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जुलाई-अगस्त में उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में गंगा-यमुना और इसकी सहायक नदियों में भोला मछलियों की भरमार होती है। ये शान्त स्वभाव वाली मछली है। शायद इसीलिए इसे ‘भोला’ नाम मिला होगा। बाँग्ला में इसे ‘भोला माछ’ कहते हैं। आमतौर पर इनका वजन एक से डेढ़ किलोग्राम होता है। कई जगह इन्हें पथरी मछली भी कहलाती है क्योंकि इसके सिर के दोनों ओर छोटा-छोटा कंकड़ पाया जाता है। बेतरतीब और खुरदुरी आकृति वाले ये कंकड़ भी उसी ‘कैल्शियम कार्बोनेट’ से बने होते हैं, जिससे घोंघा, सीप, शंख, कछुआ जैसे ‘मृदु कवच जन्तु’ यानी mollusc के शरीरों का कठोर आवरण या खोल बनता है।
मीन मुक्ता में आभूषण उद्योग वाली सम्भावनाएँ
वाराणसी निवासी साइंस ब्लागर डॉ अरविन्द मिश्र के मुताबिक, ‘सियेना क्वाइटर’ या पथरी मछली के कंकड़ों की वजह से ही उन्हें ‘मीन मुक्ता का जनक’ भी कहा जाता है। इनके कंकड़ों की तुलना सीप से मिलने वाले कीमती रत्न ‘मोती’ से की जाती है और इसीलिए कंकड़धारी भोला माछ को रत्नगर्भा भी कहा गया है। इसके बावजूद, शायद अज्ञानता या बहुतायत में पाये जाने की वजह से मछुआरे भोला मछलियों को बाज़ार में सामान्य मछलियों की तरह बेच देते हैं। जबकि इसमें पाये जाने वाले मीन मुक्ता का आभूषण उद्योग में व्यावसायिक इस्तेमाल हो सकता है।
मोतियों से सस्ते हैं मीन मुक्ता
रत्नगर्भा के वजन के अनुरूप ही उसके मीन मुक्ता का आकार छोटा-बड़ा होता है। रत्न व्यावसायियों के अनुसार, मोती की तरह मीन मुक्ता से बने आभूषणों से भी मनुष्य का चित्त शान्त रहता है। इसीलिए रत्नों के गुणों में आस्था रखने वालों को मीन मुक्ता के इस्तेमाल से मोतियों जैसा लाभ अपेक्षाकृत कम दाम पर मिल सकता है। ज़ाहिर है, ये तथ्य रत्नगर्भा में मौजूद व्यावसायिक सम्भावनाओं की ओर इशारा करते हैं। वैसे मीन मुक्ता वाली रत्नगर्भा मछलियों की प्रजाति सदियों से इन नदियों में मौजूद है।
मीन मुक्ता में नहीं है ‘नैक्रे’ का नूर
सीप से मिलने वाले मोती का भी 80 फ़ीसदी से ज़्यादा अंश ‘कैल्शियम कार्बोनेट’ से ही बना होता है। इसके बावजूद मीन मुक्ता की रत्न के रूप में वैसी कद्र नहीं है जैसी मोती की है। इसकी वैज्ञानिक वजह ये है कि सीप में विकसित होने के दौरान मोती पर कैल्शियम कार्बोनेट के साथ नैक्रे (nacre) या मदर-ऑफ-पर्ल (MOP) नामक एक ऐसे रसायन की पतली-पतली परतें लगातार चढ़ती रहती हैं जो उसे हमेशा चमकदार और चिकना बनाये रखता है। नैक्रे या नेकर का उत्पादन करने वाला सीप इकलौता मोलस्क (mollusc) मृदु कवच धारी जन्तु है।
सामान्य जैविक तंत्र का असामान्य गुण है ‘नैक्रे’
सीप की सैकड़ों प्रजातियों में से सिर्फ़ कुछेक ही ऐसी हैं जो चमकदार मोती का उत्पादन कर पाती हैं, क्योंकि इनमें नैक्रे का लेप पैदा करने की ख़ूबी होती है। यह मोलस्क की सामान्य जैविक प्रणाली की एक असामान्य या विशिष्ट प्रक्रिया है। वर्ना, सैद्धान्तिक रूप से तो कैल्शियम कार्बोनेट का स्राव पैदा करने वाले वाले मोलस्क सम्प्रदाय की हज़ारों प्रजातियाँ भी मोती जैसी वस्तुओं का उत्पादन करने में सक्षम होतीं, क्योंकि पानी या ज़मीन पर कठोर खोल में रहने वाले कोमल और अखंड शरीर के ऐसे सभी जन्तु तकनीकी रूप से ‘कालकारिओउस कंसन्ट्रेशन्स’ जैसे द्रव का स्राव करने की क्षमता रखते हैं जो मूलतः कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है।
कुछेक नस्लों को ही मिला ‘नैक्रे’ का वरदान
इसी द्रव का स्राव मीन मुक्ता के सिर में भी जमा होता रहता है, लेकिन इन्हें नैक्रे का वरदान हासिल नहीं है। अलबत्ता, मीन मुक्ता के विकसित होने की वजह से भोला मछली का सन्तुलन शानदार होता है। इस गुण का प्राणिशास्त्रीय नाम ‘आटो लिवाइडस ब्रूनियस’ है। बता दें कि मदर-ऑफ-पर्ल परत बनाने वाला नैक्रे एक कार्बनिक और अकार्बनिक तत्वों का मिश्रित पदार्थ है। यह मज़बूत, लचीला और इन्द्रधनुषीय छटा वाला होता है और ‘यूनोयोनीडी’ और ‘मार्गेरिटिफ़ेरिडे’ फैमिली के सीपों में पाया जाता है। इसीलिए इन प्रजातियों में उन्नत मोती बनने की उम्मीद ज़्यादा रहती है।
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