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बदलते वक़्त के साथ खेती की तस्वीर भी बदलती जा रही है। अब सिर्फ खेतों में ही फसल नहीं उगाई जाती, बल्कि कई ऐसी तकनीक आ चुकी है जिसकी मदद से बंद कमरे और छत के ऊपर भी खेती करके किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं। खेती की ऐसी ही एक तकनीक है हाइड्रोपोनिक तकनीक। हाइड्रोपोनिक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिये खेती करना है।
इसी नई तकनीक की मदद से भोपाल के युवा अमन संधू सब्ज़ियों का उत्पादन कर रहे हैं और जल्द ही वो इस खेती को 100 एकड़ में करने की योजना भी बना रहे हैं। अमन संधू ने हाइड्रोपोनिक खेती से जुड़े अहम पहलुओं पर चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
हाइड्रोपोनिक खेती क्या है?
हाइड्रोपोनिक शब्द पिछले कुछ सालों से काफी लोकप्रिय हो गया है। इसका मतलब होता है बिना मिट्टी के खेती। इसमें एक बंद जगह में नियंत्रित तापमान में खेती की जाती है। इसके बारे में अमन संधू बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक तकनीक में Nutrient film technique की मदद से बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के ज़रिए ही पौधों को विकसित किया जाता है। पानी के ज़रिए ही पौधों को पोषख तत्व दिया जाता है। इसमे एक पाइपनुमा स्ट्रक्चर होता है जिसमें पौधे लगाए जाते हैं। इसके अलावा ग्रो बैग में भी पौधे उगाए जाते हैं जो हाइड्रोपोनिक खेती की श्रेणी में ही आता है।
बस दोनों में फर्क इतना है कि ग्रो बैग में बड़े पौधे जैसे टमाटर और खीरा की खेती की जाती है। इन पौधों की जड़ों को फैलने के लिए जगह चाहिए और बढ़ने के लिए सपोर्ट इसलिए इन्हें चैनल की बजाय ग्रो बैग में उगाया जाता है। इस बैग में कोकोपीट डाला जाता है। आप चाहें तो रेत और कंकड़ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और पोषक तत्व इसमें भी पानी के माध्यम से ही दिया जाता है। हाइड्रोपोनिक खेती में चैनल के नीचे बहुत ही पतली पानी की फिल्म चल रही होती है जिससे पौधों को 24 घंटे पानी की सप्लाई होती रहती है और इसी फिल्म के ज़रिए पौधा पानी और पोषक तत्व को अवशोषित करता है।
कैसे शुरु किया काम?
अमन संधू बताते हैं कि ये विचार तो उनके दिमाग में काफी समय से चल रहा था। कॉलेज के दिनों में ही वो अपने एक पार्टनर से इस बारे में बात करते थे। लेकिन कोविड के बाद महसूस हुआ कि हेल्दी खाने की सबको ज़रूरत है, जो आसानी से मिलता नहीं है। बस इसी सोच ने उन्हें ये काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया। अमन हमेशआ से अलग-अलग चीज़ें ग्रो करना चाहते थे।
उनका कहना है कि वो हमेशा अलग-अलग वैरायटी विकसित करना चाहते थे, मगर जिनसे भी वो सेटअप खड़ा करने के लिए हम कोटेशन मांगते थे, तो बजट बहुत ज़्यादा बताता था और जो बड़ी कंपनियां थी वो छोटे प्रोजेक्ट पर काम नहीं करना चाहती थी, तो उन्हें इग्नोर करती थी। इसलिए अमन और उनके पार्टनर ने मिलकर खुद ही हाइड्रोपोनिक का स्ट्रक्चर तैयार किया। सारा काम खुद ही करके सीख रहे हैं।
कौन-कौन सी फसल उगाते हैं
अमन बताते हैं कि उनका अभी रिसर्च वाली स्टेज पर ही है तो ट्रायल के लिए वो अभी तक 16-17 फसलें उगा चुके हैं। वो बताते हैं कि फिलहाल वो बेबी स्पिनच, धनिया, पुदीना उगा रहे हैं। एग्जॉटिक सब्ज़ियों में खेर स्विस चाट, लेट्यूस, चेरी टोमैटो, खीरा, शिमला मिर्च, और इटैलियन टमाटर की वैरायटी भी वो उगा चुके हैं।
पानी का पीएच बैलेंस है ज़रूरी
आज भी कुछ लोगों को लगता है कि बिना मिट्टी के भला खेती कैसे की जा सकती है, तो अमन कहते हैं कि पौधों को कुछ ही चीज़ की ज़रूरत होती है जैसे धूप, पानी और पोषण। पोषण उन्हें किसी भी तरीके से दिया जा सकता है जो वो अवशोषित कर सकें। इस तकनीक में पानी के ज़रिए पोषण दिया जाता है, लेकिन ध्यान रखने की ज़रूरत है कि पानी का 5 से 6.5 के बीच ही रहे, तभी पौधे इसे ठीक तरह से अवशोषित कर पाएंगे। अब जब पौधों को पोषण, हवा और रोशनी मिल गई तो मिट्टी की ज़रूरत नहीं है।
नर्सरी तैयार है महत्वपूर्ण
पॉलीहाउस की तरह है इस हाइड्रोपोनिक तकनीक में भी नर्सरी तैयार करना काफी महत्वपूर्ण स्टेप है। अमन बताते हैं कि हरी पत्ते सब्ज़ियों का साइकल बहुत जल्दी-जल्दी होती है, तो इसमें बहुत बार री सीडिंग करके नए पौधे डालने पड़ते हैं। इसके लिए दो तरीका ज़्यादा इस्तेमाल होता है। एक है ओएसएस क्यू, इसमें एक तरह का फोम होता है जो बहुत अच्छे से पानी को अवशोषित करता है। तो इसे गीला करके इसमें बीज डाला जाता है और इसे कुछ समय के लिए अंधेरे में रख देते हैं। जब ये अंकुरित हो जाए तो इसे रोशनी में रखा जाता है।
फिर जब इसमें कुछ पत्तियां निकल आती हैं, जब इन्हें ट्रांसप्लांट किया जाता है चैनल में। ऐसा ही ग्रो बैक के लिए किया जाता है। फोम की जगह आप कोकोपीट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरीके में सीडलिंग ट्रे में कोकोपीट भरें और उसमें बीज डाल दें। तारीख नोट कर लें, क्योंकि हाइड्रोपोनिक तकनीक में ये आइडिया रहना ज़रूरी है कि कितने समय में पौधे विकसित हो रहे हैं।
पालक कितने दिनों में तैयार होता है?
