कुलवंत राज की प्राकृतिक खेती की राह ने उन्हें बना दिया कृषि कर्मण पुरस्कार विजेता

कुलवंत राज और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी ने प्राकृतिक खेती से आय बढ़ाई, स्वस्थ फ़सलें उगाईं और कई किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।

प्राकृतिक खेती Natural farming

आज के समय में खेती सिर्फ़ जीविका का साधन नहीं रही, बल्कि यह स्वस्थ जीवन, स्वच्छ पर्यावरण और बेहतर भविष्य की कुंजी बन चुकी है। पहले जहां रासायनिक खेती को प्रगति का माध्यम माना जाता था, वहीं अब इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता घट रही है और लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

ऐसे समय में प्राकृतिक खेती एक नई रोशनी बनकर उभरी है। यह न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इससे किसानों की लागत भी कम होती है और उत्पादन में गुणवत्ता बढ़ती है। देशभर में अब हजारों किसान इस पद्धति को अपना रहे हैं और इससे लाभ कमा रहे हैं।

इन्हीं सफल किसानों में एक नाम है कुलवंत राज और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी का। इन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाकर न केवल अपनी आमदनी में इज़ाफा किया, बल्कि समाज में एक नई और प्रेरणादायक पहचान भी बनाई। आज उनके खेत न केवल हरियाली से लहराते हैं, बल्कि उनके अनुभव से और भी कई किसान प्रेरणा ले रहे हैं।

सम्मान और प्रेरणा की शुरुआत (The beginning of respect and inspiration)

कुलवंत राज और विजयलक्ष्मी को कृषि क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित और गर्व का प्रतीक माना जाने वाला पुरस्कार ‘कृषि कर्मण’ भी मिल चुका है। यह सम्मान उन्हें गेहूँ की उत्कृष्ट खेती और प्राकृतिक पद्धति में उनके शानदार योगदान के लिए प्रदान किया गया।

साल 2015–16 में जब उन्होंने पहली बार प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया, तो बहुत से लोगों ने इसे एक बड़ा जोखिम माना। आसपास के लोग कहते थे कि बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक के अच्छी फ़सल कैसे होगी? लेकिन कुलवंत राज और विजयलक्ष्मी ने अपने विश्वास को कमजोर नहीं होने दिया।

उन्होंने खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर प्राकृतिक तरीकों को अपनाने का निश्चय किया और इसके लिए बाकायदा प्रशिक्षण भी लिया। धीरे-धीरे उन्होंने इस विधा में निपुणता हासिल की और अपने खेतों में इसका सफल प्रयोग किया। आज उनकी मेहनत और लगन न केवल उन्हें सम्मान दिला चुकी है, बल्कि वे कई अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गए हैं।

पहली चुनौतियां और संघर्ष (First challenges and struggles)

शुरुआत आसान नहीं थी। पारंपरिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। पहले साल फ़सलों को संभालना कठिन रहा और पैदावार भी उम्मीद से कम थी। लेकिन तीसरे साल तक उन्हें अच्छी समझ आ गई और अब उनकी फ़सलें रासायनिक खेती से बेहतर होने लगीं। प्राकृतिक खेती ने उनकी मिट्टी की उर्वरता को भी पुनर्जीवित कर दिया और खेती में नई जान आ गई।

प्राकृतिक खेती से मिली सफलता (Success with natural farming)

कुलवंत राज और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी आज अपने 15 कनाल (लगभग 7.5 बीघा) ज़मीन पर पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्होंने रासायनिक खाद और कीटनाशकों को पूरी तरह त्याग दिया है और अब अपने खेतों में सिर्फ़ देसी और जैविक तरीकों से खेती करते हैं। उनके खेतों में आज कई तरह की फ़सलें उगाई जाती हैं — जैसे गेहूँ, प्याज़, लहसुन, मटर, धान, मूली, गोभी, शलजम, पालक और अन्य हरी सब्ज़ियां। यह विविधता न केवल खेत की उर्वरता को बनाए रखती है, बल्कि बाज़ार में उन्हें अच्छी कीमत भी दिलाती है।

सबसे बड़ी बात यह है कि प्राकृतिक खेती ने उनके ख़र्चों को बहुत कम कर दिया है। जहां पहले रासायनिक खेती में एक सीजन में लगभग 15,000 रुपये तक ख़र्च हो जाते थे, वहीं अब यह ख़र्च घटकर सिर्फ़ 500 रुपये तक रह गया है। यह फ़र्क़ उनके लिए आर्थिक रूप से एक बड़ी राहत बन गया। कम ख़र्च, अच्छा उत्पादन और स्वास्थ्यवर्धक फ़सलें — इन सबके कारण आज कुलवंत राज और विजयलक्ष्मी न सिर्फ़ खुद आत्मनिर्भर हुए हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गए हैं।

ग्राहकों का भरोसा (Customer Trust)

प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा लाभ है कि उत्पाद खुद-ब-खुद बिक जाते हैं। कुलवंत राज बताते हैं कि जो ग्राहक एक बार उनकी सब्ज़ी खरीदता है, वह बार-बार आता है। लोग अधिक दाम देने के लिए भी तैयार रहते हैं क्योंकि उन्हें शुद्ध और सुरक्षित भोजन मिलता है। 

कुलवंत राज कहते हैं –

 “मैं अपनी उपज को सड़क किनारे ठेले पर बेच देता हूँ। कभी भी सब्ज़ियां बचती नहीं हैं। लोग इंतजार करते हैं और 30 मिनट में ही पूरा माल बिक जाता है।”

समाज में योगदान (Contribution to society)

कुलवंत राज और विजयलक्ष्मी सिर्फ़ अपनी खेती तक सीमित नहीं हैं। वे आज आसपास के किसानों को भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए मार्गदर्शन दे रहे हैं। सिंबलवाला पंचायत समेत तीन अन्य पंचायतों में वे किसानों को प्रशिक्षण और जागरूकता से जोड़ चुके हैं। अब तक 400 से अधिक लोग उनकी कहानी से प्रभावित होकर इस पद्धति से जुड़े हैं।

स्वास्थ्य और मिट्टी की सेहत (health and soil health)

कुलवंत राज का अनुभव है कि प्राकृतिक खेती न केवल इंसानों को स्वस्थ भोजन देती है बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी सुधारती है। कुछ ही सालों में उनकी ज़मीन की उर्वरता में स्पष्ट फ़र्क़ देखने को मिला है। अब मिट्टी पहले से अधिक नरम और उपजाऊ हो चुकी है।

कुलवंत राज की प्राकृतिक खेती की राह ने उन्हें बना दिया कृषि कर्मण पुरस्कार विजेता

भविष्य की योजना (future plan)

आगे का सपना है कि अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाए ताकि गांव-गांव में स्वस्थ अनाज और सब्ज़ियां उपलब्ध हो सकें। कुलवंत राज मानते हैं कि जब किसान ख़र्च घटाएंगे और मुनाफ़ा बढ़ाएँगे तो उनका आत्मविश्वास और जीवन दोनों बदलेंगे।

निष्कर्ष (Conclusion)

कुलवंत राज और विजयलक्ष्मी की कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत और लगन से प्राकृतिक खेती हर किसान के लिए संभव है। यह पद्धति न केवल किसान की आर्थिक स्थिति सुधारती है बल्कि समाज को भी स्वस्थ और सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराती है। अगर हर किसान इस दिशा में कदम बढ़ाए, तो देश का भविष्य और खेती दोनों ही सुरक्षित हो सकते हैं।

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