्सरी का भी संचालन करते हैं। किसान साथियों आइए जानते हैं अगरवुड का पेड़ होता क्या है और इसकी खेती कैसे की जाती है। सुनील किसानों को अगरवुड पेड़ों की खेती की ट्रेनिंग देते हैं। देश के कई हिस्सों से उनके साथ किसान जुड़े हुए हैं।
अगरवुड पेड़ की खेती कहां ज़्यादा होती है?
अगरवुड के पेड़ की खेती थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया में होती है। साथ ही यूएई, सऊदी अरब में भी इस पेड़ की खेती की जाती है। अगरवुड लकड़ी की कीमत 1 लाख डॉलर प्रति किलो के हिसाब से भारत के बाज़ार में मिलती है। इस लकड़ी का धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल किया जाता है। अरब के देशों में इत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे दुनिया का सबसे महंगा इत्र तैयार होता है।
ये करीब एक करोड़ रुपए प्रति तौले के हिसाब से बिकता है। अगर भारत की बात की जाए तो अगरवुड पेड़ की खेती सबसे ज़्यादा असम में होती है। अगरवुड का पेड़ 10 से 12 साल में बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है। इसकी असम, नगालैंड, मिज़ोरम, केरल, दक्षिण कोरिया, दुबई, कतर में डिमांड बहुत ज़्यादा है।
अगरवुड पेड़ की खेती के लिए कौनसी मिट्टी उपयुक्त?
सुनील बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने फ़ार्म की मिट्टी की जांच करवाई। मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8 होना चाहिए। मिट्टी की टीडीएस 1700 से 2500 से होना चाहिए। मिट्टी काली, चिकनी, दोमट, पथरीली, महरूम मिट्टी उपयुक्त होती है। इसकी खेती पहाड़ी और मैदानी इलाकों में की जा सकती है। अगरवुड की खेती में सिंचाई महीने में तीन बार करनी चाहिए। एक साल तक महीने में तीन बार सिंचाई करनी चाहिए। इस पेड़ की देखरेख शुरुआत में करनी पड़ती है।
अगरवुड पेड़ की खेती में नर्सरी
सुनील बताते हैं कि अगरवुड के पौधों को नर्सरी में चुनते समय उसके बीज का ध्यान रखना चाहिए। बीज अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए। एक्विलारिया वैरायटी के बीज का चयन करना चाहिए। ये सबसे महंगी वैरायटी है। इस प्रजाति में तेल की मात्रा ज़्यादा होती है। तेल की मात्रा 15 से 20 प्रतिशत तक होती है। इस प्रजाति की लकड़ी को इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट करने में आसानी होती है। इस वैरायटी का दक्षिण कोरिया और यूएई में इत्र बनाने का काम किया जाता है।
अगरवुड में रोपाई, सिंचाई और खाद
अगर किसान अच्छा बीज इस्तेमाल करेगा तो उसका उत्पादन और मुनाफ़ा ज्यादा होगा। एक एकड़ में 550 प्लांट 10 बाई 12 फुट के हिसाब से रोपाई करनी चाहिए। ड्रिप इरिगेशन या सामान्य तरह से सिंचाई कर सकते हैं। खाद के तौर पर ऑर्गेनिक मेन्योर का इस्तेमाल कर सकते हैं। पेड़ में जीवामृत भी दे सकते हैंi पौधे को 10 दिन के अंतराल में देना चाहिए एक साल तक। दूसरे साल में महीने में दो बार और तीसरे साल में महीने में एक बार देना पड़ता है। तीन साल तक पौधे की देखभाल अच्छे से करनी पड़ती है।
अगरवुड का पौधा लेते समय इन बातों का रखें ध्यान
किसानों को नर्सरी से पौधे लेते समय उसकी लंबाई का ध्यान रखना चाहिए। पौधे की लंबाई 2 से 3 फ़ीट होनी चाहिए। टिशू कल्चर प्लांट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सुनील इस तरह के प्लांट किसानों को ऑर्डर के हिसाब से देते हैं। सुनील बताते हैं कि जितना पुराना प्लांट होगा उसका विकास उतना ज़्यादा होगा।
अगरवुड पेड़ की खेती में कितनी लागत और मुनाफ़ा?
