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भारत के नॉर्थ-ईस्ट स्टेट मेघालय (North-East State Meghalaya) के री-भोई ज़िले में स्थित मरनगर और सारीखुसी दो ऐसे क्लस्टर हैं, जिनमें पांच-पांच गांव शामिल हैं। इन क्षेत्रों की अधिकांश आबादी आदिवासी (Tribal) है और इनकी आजीविका मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है।
इन क्षेत्रों में लगभग 38 फीसदी आबादी अनपढ़ है और लगभग 95 फीसदी बेरोज़गार हैं। ऐसी स्थिति में, यहां के लोग पारंपरिक रूप से सुअर पालन (Backyard Pig Farming) को अपनी आय का एक प्रमुख स्रोत मानते हैं।
बैकयार्ड सूअर पालन से आर्थिक सुरक्षा (Financial Security from Backyard Pig Farming)
सुअर पालन (Backyard Pig Farming) न केवल उनके लिए एक आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि ये आर्थिक संकट के समय में तत्काल नकदी की सुविधा भी देता है। हालांकि, परंपरागत तरीकों से सुअर पालन (Backyard Pig Farming) करने के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता था। इन स्थानीय सूअरों का आकार छोटा होता था और उनकी विकास दर भी कम थी।
फार्मर्स फर्स्ट परियोजना (Farmers First Project)
इन चुनौतियों को देखते हुए, आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स फॉर एनईएच रीजन, उमियम, मेघालय (ICAR Research Complex for NEH Region, Umiam, Meghalaya) की ओर से फार्मर्स फर्स्ट परियोजना (Farmers First Project) शुरू की गई। इस परियोजना का उद्देश्य बैकयार्ड सूअर पालन (Backyard Pig Farming) को वैज्ञानिक तरीकों से बेहतर बनाना था।
इस पहल के तहत नौ गांवों मरनगर क्लस्टर में बोरगांग, पुरंगांग, लालमपम, बोरखतसरी और नालापारा-जोइगांग जैसे गांव जबकि सारीखुसी क्लस्टर में उमथम, नोंगागांग, सारीखुसी, मावट्नम और मावफ्रू गांव में उन्नत नस्ल के सूअरों (हैम्पशायर X लोकल खासी) को पेश किया गया। किसानों को सुअरों के बच्चे वितरित किए गए और वैज्ञानिक पद्धतियों के अनुसार प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया।
प्रशिक्षण में बेहतर आवास व्यवस्था, संतुलित आहार, प्रजनन और स्वास्थ्य देखभाल के उपाय शामिल थे। कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक भी इन किसानों को सिखाई गई। जिससे उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हो पाए।
मृणाल सोखवाई की सफलता की कहानी (Success Story of Mrinal Sokhwai)
इस परियोजना का सबसे प्रेरणादायक उदाहरण आदिवासी मृणाल सोखवाई हैं। बोरखतसरी गांव के रहने वाले मृणाल जी एक बेरोजगार युवा थे, जिनका परिवार कृषि पर निर्भर था। वो पहले पारंपरिक तरीके से सुअर पालन करते थे, लेकिन स्थानीय नस्लों की कम उत्पादकता के कारण उन्हें ज्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाता था।
अगस्त 2017 में, मृणाल जी को फार्मर्स फर्स्ट परियोजना के तहत 8 उन्नत नस्ल के सूअर (4 नर और 4 मादा) दिये गए। उन्होंने वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, अपने सूअर बाड़े को बेहतर बनाया और नर सूअरों को मोटा करने के लिए बधिया किया। समय-समय पर स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और उचित आहार प्रबंधन से सूअरों की सेहत और उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
आर्थिक लाभ और विस्तार (Economic Benefits And Expansion)
एक साल की अवधि में मृणाल जी का कुल खर्च 75,000 रुपये रहा। इस दौरान उन्होंने दो नर सूअरों को 9,000 रुपये प्रति सूअर की दर से बेचा और 18,000 रुपये की कमाई की। एक और सूअर को 24,000 रुपये में बेचा। एक मादा सूअर ने प्राकृतिक रूप से गर्भधारण कर 9 बच्चों को जन्म दिया। उन्होंने दूध छुड़ाने के बाद 7 सूअरों को 2,300 रुपये प्रति सूअर की दर से बेचकर 16,100 रुपये कमाए।
तीन मादा सूअरों को कृत्रिम गर्भाधान के ज़रीये से प्रजनन कराया गया, जिससे 22 सूअरों का जन्म हुआ। उनमें से 17 सूअरों को 2,600 रुपये प्रति सूअर की दर से बेचकर 44,200 रुपये की आय हुई।
इस प्रकार, मृणाल जी ने कुल 1,02,300 रुपये की आय प्राप्त की और 27,300 रुपये का लाभ कमाया।
समुदाय के लिए योगदान और प्रेरणा (Contribution And Inspiration To The Community)
मृणाल जी ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर किया, बल्कि गाँव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बने। उन्होंने टिकाऊ सुअर पालन को बढ़ावा देने के लिए अपने दो सूअरों को पड़ोसी किसानों – बिवास माझोंग और डुवेल बार्का को दान कर दिया। इससे गाँव में सुअर पालन की संस्कृति को बढ़ावा मिला और अन्य किसानों को भी इस व्यवसाय में सफलता की उम्मीद मिली।
उन्नत नस्ल, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और बेहतर प्रबंधन तकनीक (Improved Breed, Scientific Training And Better Management Techniques)
फार्मर्स फर्स्ट परियोजना ने मरनगर और सारीखुसी क्लस्टर के किसानों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। उन्नत नस्ल, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और बेहतर प्रबंधन तकनीकों ने किसानों की आय में वृद्धि की है और रोजगार के नए अवसर खोले हैं।
मृणाल सोखवाई की यह सफलता की कहानी न केवल आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक है, बल्कि यह प्रमाणित करती है कि सही मार्गदर्शन और प्रयास से ग्रामीण क्षेत्रों में भी समृद्धि की नई राहें बनाई जा सकती हैं।
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