स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) कर लोगों के मुंह पर लगाया ताला, आज कहलाते हैं ‘स्ट्रॉबेरी किंग’

स्ट्रॉबेरी की खेती में शुरुआत में मुश्किलें भी आईं। स्ट्रॉबेरी के पौधे मर गए, जिससे उन्हें भारी नुकसान का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा से स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए।

स्ट्रॉबेरी की खेती ( Strawberry farming )

जहां चाह, वहां राह की तर्ज पर बुंदेलखंड के एक युवा ने भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला लिया। परिस्थितियों से हार मानना किसी समस्या का हल नहीं। गिरकर उठने वाला ही असल जांबाज़ होता है। कोरोना काल में लाखों लोगों की नौकरी छिनीहज़ारों धंधे ठप पड़े, लेकिन आपदा में अवसर के हौसले बढ़ाने वाली मिसाल भी कम नहीं हैं। 

लॉ ग्रेजुएट अनिरुद्ध सिंह कई सालों से मालवा अंचल में छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग देते थेसाथ ही वकालत भी करते थे। कोरोना के बाद जब लॉकडाउन लगा तो अनिरुद्ध का व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हो गया। इसके बाद वो अपने गांव केसली लौट गए। यहां उन्होंने अपने फ़ार्महाउस पर ठंडे इलाकों की फसल स्ट्रॉबेरी (Strawberry Farming) की खेती शुरू कर दी।

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लोगों ने उठाए सवालमेहनत ने दिलाई कामयाबी

बुंदेलखंड में पानी की कमी के चलते स्ट्रॉबेरी का उत्पादन आसान नहीं होतालेकिन अनिरुद्ध ने इसे एक चुनौती की तरह लिया। शुरुआत में उनकी स्ट्रॉबेरी की खेती के फैसले पर लोगों ने सवाल भी उठाए। आसपास के किसानों को लगा कि अनिरुद्ध सिंह का खेती-किसानी में पहले कोई रुझान नहीं था, कोई अनुभव नहीं था इसलिए गलत प्रयोग कर रहे हैं।

दूसरी ओर गांव लौटे अनिरुद्ध ने देखा कि किसानों को परंपरागत फसलों की खेती से कोई खास फ़ायदा नहीं हो रहा। ऐसे में उन्होंने परंपरागत फसलों को छोड़कर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने का मन बनाया।

स्ट्रॉबेरी की खेती ( Strawberry farming )

स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) कर लोगों के मुंह पर लगाया ताला, आज कहलाते हैं ‘स्ट्रॉबेरी किंग’रोज़ाना करीब तीन से चार हज़ार रुपये की स्ट्रॉबेरी की बिक्री

शुरुआत में मुश्किलें भी आईं। स्ट्रॉबेरी के पौधे मर गएजिससे उन्हें भारी नुकसान का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी इस असफलता से उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा से स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए। इस बार उन्होंने कृषि क्षेत्र के तकनीकी जानकारों की मदद ली। उन्होंने जलवायु को ध्यान में रखकर स्ट्रॉबेरी की फसल का रखरखाव किया। इसका उनको फ़ायदा भी मिला।

आज वो एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती कर करीबन लाख रुपये कमा लेते हैं। स्थानीय बाज़ार में ही प्रतिदिन करीब तीन से चार हज़ार रुपये की स्ट्रॉबेरी बिक जाती है। वहीं प्रदेश के कई जिलों से भी स्ट्रॉबेरी की डिमांड आती है।

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खेती के साथ ही खुद करते हैं पैकिंग

स्ट्रॉबेरी की खेती के साथ ही उसे बाज़ार तक पहुंचाने का काम भी अनिरुद्ध खुद ही करते हैं। अपने फ़ार्महाउस पर ही वो स्ट्रॉबेरी की पैकिंग का काम करते हैं। 10 पीस के 200 ग्राम के एक डिब्बे की कीमत 60 रुपये तक होती है। इस तरह से अनिरुद्ध परंपरागत फसलों की बजाय स्ट्रॉबेरी की फसल से अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।

स्ट्रॉबेरी की खेती ( Strawberry farming )

स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) कर लोगों के मुंह पर लगाया ताला, आज कहलाते हैं ‘स्ट्रॉबेरी किंग’स्ट्रॉबेरी की खेती पर किसानों को मिलती है सब्सिडी
चार हेक्टेयर तक एक किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर सकता हैजिसमें प्रति हेक्टेयर लागत लाख 80 हज़ार तक रहती है। ऐसे में लागत का 40 प्रतिशत यानि कि एक हेक्टेयर पर लगभग लाख 12 हजार की सब्सिडी किसानों को दी जाती है। ये सब्सिडी तीन किस्तों में मिलती है। पहले साल में लागत राशि का 60 प्रतिशतदूसरे और तीसरे साल में लागत राशि का 20-20 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है।

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