अगरवुड के पेड़ की खेती में एक एकड़ में 400 से 450 पौधे लग सकते हैं। 12 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट लंबाई की दूरी पर पौधे को रोपना चाहिए। अगरवुड प्लांट की कीमत 200 रुपए होती है। गड्डा एक फुट गहरा और एक फुट चौड़ा होना चाहिए। गड्ढे में पांच से दस ग्राम रिजेंडा डाल सकते हैं। जीवामृत, गाय का गोबर, प्रति गड्ढे में दो तीन किलो डालनी चाहिए।
अगरवुड की ऑर्गेनिक खेती करने से मुनाफ़ा डबल होने की संभावना बढ़ जाती हैं। प्लांट फ़र्टिलाइज़र में 25 से 30 हज़ार रुपए हर साल खर्च आता है। ड्रिप इरिगेशन में खर्चा आता है। एक एकड़ में दो से ढाई लाख रुपए तक का खर्चा आ जाता है।
अगरवुड की लकड़ी और पौधों में लगने वाला कीड़ा
चार से पांच साल बाद पेड़ में फंगल ट्रीटमेंट करवाएं। पेड़ में रेशम का कीड़ानुमा एक कीड़ा लगता है। इसके इलाज के लिए मिज़ोरम से विशेषज्ञों को इलाज के लिए बुलाते हैं। वो पेड़ों के सर्वे के बाद उस कीड़े का इलाज करते हैं। अगरवुड का पेड़ 10 से 12 साल में बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है। 15 से 17 सेंटीमीटर का डायमीटर होने पर पेड़ की कटाई करनी चाहिए। इसके साथ ही पेड़ की लंबाई 50 से 60 फ़ीट होनी चाहिए।
अगरवुड प्लांट में बीमारियां कम लगती हैं। कभी-कभी प्लांट पीले हो जाते हैं। इलेक्ट्रो बिटिया नाम का कीड़ा होता है, जो पेड़ पर चढ़ जाता है। इसके लिए बायो फर्टिलाइजर जीवाश्म का उपयोग करते हैं। गाय का गोबर इस्तेमाल करते हैं। कोई स्पेशल बीमारी नहीं आती है। प्लांट को सभी न्यूट्रिशन देना चाहिए, जिससे प्लांट में कोई बीमारी नहीं होती है।
अगरवुड पेड़ की खेती के लिए वन विभाग से परमिशन
अगरवुड की खेती करने के लिए वन विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है। तब ही किसान अगरवुड पेड़ की खेती कर सकता है। किसान को परमिशन के लिए खेत का सर्वे नंबर और खेती में आने वाले खर्चे की जानकारी देनी होती है।
अगरवुड की खेती पर सब्सिडी
अगरवुड की खेती में सरकार की तरफ़ से किसानों को सब्सिडी मिलती है। इसके लिए अपने नज़दीकी कृषि निदेशालय में संपर्क कर सकते हैं। इसके साथ ही फसल की वन विभाग में भी एंट्री करानी पड़ती है। इसके बाद वन विभाग के अधिकारी पेड़ों का निरीक्षण करते हैं। इसके बाद पेमेंट दो से तीन साल के बाद आता है।
अगरवुड पर सरकारी या प्राइवेट इंश्योरेंस
अगरवुड के पेड़ के लिए सरकार इंश्योरेंस करती है। अगरवुड की लकड़ी की कीमत करीब 1 लाख यूएस डॉलर प्रति किलोग्राम तक जाती है। अगर आपकी फसल को नुकसान होता है या लकड़ी चोरी हो जाती है, इस कारण हुए नुकसान की भरपाई सरकार करती है।