गोविंद सिंह डांगी ने पेश की जैविक खेती और वर्मीकम्पोस्ट में नवाचार की मिसाल

गोविंद सिंह डांगी ने जैविक खेती और वर्मीकम्पोस्ट खाद उत्पादन से अपने खेत को उर्वर बना कर किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत प्रस्तुत किया है।

जैविक खेती Organic Farming

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के संगेश्वर गांव के निवासी गोविंद सिंह डांगी ने जैविक खेती में एक अनूठी पहचान बनाई है। गोविंद सिंह ने अपने छोटे से खेत को एक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करते हुए वर्मीकम्पोस्ट खाद उत्पादन में सफलता प्राप्त की है। अपने गांव में इस प्रक्रिया को सबसे पहले शुरू करने वाले गोविंद सिंह ने आज लगभग 50-100 क्विंटल केंचुआ खाद का वार्षिक उत्पादन करना शुरू कर दिया है। उन्होंने न केवल अपने खेत की मिट्टी को उर्वर बनाया है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने हैं।

वर्मीकम्पोस्ट की शुरुआत: गोविंद का अनुभव (Starting Vermicompost)

गोविंद सिंह बताते हैं-

“शुरुआत में इस प्रक्रिया को गांव में अपनाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण था। केंचुआ खाद का नाम सुनते ही लोग इसे लेकर संदेह करते थे। लेकिन मैंने खुद इस प्रक्रिया को अपनाया और धीरे-धीरे इसके सकारात्मक परिणाम दिखने लगे। आज गांव के कई किसान वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग कर रहे हैं और बेहतर उत्पादन ले रहे हैं।”

गोविंद सिंह का कहना है कि वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि होती है और यह फ़सलों की गुणवत्ता भी सुधारता है। वर्मीकम्पोस्ट में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं और केमिकल्स की आवश्यकता को खत्म करते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट खाद का उत्पादन (Production of Vermicompost Manure)

गोविंद सिंह सालाना 50-100 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन करते हैं, जिससे उन्हें न केवल अपनी फ़सलों में बेहतर उपज मिलती है, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि होती है। वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन में सफल होने के बाद उन्होंने अपने अनुभव को अन्य किसानों के साथ भी साझा किया और उन्हें जैविक खेती के लाभ बताए।

जैविक खेती में योगदान और पुरस्कार (Contribution and awards in organic farming)

गोविंद सिंह के इस प्रयास को कई स्तरों पर सराहा गया है। उन्हें ग्वालियर में प्राकृतिक खेती में राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है और जिला स्तर पर भी उन्हें कई बार कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। ये पुरस्कार उनकी मेहनत, समर्पण और नवाचार का प्रमाण हैं।

गोविंद बताते हैं कि जैविक खेती के लिए उन्होंने अभी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है। वो कहते हैं-

“अगर सरकार से थोड़ी मदद मिले तो मैं इस उत्पादन को और बढ़ा सकता हूं और गांव के अन्य किसानों को इस विधि से जोड़ सकता हूं।”

गोविंद का मानना है कि सरकार को वर्मीकम्पोस्ट जैसी जैविक खेती तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे पर्यावरण को लाभ हो और किसानों की आमदनी में भी वृद्धि हो।

भविष्य की योजनाएं और जैविक खेती का प्रसार (Future plans and promotion of organic farming)

गोविंद का सपना है कि वह अपने गांव और आसपास के इलाकों में वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग को और बढ़ावा दें। वह चाहते हैं कि उनके प्रयासों से अधिक से अधिक किसान जैविक खेती की ओर प्रेरित हों और वर्मीकम्पोस्ट जैसी तकनीकों का लाभ उठाएं। इसके लिए वह गांव में जागरूकता शिविर आयोजित करने और किसानों को इस तकनीक के फ़ायदे समझाने की योजना बना रहे हैं। 

गोविंद सिंह डांगी की कहानी न केवल एक किसान के नवाचार की मिसाल है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। वर्मीकम्पोस्ट के माध्यम से गोविंद ने जैविक खेती में एक क्रांति की शुरुआत की है, जिससे न केवल पर्यावरण को लाभ हुआ है, बल्कि उनकी और उनके गांव के अन्य किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। उनका यह प्रयास सभी किसानों के लिए एक प्रेरणा है और यह दर्शाता है कि किस तरह सही तकनीक और समर्पण के साथ खेती को एक नई दिशा दी जा सकती है। 

वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन से जुड़े आंकड़े (Statistics related to vermicompost production)

भारत में वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का उत्पादन और उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जो जैविक खेती और मृदा स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। 

  • उत्पादन क्षमता: भारत में वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन की सटीक राष्ट्रीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों में इसके उत्पादन में वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों ने बड़े पैमाने पर वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन शुरू किया है।
  • उत्पादन अवधि: वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में लगभग 45 से 75 दिन लगते हैं, जो पारंपरिक कम्पोस्टिंग की तुलना में कम समय है। 

वर्मीकम्पोस्ट की गुणवत्ता (Quality of Vermicompost)

  • पोषक तत्व: वर्मीकम्पोस्ट में नाइट्रोजन (1.25% से 2.5%), फॉस्फोरस (0.75% से 1.6%), और पोटाश (1.5% से 2.5%) के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। 

वर्मीकम्पोस्ट के लाभ (Benefits of Vermicompost)

  • मृदा स्वास्थ्य: वर्मीकम्पोस्ट मृदा की संरचना में सुधार करता है, जल धारण क्षमता बढ़ाता है, और सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को प्रोत्साहित करता है।
  • उत्पादन वृद्धि: फ़सलों की उपज में 20% से 25% तक वृद्धि देखी गई है, जिससे किसानों की आय में भी वृद्धि होती है। 

सरकारी पहल (Government initiatives)

भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी, प्रशिक्षण, और तकनीकी सहायता प्रदान कर रही हैं। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और अन्य संस्थान किसानों को वर्मीकम्पोस्टिंग की तकनीक सिखा रहे हैं। वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन भारत में जैविक खेती और मृदा स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके उपयोग से न केवल मृदा की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होती है। सरकारी समर्थन और किसानों की जागरूकता से वर्मीकम्पोस्टिंग का भविष्य उज्ज्वल है। 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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