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आज के ज़माने में बहुत से लोग शायद महुआ से वाकिफ़ न हो, मगर गांव में रहने वाले लोग आज भी महुआ से अच्छी तरह परिचित हैं और इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। ऐसे ही इस्तेमाल किया जा रहा है कई तरह के महुआ के उत्पाद के तौर पर। महुआ का नाम बदनाम रहा है, वो इसलिए कि पुराने ज़माने में इसका इस्तेमाल सिर्फ़ शराब के लिए ही किया जाता था और लोगों को लगता है कि इसे खाने से नशा होता है। मगर असलियत तो ये है कि महुआ में कई औषधीय गुण होते हैं और ये सेहत के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद है।
अब धीरे-धीरे महुआ के औषधीय गुणों के प्रति जागरुकता बढ़ी है, जिससे किसान महुआ की खेती के लिए प्रेरित हुए हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की गुलेश्वरी ठाकुर ने भी महुआ को लेकर लोगों के मन में बनी पारंपरिक धारणा को तोड़ा है और वो महुआ से तरह-तरह के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बेच रही हैं। इतना ही नहीं, अपने इस काम की बदौलत उन्होंने कई महिलाओं को रोज़गार भी दिया है। गुलेश्वरी ठाकुर ने अपने इस सफ़र पर विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे से।
महुआ बना कमाई का ज़रिया
दूसरे राज्यों की तरह ही छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में भी पहले महुआ से शराब ही बनाई जाती थी, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। यहां पर कई स्वयं सहायता समूह हैं जो वनोपज से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना सिखा रहे हैं। इसके तहत महुआ से कई तरह के उत्पाद तैयार करके मार्केट में बेचे जा रहे हैं। लोगों को इसके औषधीय गुणों के प्रति भी जागरुक किया जा रहा है। कुछ ऐसा ही काम बस्तर ज़िले की गुलेश्वरी ठाकुर भी कर रही हैं।
महुआ से क्या-क्या बनाया जाता है?
उनकी कंपनी Bastar Foods महुआ से लड्डू, कुकीज़, चाय जैसे कई महुआ से उत्पाद (Mahua Products) बना रही है। इस कंपनी की नींव उन्होंने 2019 में रखी। इसके अलावा, वो महुआ को कच्चे रूप में भी बेच रही हैं। अपने सफ़र के बारे में बात करते हुए गुलेश्वरी ठाकुर बताती हैं कि महुआ से उनके इलाके में सिर्फ़ शराब बनाई जाती थी। इसके औषधीय गुणों के बारे में किसी को पता नहीं था, इसलिए जब उन्होंने इससे उत्पाद बनाना शुरू किया तो लोगों ने विरोध किया। मगर वो आगे बढ़ती गईं और शुरूआत में गांव की 10 महिलाओं के साथ मिलकर सिर्फ़ 200 रुपये के साथ काम शुरू किया।
सबसे पहले उन्होंने महुआ के लड्डू बनावाए और गांव के बाज़ार में उतारा। वो बताती हैं कि शुरू में लोगों ने इसे ये सोचकर खरीदा कि इसे खाने से नशा होगा होगा, इसलिए 10 रुपए की तय कीमत से भी वो ज़्यादा देने को तैयार थे और 50, 100 रुपए में उसे खरीदने लगे।
मगर दूसरी बार जब इस्तेमाल किया तो बोलने लगे कि इसमें तो नशा ही नहीं है, तो हमने समझाया कि ये सिर्फ़ नशे के लिए नहीं होता है और नशा करना किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। फिर 2019 में उन्होंने अपनी साथियों के साथ मिलकर Bastar Food नाम की कंपनी बनाई।
ख़ास तरीके का मसाला गुड़
गुलेश्वरी ठाकुर की कंपनी का फोकस महुआ के साथ ही दूसरे उत्पाद भी है। उनकी कंपनी ख़ास तरह का मसाला गुड़ भी बना रही है, जिसका इस्तेमाल चाय और काढ़े में किया जा सकता है। इस गुड़ की ख़ासियत ये है कि चाय में डालने पर चाय फटती नहीं है। वो बताती हैं कि मसाला गुड़ बनाने के लिए वो किसानों से गन्ना लेकर अपने सामने प्रोसेसिंग करवाती हैं और इसमें हरड़ा, बहेड़ा जैस हर्ब्स और कुछ ड्राई फ़्रूटस भी मिलाए जाते हैं जिससे इसकी पौष्टिकता और स्वाद दोनों बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, उनकी कंपनी इमली सॉस भी बनाती है, जिसमें ख़ासतौर पर बस्तर की इमली का इस्तेमाल किया जाता है।
महुआ खाने के क्या फ़ायदे हैं?
