जानिए कैसे नई तकनीक से बिहार में बटन मशरूम की खेती कर रहे अजय कुमार यादव

बटन मशरूम की खेती से किसान अजय कुमार यादव ने नया व्यवसाय शुरू किया और युवा किसानों को इस खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिससे तगड़ा मुनाफा मिल रहा है।

बटन मशरूम की खेती Mushroom Cultivation

प्रोटीन से भरपूर मशरूम की खेती पिछले कुछ सालों में किसानो के बीच बहुत लोकप्रिय हुई है और इसकी सबसे बड़ी वजह है इससे मिलने वाला तगड़ा मुनाफा। मशरूम न सिर्फ शहरी, बल्कि अब गांव के लोगों के बीच भी मशहूर हो चुका है और इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए ही किसान बड़े पैमाने पर बटन मशरूम की खेती कर रहे हैं। बिहार के सारण (छपरा) जिले के फुलवरिया गांव के किसान अजय कुमार यादव ने भी अपने व्यवसायी बनने के सपने को बटन मशरूम की खेती के ज़रिए ही पूरा किया।

कैसे वो नई तकनीक की मदद से पूरे साल मशरूम उगा रहे हैं और कैसे युवाओं को इसकी खेती के लिए प्रेरित करने के साथ ही उनका मार्गदर्शन भी कर रहे हैं, इन सभी मुद्दों पर उनसे विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया का संवाददाता सर्वेश बुंदेली ने।

व्यवसाय में बचपन से थी दिलचस्पी (Interested in business since childhood)

बटन मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) शुरू करने के बारे में अजय कुमार यादव बताते हैं कि उन्होंने पढ़ाई तो राजनीति शास्त्र से की है, लेकिन बचपन से ही उनकी रुचि उद्योग-धंधे की तरफ रही है। अखबार, न्यूज़ चैनल के ज़रिए आसपास के इलाके की जानकारी मिलती रहती थी और मन में आया कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे यहां के लोगों को भी रोज़गार मिले।

इसलिए 2019 से उन्होंने बटन मशरूम उगाने का काम शुरू किया। इसके ज़रिए वो अपने राज्य की ग्रामीण अधारभूत सरंचना को मज़बूत करना चाहते हैं, चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिले और उनके जीवन स्तर में सुधार आए। आज अजय कुमार 30-40 लोगों को रोज़गार दे रहे हैं और साल में 200 टन के करीब मशरूम का उत्पादन करके बड़े व्यवसायी भी बन गए हैं।

कहां से लिया प्रशिक्षण (Where did you get your training from)

अजय यादव ने बटन मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation)करने से पहले ट्रेनिंग ली है। इस बारे में वो कहते हैं कि एक बार अखबार में मशरूम मैन दयानंद सर का लेख छपा था, जिसे पढ़ने के बाद ही उन्होंने पूसा यूनिवर्सिटी से प्रशिक्षण लिया और मशरूम उत्पादन का काम शुरू कर दिया। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए अजय यादव ने बैंक से लोन लिया और कुछ अपनी पूंजी लगाई।

पारंपरिक और हाईटेक तकनीक में अंतर (Difference between traditional and high-tech technology)

आमतौर पर मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) सर्दियों के मौसम में ही की जाती है, क्योंकि मशरूम अधिक तापमान सहन नहीं कर पाता है, लेकिन आधुनिक तकनीक की बदौलत बंद कमरे में तापमान नियंत्रित करके किसान पूरे साल मशरूम उगा सकते हैं। इस बारे में अजय कुमार यादव बताते हैं कि पारंपरिक तरीके से बटन मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) सिर्फ सर्दियों में ही की जा सकती है यानी नवंबर से लेकर फरवरी तक।

जबकि वैज्ञानिक तकनीक की मदद से तापमान नियंत्रित करके पूरे साल बटन मशरूम उगाया जा सकता है, जिससे किसानों को पूरे साल आमदनी होगी। अजय यादव बताते हैं कि वो दोनों ही तरीके से मशरूम उगाते है जिससे उन्हें सालाना करीब 300 टन तक उत्पादन प्राप्त हो जाता है।

मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया (Mushroom production process)

जैसे फसल की खेती के लिए किसान पहले खेत तैयार करता है और खाद-पानी डालकर बुआई करता है, उसी तरह की प्रक्रिया मशरूम उत्पादन में भी होती है, फर्क सिर्फ इतना है कि इसे खेतों में नहीं उगाया जाता है, बल्कि बंद कमरे में इसकी खेती होती है। सबसे पहले वैज्ञानिक तरीके से कंपोस्ट तैयार किया जाता है फिर बेड बनाकर बिजाई यानी स्पॉनिंग की जाती है। स्पॉनिंग के समय का तापमान 26-27 डिग्री होता है। स्पॉनिंग के बाद कोकोफिट की केसिंग करते हैं, रफलिंग करते हैं। उत्पादन प्रक्रिया में तापमान को धीरे-धीरे कम किया जाता है। मशरूम की स्पॉनिंग के 35 दिनों के बाद उत्पादन शुरु हो जाता है।

बाज़ार और मार्केटिंग की समस्या नहीं (No market or marketing problem)

