Table of Contents
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के भांकला गांव के निवासी विवेक कुमार ने संरक्षित खेती (Protected Cultivation) के ज़रीये से एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है। विवेक के पास एक एकड़ एरिया में नेट हाउस है, जिसमें वे रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती करते हैं। विवेक की मेहनत और इस संरक्षित खेती मॉडल की वजह से वे सालाना करीब 5 लाख रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं। उनका यह सफर न केवल सहारनपुर के किसानों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में खेती में आधुनिक तकनीकों के महत्व को भी दर्शाता है।
संरक्षित खेती का महत्व और सफलता का सफर
विवेक बताते हैं कि पारंपरिक खेती में सीमित आय के कारण उन्हें नई तकनीक अपनाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा, “परंपरागत खेती में लागत और आय का अनुपात बहुत कम होता है। यही वजह थी कि मैंने संरक्षित खेती की ओर रुख किया। नेट हाउस में खेती के माध्यम से हम फसलों को अनुकूल वातावरण दे सकते हैं, जिससे गुणवत्ता में सुधार होता है और उत्पादन भी अधिक होता है।”
शिमला मिर्च की खेती
संरक्षित खेती के तहत विवेक ने रंगीन शिमला मिर्च का चयन किया। शिमला मिर्च की यह खेती नेट हाउस में होने से फसल को मौसम और कीटों से सुरक्षा मिलती है, और उत्पादन में निरंतरता बनी रहती है। विवेक का कहना है कि शिमला मिर्च की खेती पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक लाभकारी है, और इसके रंग-बिरंगे फलों की बाजार में काफी मांग है।
आय में वृद्धि और आर्थिक बदलाव
विवेक ने बताया कि संरक्षित खेती के माध्यम से उन्हें हर वर्ष लगभग 5 लाख रुपये की आय होती है। उन्होंने बताया, “शिमला मिर्च की मांग साल भर बनी रहती है, और हम सीधे व्यापारियों और रिटेलरों को बेचते हैं। इस प्रकार, बिचौलियों के बिना अच्छी कीमत मिलती है और हमारी आय में वृद्धि होती है।” इसके अलावा, विवेक की खेती में उत्पादन की गुणवत्ता इतनी बेहतर होती है कि उनकी शिमला मिर्च अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक बिकती है।
संरक्षित खेती में सरकारी योजनाओं का योगदान
विवेक ने संरक्षित खेती में अपनी सफलता का एक बड़ा हिस्सा सरकारी योजनाओं को भी माना। उन्होंने कृषि मशीनरी बैंक (Farm Machinery Bank) योजना के तहत लाभ उठाया है, जिससे उन्हें खेती के लिए आवश्यक उपकरण और संसाधन प्राप्त हुए हैं।
वे बताते हैं,
सरकार की इस योजना ने उनकी लागत को कम किया है और नेट हाउस में गुणवत्ता बनाए रखने में मदद की है। विवेक कहते हैं, “संरक्षित खेती के लिए सही उपकरणों का होना बहुत जरूरी है। सरकारी सहायता से हमें मशीनों और उपकरणों की लागत में कमी मिली है, जिससे हम बेहतर प्रबंधन कर पाते हैं।”
संरक्षित खेती के लाभ
विवेक बताते हैं कि संरक्षित खेती के कई लाभ हैं। नेट हाउस में फसलों को तापमान, नमी और कीटों से सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है। “संरक्षित खेती के माध्यम से हम पर्यावरणीय प्रभावों को नियंत्रित कर सकते हैं और कीटनाशकों के इस्तेमाल को भी कम कर सकते हैं। इससे हमारे उत्पाद स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित रहते हैं और उपभोक्ताओं में इसकी मांग बनी रहती है,” विवेक कहते हैं।
संरक्षित खेती की चुनौतियां
हालांकि, संरक्षित खेती के दौरान कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं, जैसे कि नेट हाउस की स्थापना में उच्च प्रारंभिक लागत और इसके रखरखाव का खर्च। विवेक का कहना है कि शुरुआत में यह लागत अधिक प्रतीत होती है, लेकिन जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, यह लागत जल्दी ही वापस आ जाती है। उन्होंने बताया, “पहले साल में खर्च को लेकर थोड़ी चिंता थी, लेकिन शिमला मिर्च की सफल खेती से सभी समस्याएं हल हो गईं।”
अन्य किसानों के लिए प्रेरणा
विवेक का मानना है कि संरक्षित खेती की तकनीक का प्रसार होना चाहिए, ताकि अन्य किसान भी इसका लाभ उठा सकें। उन्होंने अपने क्षेत्र के कई किसानों को नेट हाउस की खेती के बारे में बताया और उन्हें प्रशिक्षण दिया। “हमारे गांव के कुछ किसान अब संरक्षित खेती के इस मॉडल को अपना रहे हैं, जिससे उनकी आय में भी वृद्धि हो रही है,” विवेक बताते हैं।
भविष्य की योजनाएं और दृष्टिकोण
आने वाले वर्षों में विवेक अपनी खेती का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। वे अन्य प्रकार की फसलों को भी नेट हाउस में उगाने की सोच रहे हैं, ताकि उनकी आय और बढ़ सके। साथ ही, वे चाहते हैं कि सरकार इस तरह की संरक्षित खेती के लिए अधिक अनुदान और योजनाओं को उपलब्ध कराए, जिससे छोटे किसान भी इसका लाभ उठा सकें। उनका मानना है कि अगर इस तरह की तकनीकों को सही तरीके से अपनाया जाए, तो भारतीय कृषि में व्यापक बदलाव आ सकते हैं।
निष्कर्ष
विवेक कुमार की कहानी से यह स्पष्ट होता है कि संरक्षित खेती न केवल किसानों की आय को बढ़ाती है, बल्कि कृषि क्षेत्र में तकनीकी सुधार का भी मार्ग प्रशस्त करती है। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाते हुए और अपने आत्मविश्वास के बल पर विवेक ने इस क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। उनका उदाहरण यह साबित करता है कि अगर किसान आधुनिक तकनीकों और सरकारी योजनाओं का सही तरीके से उपयोग करें, तो कृषि में बहुत अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है। विवेक जैसे किसानों की यह पहल आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी सहायक साबित होगी।