अमन बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक खेती में कई स्टेज में पौधे लगाए जाते हैं। जैसे एक ट्रे में आमतौर पर 130-140 बीज डाले जाते हैं, जब ये अंकुरित हो जाते हैं तो इन्हें रोशनी में रखते हैं और पौधे निकलने लगते हैं तो इसे दूसरी जगह ट्रांसफर किया जाता है। फिर जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो इन्हें चैनल में डाला जाता है। इसके बाद बहुत ज़्यादा ध्यान पड़ता है, क्योंकि यहीं खर्च ज़्यादा होता है। चैनल में डालने के 35 दिन बाद पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है।
कैसे करें मार्केटिंग?
अमन संधू का कहना है कि अभी तो वो बहुत छोटे पैमाने पर सब्ज़ियां उगा रहे हैं, इसलिए मंडी में नहीं जा सकते हैं। मगर वो किसानों को सलाह देते हैं कि चूकि इस हाइड्रोपोनिक तकनीक में उच्च गुणवत्ता वाली सब्ज़ियां तैयार होती है, तो इसके लिए वो ऐसे कैफे, रेस्टोरेंट की तलाश करें जिन्हें वैरायटी और क्वालिटी चाहिए, वो लोग फसल की अच्छी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं, क्योंकि ऐसी सब्ज़ियों की सप्लाई अभी बहुत कम है। इसके अलावा किसानों को अलग-अलग लोगों के पास जाकर अपना प्रोडक्ट दिखाना चाहिए, अपने सेटअप में भी लोगों को बुलाकर दिखाएं। क्वालिटी अच्छी होगी तो फसल आसानी से बिक जाएगी।
न्यूट्रिएंट्स में क्या देते हैं?
अमन पोषक तत्वों के बारे में कहते हैं कि हर पौधे के न्यूट्रिएंट्स की ज़रूरत अलग होती है। हालांकि फर्क थोड़ा ही होता है लेकिन कर्मशियल तौर पर खेती करने के लिए इनका ध्यान रखना ज़रूरी है। वो कहते हैं कि पानी में पानी में घुलने वाले पोषक तत्व बाज़ार में आसानी से मिल जाते हैं, इनका इस्तेमाल फसल की ज़रूरत के हिसाब से करना चाहिए।
ग्रोअर बैग और हाइड्रोपोनिक में भिन्नता
अमन बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक चैनल में छोटे पौधे उगते हैं, 30-35 दिनों में तैयार हो जाते हैं। हरी पत्तेदार सब्ज़ियों के लिए ये बेस्ट है। जबकि ग्रोअर बैग बड़ी फसलों जो 6, 8 महीने ये सालभर में तैयार होती है उनके लिए अच्छा होता है। खीरे और टमाटर जैसी फसलों की जड़ों को फैलने के लिए जगह चाहिए होती है तो इन्हें चैनल में नहीं उगाया जा सकता।
क्या पौधों में रोग लगते है?
इस तकनीक में भी पौधों में रोग लगते हैं। अमन बताते हैं कि इंबैलेंस की वजह से रोग हो सकते हैं। पौधों को सही पोषक तत्व नहीं देना, सही समय पर पौधों की कटिंग नहीं करना और फसल की समय पर कटाई न करने से समस्या हो सकती है। साथ ही अगर आप बाहर से घास से चलकर आए हैं और आपके पैरों या चप्पल में कीड़े चिपके होते हैं तो अंदर आने पर वो फसल में लग सकते हैं। इसलिए हाइजीन का ध्यान रखें और पौधों की समय-समय पर जांच करते रहें।
युवाओं को संदेश
जब भी खेती करें तो आपको सबकुछ पता होना चाहिए, कौन सा बीज लगा रहे हैं, क्या उपचार करना है। प्रो एक्टिव रहना ज़रूरी है यानी कुछ बुरा होने से पहले ही स्टेप ले लें। जैसे बीमारी होने के बाद उपचार करने की बजाय बीमारी को होने से रोकें।
छोटे पैमाने पर हाइड्रोपोनिक तकनीक से सब्ज़ियां उगाने वाले अमन की योजना इसे पहले 5 एकड़ और फिर 100 एकड़ तक फैलाने की है। यानी वो बहुत बड़े पैमाने पर हाइड्रोपोनिक खेती की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए उनकी रिसर्च पूरी हो चुकी है। अमन का कहना है कि ज़ीरो पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करके खेती करने का उनका मकसद था जो अचीव हो गया है। उम्मीद है उनसे दूसरे युवा भी प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे।
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