प्रेम सिंह: इस मशहूर किसान ने आधुनिक खेती (Modern Farming) को क्यों बताया धोखा?

प्रेम सिंह बताते हैं कि आज आवर्तनशील खेती करके खेती में जो मुकाम उन्होंने हासिल किया है वो एक दिन का नतीजा नहीं है, साल दर साल कुछ नया सीखने और करने की उनकी कोशिश है।

किसान प्रेम सिंह बुंदेलखंड ( farmer prem singh bundelkhand

“किसान पाले गोरू और गोरू पाले खेत और खेत से ही सधते किसान के सब हेत”, ये कहना है बांदा जिले के बड़ोखर गाँव में रहने वाले किसान प्रेम सिंह का। प्रेम सिंह खेती-किसानी के क्षेत्र में जाना-माना नाम हैं। ‘तपता रेगिस्तान’ कहे जाने वाले बुंदेलखंड में तरक्की की फसल उगाने का श्रेय प्रेम सिंह को जाता है। प्रेम सिंह बुंदेलखंड के दूसरे किसानों से कुछ अलग तरीके से खेती करते हैं।

1987 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पास आउट होने के बाद प्रेम सिंह ने खेती का रूख किया। खेती को बतौर आजीविका का स्रोत चुनना प्रेम सिंह के लिए आसान नहीं था। परिवार वालों ने उनके इस फैसले पर असंतोष जताया, लेकिन वो खेती करने का मन बना चुके थे।

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वैकल्पिक खेती की राह पकड़ी

प्रेम सिंह किसान परिवार से ही आते हैं। 1987 से लगातार खेती कर रहे प्रेम सिंह ने शुरुआत में पिता के रास्ते पर चलते हुए पारंपरिक खेती की। लगभग एक साल तक खेती करने के बाद प्रेम सिंह को एक बात खटकी कि वो खेती तो कर रहे हैं, लेकिन पैसा उनके पास टिक नहीं रहा। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में प्रेम सिंह ने बताया कि उस ज़माने में चार भाइयों के परिवार में दो से सवा दो लाख रुपये सालाना की आमदनी होती थी।

इसमें 25 से 30 हज़ार की बचत भी नहीं हो रही थी यानी कि लागत पर मुनाफ़ा ना के बराबर मिल पा रहा था। केमिकल खाद, पशुओं की दवा और आहार, बैंक का ब्याज, बीज खरीद में ही सारा पैसा चला जाता था। इससे निपटने के लिए उन्होंने वैकल्पिक खेती की राह पकड़ी।

प्रेम सिंह बताते हैं कि 1989 में उन्होंने वैकल्पिक खेती का रास्ता चुना। तब से लेकर अब तक प्रेम सिंह खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करते। प्रेम सिंह बताते हैं कि आज खेती में जो मुकाम उन्होंने हासिल किया है वो एक दिन का नतीजा नहीं है। साल दर साल learning by doing method, यानी कई प्रयोग कर लगातार सीखने की उनकी ललक ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है।

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लागत को इन तरीकों से किया कम

प्रेम सिंह कहते हैं कि शुरू से ही उनका झुकाव खेती की ओर रहा। अगर उन्हें व्यापारी बनना होता तो वो किसी व्यापारी परिवार में पैदा होते। किसान परिवार में पैदा हुए, इस कारण शुरू से ही अंतरात्मा का खिंचाव गाँव और खेती-बाड़ी की तरफ रहा।

कर्जे से मुक्ति और लागत को घटाने के लिए प्रेम सिंह ने खेती का स्वरूप बदला। अपनी खाद खुद बनाने लगे, बीज भी तैयार करने लगे, ट्रैक्टर की जगह बैल से खेती करने लगे। इस तरह से पैसा घर में ही रहने लगा। इन चीज़ों को खरीदने में जो पैसा खर्च होता था, वो बचने लगा।

उपज से तैयार करते हैं कई उत्पाद

1995 आते-आते फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट्स की शुरुआत भी कर दी। मुरब्बा, दलिया, च्यवनप्राश सहित बहुत सारी चीजें बनाने लगे। इस तरह से नए-नए स्रोतों से पैसा आना शुरू हुआ। बाग से भी अच्छा पैसा मिलने लगा। इन प्रयासों से आत्म-बल मिला। 2007 आने तक कई लोग खेती के गुण सीखने के लिए दूर-दूर से प्रेम सिंह के पास आने लगे। प्रेम सिंह कहते हैं कि खेती, किसान को सिर्फ़ व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि पूरे विश्व को नए आयाम दे सकती है।

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कैसे एक वाकये ने बदला नज़रिया

एक वाकये का ज़िक्र करते हुए प्रेम सिंह बताते हैं कि 2010 में वो कर्नाटक के कलबुर्गी में एक सम्मेलन में हिस्सा लेने गए। वहां प्रेम सिंह समेत कई किसानों को सम्मानित किया गया। सम्मेलन में एपीजे अब्दुल कलाम बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। एपीजे अब्दुल कलाम से एक युवक ने सवाल पूछा कि आप सबको डॉक्टर, इंजीनियर, नौकरशाह बनने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन कभी एक किसान बनने के लिए क्यों नहीं कहते? ऐसे में इस देश में किसानी का क्या भविष्य होगा?