अजय कुमार यादव के व्यवसाय की एक खासियत यह है कि उन्हें अपना माल बेचने के लिए ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। उनकी मार्केटिंग चेन इतनी अच्छी है कि लोकल में ही उनके ज़्यादातर मशरूम बिक जाते हैं। वो बताते हैं कि सारण में ही प्रति दिन 3 क्विंटल तक बिक्री हो जाती है। इसके अलावा आरा, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में भी ये मशरूम भेजते हैं और जो बचता है उसे सिलिगुड़ी और पटना भेजा जाता है। उनके लिए बाज़ार की कोई समस्या नहीं है। वो कहते हैं कि सर्दियों में प्रोडक्शन बहुत होता है, क्योंकि ये मौसम मशरूम उगाने के लिए बिल्कुल अनुकूल है।

सीज़नल मशरूम की डिमांड बहुत ज़्यादा होती है और इस समय इसका रेट भी थोड़ा कम हो जाता है। दरअसल, लोकल ठेले वालो के पास एसी तो होता नहीं है, वो खुले में ही मशरूम रखते हैं, मगर मौसम ठंडा होन के कारण ये खराब नहीं होता है। जो छोटे किसान इनसे जुड़े हैं उन्हें भी अगर मशरूम बेचने में किसी तरह की दिक्कत आती है, तो वो उनकी बाज़ार की समस्या हल कर देते हैं। 

कई लोगों को दिया रोज़गार (Gave employment to many people)

अजय कुमार यादव की मशरूम फर्म के साथ बहुत से छोटे किसान जुड़े हुए हैं। वो बताते हैं कि सीज़न में जब वो खाद बनाते हैं तो कई छोटे किसान यहां से खाद ले जाकर मशरूम उगाते हैं। इतना ही नहीं जो अपशिष्ट बचता है किसान उसे ले जाकर अपने खते में डालते हैं, क्योंकि ये जैविक खाद का काम करता है।

अजय कुमार बताते हैं कि उनकी फर्म से 10-15 व्यापारी भी सीधे तौर पर जुड़े हुएं हैं जो यहां से माल ले जाकर सीधे बेचते हैं। उन्होंने 40-50 लोगों को रोज़ागर दिया हैं, जिसमें महिलाओं की काफी बड़ी संख्या है। यानी वो महिलाओं को आत्मनिर्भऱ बना रहे हैं। आगे वो बताते हैं कि जो किसान उनसे खाद ले जाते हैं, जो उनसे जुड़े रहते हैं और अगर उनका माल नहीं बिकता है तो वो उसे सिलिगुड़ी भिजवाते हैं यानी किसानों को मार्केटिंग के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है।

ट्रेनिंग भी देते हैं (They also provide training)

अजय कुमार यादव कहते हैं कि वो किसानों और छात्रों को ट्रेनिंग भी देते हैं। पिछले साल राची यूनिवर्सिटी से 3 छात्र आए थे 2 महीने की ट्रेनिंग करके गए। यहां कई यूनिवर्सिटी के छात्र आते हैं और प्रशिक्षण लेकर जाते हैं।

बदला लोगों का नज़रिया (changed people’s perspective)

अपनी शुरुआती दिनों के बारे में अजय कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने काम शुरू किया तो लोगोंने कहा कि 200 रुपए किलो मशरूम कौन खाएगा, जहां 30 रुपए की हरी सब्ज़ी कोई नहीं खात। शुरू में दिक्कत हुई, लेकिन धीरे-धीरे मशरूम की पौष्टिकता के बारे में पता चलने पर लोगों का नज़रियां बदला। अब तो जो लोग मशरूम ले जाते हैं, वही इसका प्रचार कर देते हैं। आसापस के बहुत से लोग अजय कुमार से प्रभावित होकर मशरूम का उत्पादन करने लगे हैं।

भविष्य की योजना (future plan)

अजय कुमार का इरादा भविष्य में न सिर्फ अपने बिज़नेस को और आगे बढ़ाने का है, बल्कि वो और भी बहुत कुछ करना है। उनका कहना है, “संघर्ष कर चुका हूं तो आने वाला 10 साल मेरा होगा।”

बिजली की समस्या (Power problems)

वैज्ञानिक तकनीक से बटन मशरूम की खेती के लिए 24 घंटे बिजली की ज़रूरत है, लेकिन उनके इलाके में बिजली की थोड़ी समस्या है। इस बारे में वो बताते हैं कि बिजली जब चली जाती है, तो उन्होंने डिजी रखा हुआ है। जिसकी वजह से मशरूम की कीमत बढ़ जाती है और उनका मुनाफा कम हो जाता है। अगर बिजली 24 घंटे मिले तो मुनाफा बढ़ेगा।

युवाओं को संदेश (message to youth)

अजय कुमार युवाओं खासतौर से बिहार के युवाओं से कहते हैं कि हिम्मत जुटाई और कहीं से ट्रेनिंग लेकर काम शुरू किया। सिर्फ मशरूम ही नहीं कुछ और भी उगा सकते हैं, क्योंकि बिहार में बहुत जगह है। शुरू में थोड़ी दिक्कत होगी, मगर मानकर चलिए कि आने वाला समय आपका होगा।

 ये भी पढ़ें: मशरूम की खेती की शुरुआत कैसे करें और कहां है बाज़ार? 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top