जैविक खाद: कभी रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले रंजीत सिंह ने क्यों चुनी Organic Fertilizers की राह? जानिए कैसे बनाएं खाद

आखिर क्यों चुनी जैविक खेती की राह?

जैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। गाय का गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करती है, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।

खेती में रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते इस्तेमाल से साल दर साल मिट्टी सख़्त होती जा रही है। इससे ज़मीन की पानी सोखने की क्षमता और उपजाऊ गुण तेज़ी से कम हो रही है तथा देखते ही देखते बंजर होती जा रही है। रासायनिक खाद के इस्तेमाल से पैदा हुई उपज के सेवन से जनता की भी औसत सेहत बिगड़ी है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमताएँ घटी हैं। लेकिन सुखद ये भी है कि किसानों में इन सभी समस्याओं के प्रति जागरूकता भी धीरे-धीरे बढ़ी है। इसीलिए बीते वर्षों में किसानों ने फिर से प्राचीन जैविक खेती की ओर लौटना शुरू किया है।

2013 में किया जैविक खेती का रुख़

राजस्थान के सीकर ज़िले के किसान, रंजीत सिंह कई साल से अपने खेतों में सिर्फ़ जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। रंजीत सिंह के पास करीब तीन हेक्टेयर ज़मीन है। इसमें वो गेहूँ, चना, मेथी, सरसों, मूँगफली, मूँग, ग्वार और बाजरा के साथ तरबूज की खेती करते हैं। 2013 में रंजीत एक ऐसे ट्रस्ट के सम्पर्क में आये जो जैविक खाद के इस्तेमाल पर ज़ोर देने के बारे में किसानों को जागरूक और प्रशिक्षित करती थी। 

हालाँकि, उस दौर में भी रंजीत, रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव से अनजान नहीं थे। ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आने और कैंसर पीड़ितों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र उन्होंने तय कर लिया कि वो रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करेंगे। वो जैविक खाद से परिचित तो थे, लेकिन ज़रूरत तो थी इसमें पारंगत बनने की। लिहाज़ा, रंजीत ने कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री सुभाष पालेकर की ओर से खाटू श्याम में आयोजित छह दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया। इससे उन्हें जैविक खाद के विभिन्न रूपों की ख़ासियत के बारे सारी तमाम व्यावहारिक और प्रायोगिक जानकारी मिली।

जैविक खाद organic fertilizers

खेत में ही आते हैं ग्राहक

जैविक खेती के गुर सीखकर रंजीत ने इसका इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। इससे साल दर साल उनकी फसलें पहले से बेहतर होने लगीं। अब तो ऑर्गनीक उत्पादों के चहेते लोग उनके खेतों पर ही आकर उपज ले जाने लगे हैं। रंजीत की देखादेखी आसपास के कुछेक अन्य किसानों ने भी जैविक खेती अपनायी।  सभी उपज का बेहतर दाम पा रहे हैं। रंजीत भी अब अन्य गाँवों में जाकर किसानों को जैविक खेती के लाभ बताते हैं और उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। उनकी ऐसी कोशिशों की वजह से राजस्थान सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया है।

केले के कचरे banana agriculture waste

देसी गाय है अनिवार्य

रंजीत बताते हैं कि जैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है देसी गायों को पालना। रंजीत के पास आज कई गायें हैं। इनका गोबर और मूत्र जैविक खेती के आवश्यक तत्व हैं। जहाँ गाय के गोबर की खाद खेतों के लिए बेहतरीन पोषण का काम करते हैं, वहीं गोमूत्र का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में होता है। वो खेती में नये प्रयोग भी करते हैं और अपने अनुभवों के ज़रिये इसे बेहतर बनाने के लिए सलाह-मशविरा भी देते हैं।

जैविक खाद organic fertilizers

रंजीत बताते हैं कि गोबर की खाद से फसलों को बोने और गुड़ाई के समय डाली जाने वाली पाँच किस्म की जैविक खाद तैयार की जाती है। इनके नाम हैं- घन जीवामृत, बीजामृत, जीवामृत, नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र। उन्होंने इसे बनाने के तरीके के बारे में भी बताया।

1. घन जीवामृत बनाने का तरीका

घन जीवामृत एक जीवाणुयुक्त सूखी खाद है। इसे बुआई के वक़्त या खेतों में पानी देने के तीन दिन बाद डाला जाता है। इससे मिट्टी की उत्पादकता बढ़ती है। इसे बनाने के बाद छह महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

सामग्री (प्रति एकड़) – 100 किलोग्राम गाय का गोबर, 5 किलोग्राम गुड़, 2 किलोग्राम बेसन, 1 किलोग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी और 5 लीटर गोमूत्र।

