बंजर ज़मीन जहां कोई फसल नहीं होती है, वहां भी औषधीय पौधे (Medicinal Plants) लगाकर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। ऐसा ही एक औषधीय पौधा है लेमनग्रास। लेमनग्रास की खेती (Lemongrass Cultivation) से बंजर ज़मीन को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। लेमन ग्रास जिसे नींबू घास, चाइना घास और मालाबार घास भी कहा जाता है, एक औषधीय पौधा है। जिसमें विटामिन और मिनरल भरपूर मात्रा में होते हैं।
इसका इस्तेमाल चाय बनाने में किया जाता है। साथ ही इसके पौधे से सिट्रल नाम का तेल भी निकाला जाता है। इसका इस्तेमाल कई तरह के उत्पादों में किया जाता है। इसलिए लेमनग्रास की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसे में लेमनग्रास की खेती किसानों, खासतौर पर राजस्थान और बुंदेलखंड के किसानों के लिए फ़ायदेमंद है। जहां पानी की कमी है और बड़ी तादाद में बंजर होने के कारण भूमि यूं ही पड़ी रहती है। कैसे किसान लेमनग्रास की खेती करके इस बंजर भूमि से अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। इस बारे में रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया ने बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
लेमनग्रास बंजर भूमि को बनाता है उपजाऊ
बुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया बताते हैं कि कैसे उनका संस्थान लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं और इसके बारे में किसानों और छात्रों को जागरुक बना रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने पत्थरीली ज़मीन पर लेमनग्रास लगाया। इसके लिए पहले पत्थरों को हटाकर ज़मीन साफ़ की और फिर लेमनग्रास लगाया। वो बताते हैं कि लेमन ग्रास को ऐसी ज़मीन पर भी लगाया जा सकता है, जहां कुछ नहीं उग सकता सकता यानि बंजर भूमि पर। इसे खेत के किनारों में भी लगाया जा सकता है। लेमनग्रास लगाने से ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
कैसे करें लेमनग्रास की बुवाई?
प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया बताते हैं कि लेमनग्रास की बुवाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह जोत ले। फिर उसे समतल करें। लेमनग्रास की बुवाई बीज या स्लिप्स के ज़रिए की जाती है। आमतौर पर स्लिप्स लगाई जाती है। इसमें पंक्ति से पंक्ति के बीच 90 से.मी. की दूरी और पेड़ से पेड़ के बीच 60 सें.मी. की दूरी रखी जाती है। एक साल में 90-110 स्लिप बन जाती हैं। एक बार लगाने के बाद हर तीन महीने में इसकी कटाई की जा सकती है।
गर्मी के पहले यानि मार्च में एक कटिंग ले सकते हैं, फिर सितंबर और फिर तीसरी कटाई दिसंबर या जनवरी में ले सकते हैं। इसका एक पौधा 2 मीटर तक लंबा होता है। लेमनग्रास को खेतों की मेड़ पर भी लगाया जा सकता हैं। इसे बरसात के पहले लगाना अच्छा रहता है। इसे खेत के बीच में पंक्तिबद्ध लगा सकते हैं। खेत को तैयार करने के बाद लेमनग्रास की स्लिप्स को लकड़ी की मदद से ज़मीन में 5 से 8 सें.मी. की गहराई पर लगाया जाता है। अगर इस फसल में थोड़ी खाद डाली जाए, तो उत्पादन अच्छा होता है। खेत में अगर नमी बनी रहे तो फसल की 4 कटाई भी जा सकती है। नमी कम होने से लेमनग्रास से तेल कम निकलता है।
लेमनग्रास की खेती से किसानों को फ़ायदा
