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Mung Ki Kheti | देश के कई हिस्सों में मूंग दाल की बुवाई हो चुकी है। मूंग दाल दलहनीय फसलों में मुख्य फसल है। मूंग की जायद के सीज़न में बुवाई की जाती है। किसानों के मन में मूंग दाल की खेती को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं। मूंग की कौन सी किस्म अच्छी होती है? मूंग की खेती की शुरूआत कैसे करें? इन्हीं सभी सवालों के जवाब हमने जाने बिहार के मधेपुरा के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ आर.पी. शर्मा से। उन्होंने मूंग दाल की खेती (Moong Dal Farming) पर अमूमन उठने वाले सवालों के जवाब दिए।
मूंग एक दलहनीय फसल है। मूंग की खेती गर्मा दलहनीय के रूप में होती है। मूंग की खेती करने से एक एकड़ खेत की मिट्टी में लगभग 50 से 55 किलो नाइट्रोजन की मात्रा मिट्टी को प्राप्त होती है। इसके साथ ही मूंग की खेती के लिए फरवरी के आखिरी सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक बुवाई के लिए समय चयन करते हैं। अगर बिहार के किसानों की बात की जाए तो कई किसान खेत से आलू निकालने के बाद मूंग की खेती करते हैं। इसको अगात खेती कहते हैं। बिहार के कोसी क्षेत्र में किसान गेहूं कटने के बाद मूंग की देसी बीज की वैरायटी लगाते हैं, जो अच्छी उपज देती है।
मूंग की बुवाई से पहले खेत तैयार कैसे करें?
किसी भी तरह की मिट्टी वाले खेत को तैयार कर सकते हैं। मूंग के लिए खेत तैयार करने के लिए एक से दो जुताई करनी चाहिए। पहली जुताई गहरे हल से करनी चाहिए। दूसरी जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए। गहरी जुताई करने से मिट्टी में छुपे कीट-पतंगें मर जाते हैं। इससे फसल में कीट लगने की आशंका कम हो जाती है।
मूंग दाल की प्रमुख किस्में (Moong Varieties In India)
- सबसे पहले मूंग की उन्नत किस्मों के बीजों का चयन करना चाहिए। 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच में मूंग लगाना होता है। पूसा विशाल की उपज एक एकड़ में 15 से 16 क्विंटल हो जाती है। ये फसल 65 से 70 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।
- अगर किसान 10 मार्च से 10 अप्रैल के बीच में मूंग की बुवाई में किस्म PDM m 40 ( सम्राट) इस्तेमाल करते हैं तो ये किस्म 60 से 65 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन 12 से 15 प्रति एकड़ क्विंटल होता है। ये किस्म हेलो मौर्या बेन वायरस रोधी होती है।
- साथ में एसएम एल फॉसो 68 वैरायटी भी 15 मार्च से 10 अप्रैल तक लगाई जा सकती है। ये वैरायटी भी 65 से 70 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। उपज 15 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है।
- नई वैरायटी मूंग-Moong IPM 205-07 जो विराट के नाम से आती है, इसकी बुवाई 15 मार्च से 10 अप्रैल के बीच कर सकते हैं। ये अल्प अवधि की फसल है। ये किस्म 52 से 56 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
- अगर आईपीएम 410 शिखा वैरायटी की बात की जाए तो ये भी 65 से 70 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 11 से 12 क्विंटल तक इसका उत्पादन कर सकते हैं।
मूंग की खेती में प्रति हेक्टेयर में कितने बीज ज़रूरी?
किसान साथियों अभी हमने आपको मूंग की उन्नत किस्मों के बारे में बताया, तो अब आप लोगों के मन में सवाल आ रहा होगा कि एक एकड़ में कितने बीजों की ज़रूरत होती है? डॉ आर.पी. शर्मा बताते हैं कि 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर छोटे दाने का मूंग है तो हम 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। मूंग के बड़े दानों का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर की दर से 30 किलोग्राम करते हैं।
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मूंग बीज का चयन कैसे करें?
