पहाड़ी इलाके में मछलीपालन कर रही हैं हेमा डंगवाल: जानें उनकी सफलता की कहानी

उत्तराखंड की हेमा डंगवाल ने पहाड़ी इलाकों में मछलीपालन को एक सफल व्यवसाय में बदला, इस क्षेत्र में सफलता हासिल की और अन्य महिलाओं को भी जागरूक किया।

मछलीपालन fishfarming

प्रस्तावना

क्या आप जानते हैं कि आज की महिलाएं हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान बना रही हैं? आज हम आपको बताएंगे उत्तराखंड की एक ऐसी महिला शिक्षिका की कहानी, जिन्होंने पहाड़ों में मछलीपालन करके सभी को हैरान कर दिया। नैनीताल के सुनकिया गांव की हेमा डंगवाल की कहानी बहुत ख़ास है। जहां लोग पहाड़ों में मछलीपालन को मुश्किल समझते हैं, वहीं इस शिक्षिका ने अपनी 7 साल की टीचिंग (teaching) छोड़कर एक नया रास्ता चुना। समाज में कुछ अलग करने की इच्छा ने उन्हें मछलीपालन के क्षेत्र में क़दम रखने के लिए प्रेरित किया।

आज, पिछले 5 सालों से वह इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर रही हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। आइए जानते हैं, कैसे एक शिक्षिका ने पहाड़ी इलाके में मछलीपालन को एक सफल व्यवसाय में बदल दिया।

हेमा डंगवाल का परिचय (Introduction)

हेमा डंगवाल सुनकिया गांव में एक खुशहाल परिवार में रहती हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद बी.एड. की डिग्री हासिल की। शिक्षिका बनने के बाद, उन्होंने कई साल तक बच्चों को पढ़ाया, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें महसूस हुआ कि अब उन्हें एक नया रास्ता चुनना चाहिए। इसी सोच के साथ, उन्होंने पढ़ाने की जगह अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया। उन्होंने मछलीपालन शुरू करने का विचार किया, जो उनके लिए एक नई शुरुआत और एक चुनौती दोनों थी। उनका सपना था कि वह एक सफल व्यवसायी बनें और अपने गांव के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरें।

मछलीपालन की शुरुआत (Start of fish farming)

हेमा के गांव में, जहां अधिकांश लोग खेती-बाड़ी और पशुपालन से अपना जीवनयापन करते हैं, वहां उन्होंने कुछ नया और अलग करने का निर्णय लिया। उन्होंने देखा कि पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, इसलिए उन्होंने वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) की तकनीक अपनाई और मछलीपालन की दिशा में क़दम बढ़ाया।

आज, हेमा ग्रास कार्प, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प और गोल्डन फिश जैसी मछलियां पाल रही हैं। उन्होंने अपने प्रयासों से 3 कच्चे और 4 पक्के तालाबों का निर्माण किया है, जिनका कुल क्षेत्रफल 350 वर्ग मीटर है, जो मछलीपालन के लिए उपयुक्त है। मछलीपालन में सफलता पाने के लिए, हेमा ने शीतल जल मत्स्यकी अनुसंधान संस्थान, भीमताल और गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय से विशेष प्रशिक्षण भी लिया है। उनके इस प्रयास ने न केवल उनके जीवन में बदलाव लाया है, बल्कि गांव के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनकर उभरा है।

मछलियों का आहार (Diet of fishes)

हेमा मछलियों को शीतल जल मत्स्यकी अनुसंधान संस्थान से मिलने वाला ख़ास कृत्रिम आहार देती हैं। यह आहार मछलियों के लिए बहुत फ़ायदेमंद होता है। इसके साथ ही, वह मछलियों को चावल और आटे की गोलियां भी खिलाती हैं, जिससे उनका खाना और भी अच्छा हो जाता है।

मछलियों के लिए सही पोषण बहुत ज़रूरी है, इसलिए वे उन्हें अन्य पोषक तत्व भी देती हैं। यह संतुलित आहार मछलियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और इससे उनका उत्पादन भी अच्छा होता है। इस तरह, हेमा ने अपने मछलीपालन को एक सफल और स्थायी व्यवसाय बना दिया है।

मछलीपालन का उत्पादन और लागत (Production and cost of Fish Farming)

हेमा प्रति वर्ष 550 किलो मछली का उत्पादन करती हैं, जिसे स्थानीय बाजार में 200 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। इसके अलावा, सजावटी मछलियों की बिक्री भी होती है, जो 80 रुपये की जोड़ी के हिसाब से घर पर ही बिकती हैं।  इस प्रकार, सालाना लगभग 40,000 रुपये की शुद्ध आय होती है। इस आय में से 35,000 रुपये की लागत आती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका मछली पालन एक लाभकारी व्यवसाय है। हेमा जी ने अपनी मेहनत और सही रणनीति से न केवल अच्छा उत्पादन किया है, बल्कि आर्थिक रूप से भी खुद को मज़बूत बनाया है।

मार्केटिंग और बिज़नेस (Marketing and Business)

हेमा मछलियों को स्थानीय बाजार और रेस्तरां में बेचती हैं। इसके अलावा, वह आस-पास के गांवों में भी बिक्री करती हैं, जिससे उनके ग्राहकों की संख्या बढ़ती है।  व्यवसाय का प्रचार-प्रसार करने के कारण, मछलियों की बिक्री में कोई परेशानी नहीं होती। सही मार्केटिंग तकनीकों का उपयोग करके, वे अपने उत्पादों की पहचान बनाती हैं और अधिक ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। इस तरह, हेमा ने अपने मछलीपालन व्यवसाय को सफलतापूर्वक स्थापित किया है।

मछलीपालन में समस्याएं और समाधान (Problems and solutions in Fish Farming)