विधि – घन जीवामृत बनाने के लिए इन सभी सामग्रियों को एक जगह इकट्ठा करके फावड़े की मदद से अच्छी तरह मिला लें। फिर इसे किसी छायादार स्थान पर फैलाकर किसी कपड़े या पोलीथिन से ढककर अच्छी तरह से सूखने के लिए छोड़ दें। फिर सूखी हुई खाद को बोरों या बैग में भरकर रखें और सही वक़्त पर खेतों में डालें।

2. बीजामृत बनाने का तरीका

बीजामृत खाद का इस्तेमाल बीजों और उससे अंकुरित हुए कोमल जड़ों को रोगों तथा कवक से हमलों से बचाने में कारगर है।

सामग्री (प्रति एकड़) – 5 किलोग्राम गाय का गोबर, 20 लीटर पानी, 5 लीटर गोमूत्र और 50 ग्राम चूना।

विधि – किसी कपड़े में गाय का गोबर बाँधकर उसे 12 घंटे तक पानी में लटकाकर रखें। इसी तरह एक लीटर पानी में चूना डालकर इसे रात भर के लिए छोड़ दें। अगली सुबह गोबर की पोटली को अच्छी तरह निचोड़कर उसका सारा रस उसी पानी में मिला लें। इस घोल में मुट्ठी भर मिट्टी डालकर अच्छी तरह से हिलाएँ। इस घोल में गोमूत्र और चूने का पानी भी मिलाकर अच्छी तरह से हिलाएँ।

3. जीवामृत बनाने का तरीका

जीवामृत बहुत ही प्रभावशाली जैविक खाद है। ये पौधे के तेज़ विकास के अलावा मिट्टी की उर्वरा सुधारने में बेहद उपयोगी है। ये पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। इससे पैदावार अच्छी होती है।

सामग्री (प्रति एकड़) – 10 किलोग्राम गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 1 किलोग्राम गुड़, 1 किलोग्राम बेसन, 5 किलो उपजाऊ मिट्टी और पानी।

विधि – उपयुक्त ड्रम में गोबर और गोमूत्र को डालकर अच्छी तरह से मिलाएँ। दूसरे बर्तन में गुड़, बेसन, मिट्टी और पानी को मिलाकर ऐसा घोल बनाएँ जिससे गाँठ न हो। इसे ड्रम में मिलाकर और कपड़े से ढककर छाया में रखें। पाँच-छह दिन तक इस घोल को रोज़ाना तीन-चार बार किसी लकड़ी की मदद से मिलाते रहें। जब इस घोल में बुलबुले उठने लगें तो जीवामृत तैयार हो गया। गर्मियों में जीवामृत जल्दी तैयार हो जाता है।

4. नीमास्त्र बनाने का तरीका

नीमास्त्र एक जैविक कीटनाशक है। इसे कीटों और छोटी सुंडियों से रोकथाम के लिए इस्तेमाल करते हैं।

सामग्री (प्रति एकड़) – 5 किलोग्राम नीम की पत्ती, 5 किलोग्राम नीम का फल, 5 लीटर गोमूत्र, 1 किलोग्राम गाय का गोबर और पानी।

विधि – सबसे पहले नीम की पत्तियों और फल को कूटकर या पीसकर प्लाटिक के बर्तन में मिला लें। फिर इसमें गोमूत्र और गाय का गोबर डालकर अच्छी तरह से मिला लें और जालीदार कपड़े से ढककर छाया में रख दें। तीन दिन बार इसे छानकर 100 लीटर पानी में मिलाएँ और फसलों पर छिड़काव करें। इस नीमास्त्र का प्रयोग छह महीने कर सकते हैं।

5. ब्रह्मास्त्र बनाने का तरीका

ब्रह्मास्त्र फसलों को कीट पतंगों से सुरक्षा देकर उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। इसे बनाकर छह महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

सामग्री (प्रति एकड़) – 10 लीटर गोमूत्र, 3 किलोग्राम नीम की पत्ती की चटनी, 2 किलोग्राम करंज की पत्ती की चटनी, 2 किलोग्राम सीताफल पत्ते की चटनी, 2 किलोग्राम बेल के पत्ते, 2 किलोग्राम अंडी के पत्ते की चटनी और 2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते की चटनी।

विधि – इन सामग्रियों से किसी पाँच के मिश्रण को गोमूत्र में डालकर घोल बनाएँ। फिर इस घोल को किसी मिट्टी में डालकर उबाल आने तक गर्म करें। फिर दो दिन तक छाये में रखने के बाद छानकर अलग बर्तन में रखें। प्रति एकड़ 100 लीटर पानी में 3-4 लीटर ब्रह्मास्त्र मिलाकर छिड़काव करें।

ये भी पढ़ें: जानिए क्या है जैविक खाद बनाने की विंड्रोव तकनीक, IARI पूसा के वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने बताईं 5 उन्नत विधियां

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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