डॉ. पंकज लवानिया का कहना है कि लेमनग्रास की खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने का अच्छा ज़रिया है। जो ज़मीन वो बेकार छोड़ देते हैं उससे कमाई कर सकते हैं। वहां कोई उद्योग स्थापित कर सकते हैं। वो बताते हैं कि लेमनग्रास से एसेंशियल ऑयल बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल, इत्र, साबुन, अगरबत्ती जैसे उत्पाद बनाने में किया जाता है।
किसान लेमनग्रास की खेती के साथ ही अगरबत्ती उद्योग स्थापित करके उद्यमी भी बन सकते हैं। अगरबत्ती बनाने के लिए बांस की ज़रूरत होती है। लेमनग्रास को एक्स्ट्रैक्ट करके जो तेल निकाला जाता है उसे बांस के साथ मिलाकर अगरबत्ती बनाई जाती है। अगरबत्ती के साथ ही लेमन टी में भी लेमनग्रास का उपयोग किया जाता है, तो किसान लेमन टी आधारित कोई उद्योग भी तैयार कर सकते है, जिससे गांव के दूसरे लोगों को भी रोज़गार मिलेगा।
लेमनग्रास की खेती में सिंचाई
वैसे तो लेमनग्रास को बहुत अधिक पानी की ज़रूरत नहीं होती है, मगर डॉ. पंकज लवानिया का कहना है कि जब भी लेमनग्रास की कटिंग की जाती है, तो उसके तुरंत बाद पौधों को पानी देना चाहिए। इससे नया अंकुरण अच्छा होता है। बरसात के मौसम में पानी देने की ज़रूरत नहीं है। सर्दियों में महीने में एक बार पानी दे सकते हैं और गर्मियों में 15 दिन में पानी देना चाहिए। अगर खेत में पानी की भरपूर मात्रा है तो फसल अच्छी होगी, अगर पानी की कमी है तो भी सिर्फ़ बरसात के पानी से ही साल में 2 कटिंग तो किसानों को मिल ही जाती है।
लेमनग्रास तेल की कीमत
लेमनग्रास को एक्सट्रैक्ट करके तेल निकाला जाता है। इसका तेल बाज़ार में 1500 से 1600 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिकता है। इसकी काफ़ी डिमांड रहती है, क्योंकि इसका इस्तेमाल कई चीज़ों को बनाने में किया जाता है। प्रोफ़ेसर पंकज लवानिया बताते हैं कि विश्वविद्यालय में भी तेल निकालने की मशीन लगी हुई है। अगर किसान चाहें तो लेमनग्रास काटकर यहां लाकर तेल निकाल सकते हैं।
लेमनग्रास में कीट और रोग
प्रोफ़ेसर पंकज लवानिया बताते हैं कि लेमनग्रास की खासियत है कि इसमें किसी तरह का कीट नहीं लगता है, न ही जानवर इसे खाते हैं, जिससे इस फसल को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है।
लेमनग्रास पर किसानों को ट्रेनिंग
प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया का कहना है कि रानी लक्ष्मीबाई विश्वविद्यालय में लेमनग्रास की खेती और इससे जुड़े उद्योग स्थापित करने में मदद के लिए किसानों के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं। किसानो को वर्कशॉप और इंडस्ट्री में भी लेकर जाते हैं और उन्हें जानकारी दी जाती है। यही नहीं, विश्वविद्यालय के छात्रों से भी प्रोडक्ट तैयार करवाते हैं ताकि आगे चलकर कोई उद्यम स्थापित करने में उन्हें मदद मिल सके।
लेमनग्रास की प्रोसेसिंग
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लेमनग्रास और इसके तेल की काफ़ी मांग है। भारत से बड़ी मात्रा में लेमन ग्रास तेल का निर्यात किया जाता है। हर साल करीब 700 टन लेमन ग्रास तेल निर्यात किया जाता है, ऐसे में किसानों को लेमनग्रास की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जा रही है।
लेमनग्रास से उत्पादन
एक एकड़ खेत में लेमन ग्रास की खेती से करीब 150-200 टन तक पत्तियों का उत्पादन होता है, जिससे 100-150 टन तेल निकल जाता है।
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