मछलीपालन में कई समस्याएं आ सकती हैं, जैसे मछलियों में रोग लगना। इस समस्या से निपटने के लिए, हेमा समय-समय पर अपने तालाब की जांच और सफाई करती हैं, ताकि मछलियों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। साथ ही, अगर मछलियों को रोग होता है, तो वह उन्हें दवा भी देती हैं।

जब पानी के स्तर में कमी होती है, तो वे अन्य महिलाओं की मदद से तालाब में पानी भरने का काम करती हैं। इसके अलावा, अधिक बारिश से होने वाली समस्याओं का भी ध्यान रखा जाता है, ताकि मछलियों को कोई नुकसान न पहुंचे। इस तरह, हेमा अपने मछलीपालन को सुरक्षित और सफल बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं।

एकीकृत जल कृषि और पशुपालन (Integrated Aquaculture and Animal Husbandry)

एकीकृत जल कृषि पोल्ट्री पशु पालन एक ऐसा तरीक़ा है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, और खेती करना सभी कार्य एक साथ किए जाते हैं। इसका ही उपयोग करके हेमा मछलीपालन के साथ-साथ खेती और पशुपालन भी करती हैं। वे अपने खेतों में टमाटर, मटर, शिमला मिर्च और राई जैसी सब्जियां उगाती हैं। इसके साथ ही, नाशपाती, सेब और आड़ू जैसे फलों का भी उत्पादन करती हैं। 

इन सभी गतिविधियों से उन्हें साल भर में लगभग 2,50,000 रुपये की अतिरिक्त आय होती है। इस एकीकृत दृष्टिकोण से हेमा न केवल अपने मछलीपालन को मज़बूत करती हैं, बल्कि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाती हैं। यह उनके लिए एक संतुलित और लाभकारी जीवनशैली का हिस्सा है।

सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ (Benefits of government schemes and subsidies)

हेमा को कई सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ मिला है। उन्हें मंडी समिति हल्द्वानी से पक्का तालाब, स्वजल से 10,000 लीटर का तालाब, और मत्स्य पालन निदेशालय से कच्चा तालाब प्राप्त हुआ है। इसके अलावा, कृषि विभाग से उन्हें ड्रिप सिंचाई के लिए पाइप, बीज और तकनीकी सहायता मिलती है, जो उनकी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ भी उन्हें मिलता है, जिससे फसल की सुरक्षा होती है। 

इसके साथ ही, स्वयं सहायता समूह से एक लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण भी मिल रहा है, जिससे वे अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ा सकती हैं। इन सभी सुविधाओं ने हेमा के मछलीपालन और खेती के व्यवसाय को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)

हेमा को मछलीपालन में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए किसान भूषण सम्मान प्राप्त हुआ है। इस सम्मान के साथ-साथ, उन्हें जिला स्तर पर 25,000 रुपये की धनराशि भी मिली है, जो उनकी मेहनत का प्रतीक है। इसके अलावा, उन्हें विभिन्न अन्य पुरस्कार भी मिलते रहते हैं, जो उनके कार्य के प्रति समाज की सराहना को दर्शाते हैं। यह सम्मान और पुरस्कार न केवल उनके लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, बल्कि उनके काम को और भी प्रोत्साहित करने का काम करते हैं। हेमा ने अपनी मेहनत और dedication से अपने क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है।

अन्य महिलाओं के लिए बनी एक प्रेरणा (An Inspiration for other Women)

हेमा डंगवाल आज उन महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन चुकी हैं, जो कुछ नया करना चाहती हैं। वह अपने गांव के अलावा अन्य महिलाओं से भी मिलती हैं, उन्हें समझाती हैं और ट्रेनिंग देती हैं कि वे छोटे व्यवसाय जैसे धूपबत्ती, अगरबती, मोमबत्ती बनाकर बेच सकती हैं।

वह यह भी बताती हैं कि खेती के साथ-साथ अन्य छोटे काम करके भी वे अपना व्यवसाय बढ़ा सकती हैं। उनके अनुसार, स्वयं सहायता समूह में उनकी तरह 100 से अधिक महिलाएं नए-नए काम कर रही हैं, और वह उनसे लगातार संपर्क में रहती हैं। हेमा का कहना है कि इस समूह में सभी महिलाएं एक परिवार की तरह हैं, जो एक-दूसरे का सहयोग करती हैं। उनकी यह पहल न केवल अन्य महिलाओं को प्रेरित करती है, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है।

भविष्य की योजना और सुझाव (Future plans and suggestions)

हेमा भविष्य में अपने मछलीपालन व्यवसाय का विस्तार करना चाहती हैं, ताकि और अधिक लोगों को रोज़गार मिल सके। वह अन्य महिलाओं को भी सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाकर अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उनका मानना है कि खेती के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी किए जा सकते हैं, जिससे आय के कई स्रोत बन सकते हैं। हेमा सभी को यह सलाह देती हैं कि चुनौतियों से न घबराएं और नए काम की शुरुआत करें। उनका यह संदेश है कि मेहनत और दृढ़ संकल्प से हर कोई सफलता हासिल कर सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

हेमा डंगवाल ने अपनी मेहनत और उत्साह से न केवल मछलीपालन में सफलता पाई है, बल्कि वह अन्य महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि सही जानकारी, सरकारी सहायता, और अपने काम के प्रति लगन से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनके अनुभव और सुझाव यह दिखाते हैं कि आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए मेहनत करना अत्यंत जरूरी है। 

भविष्य में, वह अपने व्यवसाय का विस्तार करके और अधिक लोगों को रोज़गार देने का सपना देखती हैं। हेमा का यह सफर हमें सिखाता है कि अगर हम कठिनाइयों से न डरें और आगे बढ़ें, तो हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं।

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