डॉ आर.पी. शर्मा बताते हैं कि बीज के साथ-साथ हमेशा प्रबेध (Penetration) का ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ-साथ बीज की गुणवत्ता का ध्यान रखना भी बेहद अहम है। बीज की अंकुरण क्षमता कितनी है? ये भी देखना ज़रूरी है। अगर बीज की 80 फ़ीसदी से ज़्यादा अंकुरण क्षमता है, तब ही हमको बीज के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे में बाज़ार में आधार और प्रमाणित बीज मिलते हैं।
जो किसान आधार बीज लगाते हैं तो वो तीन साल तक वही बीज इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रमाणित बीज किसान केवल एक बार ही इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा दो बार कर सकते हैं।
बीजों के उपचार पर भी ध्यान देना चाहिए। राइजोबियम कल्चर से बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। मृदा और बीज जनित रोगों से बचाने के लिए अगर ट्राइकोडरमा से ट्रीटमेंट करते हैं तो पांच ग्राम प्रति किलो के हिसाब से इस्तेमाल करें। अगर कार्बेंडाजिम से करते हैं तो दो ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से करते हैं। इस उपचार के बाद राइजोबियम से उपचार 12 से 18 घंटे बाद करना चाहिए। बीज का उपचार करने के साथ फसल का उत्पादन बढ़ जाता है। इसके साथ ही खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है। मूंग की फसल में स्टार्टर ज़ोन में नाइट्रोजन का डोज़ दिया जाता है। इसमें 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 से 50 किलोग्राम फॉस्फोरस का इस्तेमाल करना चाहिए।
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मूंग के पौधों के बीच दूरी
डॉ आर.पी. शर्मा कहते हैं कि पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं। वहीं 20 सेंटीमीटर पौधे से पौधे के बीच की दूरी रखी जाती है।
मूंग की खेती में खरपतवार नियंत्रण
मूंग की खेती में खरपतावार को नियंत्रित करने के लि हमको बिजाई करने के तीन दिन के अंदर पेन्डीमिथालीन नामक खरपतावार नाशक का इस्तेमाल करना चाहिए। इसको 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए। बुवाई के बाद कीटनाशक का छिड़काव करेंगे। जहां खेत में छिड़काव हो गया है वहां पैर नहीं पड़ना चाहिए। पैर पड़ने के कारण कीटनाशक का लेयर टूट जाती है। लेयर टूटने के कारण फिर से खरपतवार निकल आते हैं, इसके साथ ही छिड़काव के लिए एक एकड़ में 1200 लीटर पानी का इस्तेमाल होना चाहिए। अगर खड़ी मूंग में खरपातवार को खत्म करना है तो इमिजाथाइफर नामक खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे तीस दिनों के अंदर खपरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं।
मूंग की खेती में सिंचाई
मूंग की खेती में सिंचाई ज़्यादा करने की आवश्यकता नहीं होती है। अगर एक बारिश हो जाती है तो सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बारिश नहीं होती है तो एक से दो सिंचाई से काम हो जाता है। अगर फव्वारे विधि से हल्की सिंचाई करें तो उपज में बढ़ोतरी होती है।
मूंग की खेती में पौध संरक्षण
मूंग के पौधे का संरक्षण करने के लिए किसानों को बुवाई के पहले गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे खेत में छुपे हुए कीट और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। पौधा संरक्षण के लिए सीड ट्रीटमेंट बहुत ज़रुरी है। अगर ट्राइकोडरमा से ट्रीटमेंट करते हैं तो पांच ग्राम प्रति किलो के हिसाब से इस्तेमाल करेंगे। अगर कारबिंडा जिम से करते हैं तो दो ग्राम प्रति किलो ग्राम के हिसाब से करते हैं। बिजाई के टाइम पर पौधे के बीच की दूरी और पंक्ति के बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। बिजाई के टाइम पर मिट्टी की नमी का ध्यान रखना चाहिए।
मूंग की फसल में रोग-कीटों का प्रकोप लगने की आशंका भी रहती है। मूंग के फ्लॉवरिंग के समय कई तरह की बीमारियां आती हैं। इससे बचने के लिए लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करते हैं। इससे कई तरह के कीड़े मर जाएंगे जैसै सफेद मक्खी, तना छेदक मक्खी, फल छेदक, सूंड़ी, चिट्टी दार पत्ती छेदक, रस चूसक कीड़ा। कीटों को रोकने के लिए बॉयो प्रेस्टीसाइट का इस्तेमाल करते हैं, अगर बॉयो पेस्टिसाइड सफल नहीं होता है तब रसायानिक की तरफ़ जाना चाहिए। अगर रोग की बात की जाए तो पीलिया रोग, वायरस का प्रकोप भी देखने को मिलता है। लीफ किंकल, कवक रोग से बचने के लिए कॉपर ऑक्सीराइड दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
मूंग की कटाई के समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
मूंग की कटाई के समय इस बात का ध्यान रखना होता है कि मूंग दो तरह के होते हैं। एक तरह के मूंग में सभी फलियां साथ में पक जाती हैं। कुछ किस्मों में एक बार में एक फली पकती है उसकी तुड़ाई कर लेते हैं। ये प्रक्रिया तीन तुड़ाई तक करते हैं। फलियां पकने पर काले रंग की हो जाती हैं। इसके बाद तुड़ाई करनी चाहिए। मूंग को स्टोर करने के लिए जिस जगह मूंग रख रहे हैं वहां पर नीम के पत्ते रख देने चाहिए। इससे कीड़े का प्रकोप नहीं होता है। कटाई के बाद मूंग की खेती के अवशेषों को ज़मीन के अंदर दबा दें ताकि वो खेत में हरी खाद का काम कर सके। इससे खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है।
मूंग की खेती में केविके से किसानों को कितनी मदद ?
डॉ आर.पी. शर्मा बतातें है कि कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से समूह प्रत्यक्षण के तहत दलहन प्रोत्साहन के लिए किसानों को बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। केविके मधेहपुरा पिछले पांच सालों से किसानों को बीज उपलब्ध कराते आ रहे हैं, इसके साथ ही दवाइयां भी उपलब्ध करवाते हैं। इससे दलहन की खेती का विस्तार हो सके।