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ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में बिरजाबेरना नामक एक आदिवासी गांव है, जहां हर साल 1400 मिमी बारिश होती है, और घुरलीजोर नामक एक सिंचाई परियोजना भी है, फिर भी किसानों को सिंचाई की सुविधा नहीं मिलती थी। नहरों से पानी की कमी और सिंचाई के अन्य स्रोत न होने की वजह से आदिवासी किसान सिर्फ खरीफ में धान की एक ही फ़सल उगाते थे। इसके कारण उनकी कृषि उत्पादकता कम थी, और उन्हें अच्छा मुनाफ़ा नहीं मिल पाता था।
इस समस्या का हल एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) में था। इसका उद्देश्य था पानी के संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन करना और किसानों को जल संरक्षण और सिंचाई के बेहतर तरीके सिखाना, ताकि उनकी कृषि उत्पादकता बढ़ सके।
वैज्ञानिक पहल से जल संसाधन प्रबंधन में किया सुधार (Scientific initiatives improve water resource management)
2013-14 में ICAR-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर ने बिरजाबेरना गांव में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) की योजना बनाई और कई जल संरक्षण उपायों को लागू किया। इन उपायों के तहत किसानों को जल प्रबंधन के सही तरीकों और कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में पानी के सही उपयोग के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा, खेतों में जल संरक्षण बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय प्रदर्शन और एक्सपोजर विजिट जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।
सिंचाई की सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए गांव के नहर से जुड़े सामुदायिक तालाब में इनलेट, आउटलेट और अतिरिक्त जल निकासी संरचनाएं बनाई गईं। इससे तालाब में पानी की उपलब्धता (1.2 हेक्टेयर-मीटर) बढ़ी और कमांड क्षेत्र में 30% का इज़ाफा हुआ। इसके साथ ही, सामुदायिक तालाब के पास एक कुआं भी खुदवाया गया, जिससे 1.8 हेक्टेयर मीटर अतिरिक्त पानी मिला और 2.1 हेक्टेयर का अतिरिक्त कमांड क्षेत्र भी बढ़ा। कुएं से पानी की आपूर्ति को भूमिगत पाइपलाइन और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से जोड़ा गया।
आदिवासी किसानों में आत्मविश्वास का संचार (Instilling confidence in tribal farmers)
इन जल प्रबंधन सुधारों का सकारात्मक असर आदिवासी किसानों पर पड़ा। 2015-16 तक, किसानों ने खरीफ में धान, रबी में सरसों, और गर्मियों में मूंगफली और हरी मूंग की तीन फ़सलें लेना शुरू किया। पूरक सिंचाई के कारण खरीफ धान की उपज में 30% की वृद्धि हुई। रबी सीजन में स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के उपयोग से पानी की 32% बचत हुई, और उपज में 28% का इज़ाफा हुआ। इस सुधार ने किसानों को एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) के लाभों का अहसास कराया, जिससे उनकी कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ और वे अधिक मुनाफ़ा कमा सके।
मत्स्य पालन से अतिरिक्त आय (Additional income from fishing)
गांव के सामुदायिक तालाब में वर्षा और नहर के पानी का बहुउद्देशीय प्रबंधन किया गया, जिसमें कृषि और मत्स्य पालन दोनों को बढ़ावा दिया गया। कम इनपुट आधारित मछली पालन से 210 दिनों में 472 किलोग्राम मछली का उत्पादन हुआ, जिससे 62,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की शुद्ध आय प्राप्त हुई।
आदिवासी किसानों की आय में वृद्धि (Increase in income of tribal farmers)
इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, लक्षित क्षेत्र (2.1 हेक्टेयर फ़सल क्षेत्र और 1.0 हेक्टेयर तालाब क्षेत्र) में औसत वार्षिक शुद्ध आय 17,000 रुपये से बढ़कर 2015-16 में 1.42 लाख रुपये हो गई। यह एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) के प्रभावी तरीके से लागू करने का परिणाम था, जिसने आदिवासी किसानों की आय में काफ़ी वृद्धि की।
अन्य आदिवासी गांवों में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated water resources management in other tribal villages)
इन सफलता की कहानियों को देखते हुए, ICAR-IIWM, भुवनेश्वर ने 2016-17 में मोहुलजोर नामक एक अन्य आदिवासी गांव में भी एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) गतिविधियों की शुरुआत की। इस सफलता से प्रेरित होकर, संस्थान ने इस मॉडल को अन्य आदिवासी क्षेत्रों में लागू करने का निर्णय लिया।
निष्कर्ष (Conclusion)
यह सफलता की कहानी स्पष्ट रूप से यह दिखाती है कि वैज्ञानिक तरीके से जल प्रबंधन और किसानों की क्षमता बढ़ाने से न केवल कृषि उत्पादकता में सुधार हो सकता है, बल्कि आदिवासी किसानों की जीवनशैली में भी महत्वपूर्ण बदलाव संभव है। एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) का यह मॉडल अन्य आदिवासी क्षेत्रों के लिए भी आदर्श बन सकता है, जिससे वे जल संसाधनों का सही उपयोग कर अपनी कृषि को बेहतर बना सकते हैं और ज्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
यह कदम सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समुदाय के लिए आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण का प्रतीक बन सकता है। एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resources Management) न केवल कृषि उत्पादकता को बढ़ाता है, बल्कि यह आदिवासी किसानों के जीवन स्तर को भी सुधारने में मदद करता है।
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