गुलेश्वरी ठाकुर का कहना है कि महुआ से बने उत्पादों की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है। इसलिए अब किसान भी महुआ की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनका कहना है कि करीब 600 किसान उनकी कंपनी से जुड़े हैं जो छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से हैं।
वो बताती हैं कि शुरुआत में लोगों को लगता था कि महुआ से तो शराब बनती है इसलिए उससे बनने उत्पाद भी अच्छे नहीं होंगे, ऐसे में लोगों को समझाना थोड़ा मुश्किल काम था। उन्होंने लोगों से कहा कि एक बार आप इस्तेमाल करके देखिए, और फिर धीरे-धीरे लोगों को ये पसंद आने लगा और बिज़नेस आगे बढ़ने लगा। वो बताती हैं कि दरअसल, महुआ में आयरन की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे खून की कमी वाले लोगों के लिए इसके बने लड्डू बहुत फ़ायदेमंद होते हैं।
गर्मियों में बहुत फायदेमंद है तिखुर का शरबत
महुआ, गुड़ और इमली सॉस के साथ गुलेश्वरी की कंपनी बड़े पैमाने पर एक और जिस उत्पाद को बना रही है वो है तिखुर पाउडर। गुलेश्वरी बताती हैं कि इसका पौधा हल्दी की तरह ही होता है, मगर हल्दी के उलट इसकी तासीर बहुत ठंडी होती है। इसलिए गर्मियों में इसका शरबत पिया जाता है। यहां तक कि व्रत में भी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं। ख़ासतौर पर बस्तर ज़िले में तिखुर की खेती होती है। तिखुर का हलवा भी बनाया जाता है। वैसे तो महुआ और तिखुर जैसी चीज़ें ज़्यादातर जंगल से आती हैं, मगर अब किसानों ने इनकी खेती शुरू कर दी है और लाखों की मात्रा में बेच रहे हैं।
तिखुर फसल उत्पादक किसानों की मदद
गुलेश्वरी ठाकुर बताती हैं कि उनकी कंपनी के साथ तो बहुत से किसान जुड़े ही हैं, लेकिन अगर कोई किसान उनके पास आता है और कहता है कि उसने बड़ी मात्रा में तिखुर की फसल उगाई है, तो वो अगर उत्पाद नहीं ले सकती हैं, तो वो किसानों को ऐसा मार्केटिंग चेन बनाकर देती हैं कि वो खुद अपना उत्पाद बेच सकते हैं।
जंगल से उत्पाद
आज के युवाओं को गुलेश्वरी ठाकुर यही सलाह देती हैं कि किताबी शिक्षा के साथ ही उन्हें ज़मीनी स्तर का काम सीखना ज़रूरी है। डिग्री के साथ ही हाथ का हुनर ज़रूर सीखें। वो कहती हैं कि जंगल में बहुत सी चीज़ें है जिसे बिज़नेस के रूप में आगे लाया जा सकता है।
जैसे पहले किसी ने सोचा नहीं था कि महुआ से इतना कुछ बनाया जा सकता है, लेकिन अब बड़े पैमाने पर महुआ के उत्पाद बनाकर बेचे जा रहे हैं। इसी तरह मिलेट्स या और भी चीज़ें जंगल मे मिलती है जिनके उत्पाद बनाकर बेच सकते हैं और इस तरह से युवा अपना बिज़नेस खड़ा सकते हैं।
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