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पवन कुमार, दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के हसनपुर गांव के निवासी, एक प्रेरणादायक किसान हैं, जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर हाईटेक मशरूम (Hi-Tech Mushrooms) उत्पादन में अपनी पहचान बनाई। 17 जनवरी 1970 को जन्मे पवन कुमार ने 2016 में मशरूम उत्पादन की शुरुआत की और आज यह उनके जीवन का एक सफल स्टार्टअप बन गया है। 8 वर्षों की कड़ी मेहनत और समर्पण के बाद, पवन कुमार का मशरूम फार्म अब 5000 वर्गफीट में विस्तृत है और 300 टन उत्पादन क्षमता के साथ संचालित है।
पवन कुमार ने यह साबित कर दिया है कि सही दृष्टिकोण और तकनीकी ज्ञान के साथ किसान न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा कर सकते हैं।
शुरुआत और नवाचार
पवन कुमार ने 2016 में कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा, दिल्ली से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने शुरुआत में अपने खेत के 900 वर्गफीट क्षेत्र में “व्हाइट बटन मशरूम” की खेती की। इसके बाद, उन्होंने “पोर्टोबेलो मशरूम” की खेती शुरू की, जो दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में एक नई फसल थी।
मशरूम उत्पादन को आधुनिक और लाभकारी बनाने के लिए उन्होंने सोलन के मशरूम अनुसंधान केंद्र से भी प्रशिक्षण लिया।
उत्पादन और विस्तार
आज पवन कुमार का मशरूम फार्म 5000 वर्गफीट के क्षेत्र में फैला हुआ है और 300 टन की उत्पादन क्षमता के साथ काम करता है। उन्होंने मशरूम उत्पादन को उच्च तकनीक और प्रबंधन से जोड़ा है।
• प्रोसेसिंग: खाद तैयार करना, पीएच स्तर नियंत्रित करना, और मशरूम के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना।
• प्रोडक्शन: व्हाइट बटन और पोर्टोबेलो मशरूम की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
• मार्केटिंग: सीधे ग्राहकों तक मशरूम पहुंचाना और फाइव-स्टार होटलों व कैटरर्स को सप्लाई करना।
आर्थिक लाभ और रोजगार
पवन कुमार का स्टार्टअप आज सालाना 26.10 लाख रुपये से अधिक का टर्नओवर कर रहा है।
• लागत और मुनाफा: मशरूम की औसत कीमत ₹130-150 प्रति किलोग्राम है, जिससे उन्हें लगभग 25-30% का शुद्ध लाभ होता है।
• रोजगार सृजन: 10-11 स्थायी कर्मचारियों के अलावा, वे सीजनल वर्कर्स को भी रोजगार देते हैं, जो जरूरत के समय उनके फार्म पर काम करते हैं।
शिक्षा और प्रशिक्षण
पवन कुमार केवल एक सफल किसान ही नहीं, बल्कि एक प्रशिक्षक भी हैं। वे देशभर से आए 300 से अधिक किसानों को मशरूम उत्पादन की तकनीक सिखा चुके हैं।
• प्रशिक्षण का मॉडल:
• 15-20 दिन का प्रैक्टिकल प्रशिक्षण।
• खाद की तैयारी, प्रोडक्शन और मार्केटिंग की जानकारी।
• सप्लाई चेन और बाज़ार की समझ।
• किसानों के लिए लाभ:
• दिल्ली और अन्य राज्यों में 40-45 किसानों ने उनके मॉडल को अपनाकर अपने फार्म स्थापित किए हैं।
• दिल्ली में अब छोटे-छोटे 25-30 मशरूम फार्म्स पवन कुमार की प्रेरणा से चल रहे हैं।
सम्मान और उपलब्धियां
श्री पवन कुमार को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं:
1. मिलियनेयर फार्मर अवार्ड: डॉ. यू.एस. गौतम, डी.डी.जी. (आईसीएआर) द्वारा।
2. प्रशंसा पत्र: कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा, दिल्ली द्वारा मशरूम उत्पादन तकनीकों के प्रसार के लिए।
3. सफल किसान (मशरूम उत्पादन): दूरदर्शन किसान चैनल पर उनकी कहानी का प्रसारण, जो यूट्यूब पर भी उपलब्ध है।
4. अंतरराष्ट्रीय मान्यता: विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधियों ने उनके फार्म का दौरा किया और उनकी तकनीकों को सराहा।
सामाजिक योगदान
पवन कुमार ने न केवल मशरूम उत्पादन में सफलता पाई, बल्कि अन्य किसानों और युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बने।
• स्थानीय रोजगार: अपने फार्म के माध्यम से युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
• प्रशिक्षण कार्यक्रम: देशभर के किसानों को मशरूम उत्पादन की तकनीक सिखाना।
• स्वास्थ्य और गुणवत्ता: उच्च गुणवत्ता वाले मशरूम उत्पादन के साथ उपभोक्ताओं को पौष्टिक आहार प्रदान करना।
भविष्य की योजनाएं
पवन कुमार का सपना है कि वे अपने मशरूम फार्म को एक मॉडल फार्म में बदलें, जहां किसान आकर सीख सकें और नए स्टार्टअप शुरू कर सकें।
• नवाचार: नई मशरूम प्रजातियों का उत्पादन और अनुसंधान।
• अंतरराष्ट्रीय बाजार: भारत में उगाए गए मशरूम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना।
• सामाजिक प्रभाव: अधिक से अधिक किसानों को प्रशिक्षित करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
पवन कुमार की कहानी यह साबित करती है कि सही दृष्टिकोण, मेहनत और तकनीकी ज्ञान से कोई भी किसान सफलता की ऊंचाईयों को छू सकता है।
उनका संदेश है: “खेती केवल जमीन तक सीमित नहीं है; यह नवाचार और तकनीक के साथ उन्नति का जरिया भी है। मशरूम उत्पादन जैसे उच्च तकनीकी खेती के माध्यम से किसान न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं।”
पवन कुमार का जीवन और कार्य न केवल दिल्ली के किसानों के लिए, बल्कि पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत है। उनकी सफलता की कहानी यह दिखाती है कि यदि सही दिशा में मेहनत की जाए, तो कोई भी किसान आत्मनिर्भर बन सकता है।
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