इस सवाल पर सम्मेलन में तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी। इस सवाल का कोई जवाब उनके पास नहीं था। इस सवाल ने ही प्रेम सिंह को बेचैन कर दिया कि पूरी दुनिया ही इस एक सवाल का समाधान ढूंढ रही है।

प्रेम सिंह ने बताया कि ऐसे में अगर परिवर्तन के साथ खेती के स्वरूप को बदल दें, तो 5 चीज़ों का समाधान हो सकता है। ये पाँच चीजें हैं- खाद्यान्न की समस्या, पर्यावरण असंतुलन, बेरोजगारी, पौष्टिक आहार और स्थिर आजीविका। प्रेम सिंह कहते हैं कि इन पाँच चीज़ों का हल खेती-किसानी में ही है। इन पाँच चीज़ों पर काम करते हुए प्रेम सिंह ने 2011 से आवर्तनशील खेती की शुरुआत की। ये खेती करने का एक ऐसा तरीका है, जो किसान को तो उबार ही लेगा, पूरे पर्यावरण को भी बदल देगा।

किसान प्रेम सिंह बुंदेलखंड ( farmer prem singh bundelkhandप्रेम सिंह: इस मशहूर किसान ने आधुनिक खेती (Modern Farming) को क्यों बताया धोखा?क्या है आवर्तनशील खेती का मॉडल

प्रेम सिंह कहते है कि किसानों को जो सम्मान देने की ज़रूरत है, वो उन्हें नहीं मिल पाता। उन्हें सम्मान की नज़र से देखने की ज़रूरत है। साथ ही आज के समय में ऐसी खेती करने पर ज़्यादा ज़ोर है, जिसमें पैसा किसान के पास टिकता ही नहीं है। उसका पैसा डीज़ल, ट्रैक्टर, यूरिया, DAP खरीदने और ब्याज का पैसा भरने में ही चला जाता है।

इस लागत को कैसा रोका जाए इसके लिए प्रेम सिंह ने एक पूरा मॉडल तैयार किया है। अगर किसान अपने खेत के एक-तिहाई हिस्से में बाग लगायें, एक-तिहाई हिस्से में पशुपालन करें, बाकी एक तिहाई में अपने परिवार की जितनी ज़रूरत की चीज़ें हैं, जैसे अनाज, दाल, तेल, सब्जियां, जो कुछ भी क्षेत्र की जलवायु के अनुकल हो, उसे अपने घर के लिए पैदा करें और जो बचे उसे प्रोसेस करें।

प्रेम सिंह अपनी उपज से 40 से 42 उत्पाद प्रोसेस करते हैं। प्रोसेसिंग यूनिट्स रोजगार के अवसर को पैदा करता है। प्रेम सिंह ने अपने इस पूरे मॉडल को आवर्तनशील खेती का नाम दिया है।

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प्रेम सिंह: इस मशहूर किसान ने आधुनिक खेती (Modern Farming) को क्यों बताया धोखा?प्रगतिशील बदलावों ने खड़ी की कई गंभीर समस्याएं

प्रेम सिंह कहते हैं कि साल 1977 के बाद समाज में संघर्ष की स्थिति बनी। इस दौरान खेती-बाड़ी में DAP, यूरिया, ट्रैक्टर, आधुनिक खेती के नाम पर जेनेटिक बीजों का प्रवेश हुआ, गाय और भैंस में कृत्रिम गर्भाधान होने लगा। इन बदलावों को लोग प्रगतिशील कहने लगे। अगले दशक में इन बदलावों के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम दिखने लगे।

गाय मारी-मारी घूमने लगी, किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आईं, मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचने लगा, उत्पादन मंद हो गया, उपज की पौष्टिकता से समझौता होने लगा। खेती में आधुनिकता के नाम पर जो बदलाव किए गए, उसके कारण पर्यावरण असंतुलन देखने को मिला। देश के कई इलाकों में ऐसी स्थिति हो गई कि हवा ज़हरीली हो गई। ज़मीन से निकाले जाना वाला पानी भी कई क्षेत्रों में दूषित हो गया। 70 के दशक में जो कुछ भी बदलाव किए गए, पर्यावरण से लेकर स्वास्थ्य पर उनका नकारात्मक असर पड़ा।

स्वीकार की चुनौती और खरे उतरे

इस चुनौती को प्रेम सिंह ने स्वीकार किया। खेती को किस तरह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज़ से अनुकूल बनाया जाए, इस दिशा में प्रेम सिंह ने काम किया। प्रेम सिंह ने प्रधानमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री को चिट्ठियां लिख, खेती किसानी के जुड़े सुझाव भेजे। संवैधानिक, नीतिगत, प्रशासनिक स्तर पर क्या-क्या बदलाव करने की ज़रूरत है, और खुद किसान किन बदलावों को कर अच्छी ये अर्जित कर सकते है, इसका ज़िक्र उन्होंने किया। प्रेम सिंह ने बताया कि इन बदलावों को अपनाकर धरती हरी-भरी हो सकती है और भारत फिर से स्वर्ग  कहलाएगा।

प्रेम सिंह कहते हैं कि 1970 में खाद्यान्न  का मानक ही बदल दिया गया। इसे गेहूं  से जोड़ दिया गया, जबकि गेहूं देश के 80 फ़ीसदी क्षेत्र में खाया ही नहीं जाता था। ऐसे में खाद्यान्न की परिभाषा बदलने की ज़रूरत है। खाद्यान्न में फल से लेकर दूध, घी, अनाज, तिलहन, दाल इन सबको भी लाने की  ज़रूरत है।

किसान प्रेम सिंह बुंदेलखंड ( farmer prem singh bundelkhand

पशुपालन के बिना संभव ही नहीं खेती 

प्रेम सिंह कहते हैं कि पशु के बिना खेती संभव ही नहीं है। हर एक पशु की अपनी भूमिका है। बकरी का इस्तेमाल ज़्यादा मिनरल वाली खाद के लिए, वहीं गाय का उपयोग माइक्रो ऑर्गेनिज्म खाद के लिए होता है। इसके अलावा भैंस, घोड़े, गधे, ऊंट का उपयोग है ज़्यादा कार्बन वाली खाद के लिए तो मुर्गी, बतख का उपयोग कैल्शियम और फॉसफोरस वाली खाद के लिए किया जाता है।

किसान प्रेम सिंह बुंदेलखंड ( farmer prem singh bundelkhand

मॉडर्न फ़ार्मिंग है धोखा

प्रेम सिंह मॉडर्न फ़ार्मिंग को नहीं मानते हैं। उनके लिए ये लूट के तरीके हैं, जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा जल्दी से जल्दी उपज निकालने की कोशिश की जाती है। इसका सामधान खोजना ही असल में किसानी है। प्रेम सिंह एक उदाहरण देते हुए बताते हैं कि एक गाय औसतन अपने जीवनकाल में 30 से 35 हज़ार लीटर दूध देती है और एक साल में 3600 किलो गोबर देती है। मॉडर्न फ़ार्मिंग में लोगों को गोबर और उसके बछड़ों से कोई मतलब नहीं होता।

उनके लिए गाय सिर्फ़ दूध उत्पादन के लिए हैं, ऐसे में वो प्रतिदिन की 3 लीटर का दूध देने वाली गाय से 10 लीटर प्रतिदिन के हिसाब से दूध लेने लगते हैं। इससे वक़्त से पहले ही गाय दम तोड़ देती है। प्रेम सिंह कहते हैं कि इस तरीके को विकास नहीं कहा जा सकता, ये सरासर धोखा है।

टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में इन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी

खेती में बढ़ती तकनीक की भागीदारी पर प्रेम सिंह कहते हैं कि खेती में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अगर प्राकृतिक नियमों के अनुकूल हो, और समाज को जोड़ने वाला हो, रोजगार के अवसर पैदा करने वाला हो तो टेक्नोलॉजी खेती के लिए अच्छी है।

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हरित क्रांति से उत्पादन क्षमता बड़ी तो कई नुकसान भी हुए

प्रेम सिंह कहते हैं कि भारत में हरित खेती के बाद उत्पादन की क्षमता में इज़ाफ़ा हुआ तो हमें इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि इससे पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ा, खाने की गुणवत्ता घटी, पौष्टिक खाना नहीं होने के कारण लोग रोगग्रस्त हुए, आयु सीमा घटी, साथ ही बेरोजगारी भी बड़ी।

तालमेल से काम करना ज़रूरी

प्रेम सिंह कहते हैं कि सरकार को किसानों से जुड़ी नीतियों और निर्णयों पर अच्छे से विचार-विमर्श करने की ज़रूरत है। विषम परिस्थितियों से निपटने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ किसानों पर नहीं होनी चाहिए। सरकार और किसान, दोनों पक्षों के तालमेल से ही खेती-किसानी को फ़ायदेमंद बनाया जा सकता है। वहीं किसान का खेती करने का ऐसा तरीका होना चाहिए, जो प्रकृति को भी संभाले और समाज को भी संभाले। 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल। 
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