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खेती का काम बहुत जोखिम भरा होता है, कभी मौसम की मार, तो कभी कीट और पशुओं के कारण किसानों को फसल का भारी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में वैज्ञानिक लगातार उन्नत किस्मों के विकास के ज़रिए ही नहीं, बल्कि कुछ नई फसलों के बारे में जानकारी देकर भी किसानों की मुश्किल हल करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसा ही एक प्रयास CSIR – CIMAP यानी केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान द्वारा भी किया जा रहा है। ये संस्थान किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित कर रहा है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ दीपेंद्र कुमार ने औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती (Cultivation of medicinal and aromatic plants) से जुड़ी बहुत सारी अहम जानाकरी साझा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
अरोमा मिशन के तहत औषधीय पौधों को बढ़ावा
CSIR – CIMAP पिछले कई सालों से किसानों की आमदनी में इज़ाफा करने के मकसद से उन्हें औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती (Cultivation of medicinal and aromatic plants) के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इसके लिए उनसे अरोमा मिशन भी चला रखा है जिसके तहत किसानों को न सिर्फ इन पौधों की खेती की जानकारी दी जाती है, बल्कि पौध और प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
यही नहीं फसल के प्रसंस्करण और मार्केटिंग में भी किसानों की मदद की जाती है ताकि वो ऐसी फसल ज़्यादा से ज़्यादा उगाने के लिए प्रेरित हों। CSIR – CIMAP के इसी पहल पर और ज़्यादा जानकारी देते हुए डॉ दीपेंद्र कुमार ने बताया कि उनका संस्थान लगातार किसानों की मदद के लिए काम कर रहा है।
औषधीय पौधों की किस्में
डॉ. दीपेंद्र कुमार जानकारी देते हुए बताते हैं कि उनका संस्थान किन-किन मेडिसिनल और एरोमेटिक प्लांट को बढ़ावा दे रहा है। वो कहते हैं औषधीय पौधों में सबसे पहले आता है मेंथा जो बहुत लोकप्रिय है और जिसके बारे में लगभग सबने सुना होगा। इसे पुदीने के रूप में आमतौर पर सभी घरों में लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसके अलावा औषधीय पौधों में शामिल हैं लेमनग्रास, खस, सिट्रोनेला। साथ ही रोशा ग्रास, गुलाब, स्टीविया, रोज़मेरी, ऑरीगेनो, लैवेंडर आदि भी औषधीय और सुगंधित पौधों की श्रेणी में आते हैं। वो बताते हैं कि CIMAP मुख्य रूप से मेंथा, लेमनग्रास, खस, सिट्रोनेला की फसल पर काम कर रहा है। वो इन्हें किसानों तक पहुंचा रहा है और उन्हें इनकी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
मेंथा और पेपरमिंट की किस्में
आमतौर पर लोग मेंथा और पेपरमिंट को एक ही समझते हैं, मगर ये दोनों ही अलग होते हैं। डॉ. दीपेंद्र कुमार बताते हैं कि मेंथा में चार तरह के मिंट शामिल हैं- मेंथॉल मिंट, स्पीयरमिंट, पेपरमिंट और पुदीना। मिंट की इन चार किस्मों में भी कई वैरायटी होती है जिसके बारे में उनका कहना है कि मेंथॉल मिंट की सिम उन्नति किस्म अभी बहुत चल रही है। इससे पहले सिम कोशी, सिम क्रांति किस्में मार्केट में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी हैं और किसानों ने भी इसे काफी पसंद किया।
इसी तरह स्पीयरमिंट और पेपरमिंट में अलग-अलग वैरायटी होती है जिसमें कुकरैल, किरण शामिल हैं। इसके अलावा घर में इस्तेमाल होने वाली पुदीना की भी अलग वैरायटी है। उनका कहना है कि अभी बाज़ार में सबसे ज़्यादा मांग मेंथॉल मिंट, स्पीयरमिंट और पेपरमिंट की है, क्योंकि उद्योग में इनका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है। अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट में अलग-अलग तरह के मिंट का इस्तेमाल होता है।
मिट्टी और वातावरण
बहुत से औषधीय पौधों की खासियत होती है कि वो बंजर भूमि में भी उग जाते हैं जहां सामान्य फसलें उग नहीं पाती हैं। साथ ही ऐसे पौधों को बहुत देखभाल की ज़रूरत भी नहीं होती है। डॉ. दीपेंद्र कुमार का कहना है की खेती ऐसी जगहों पर की जानी चाहिए जहां पानी की उचित व्यवस्था हो, क्योंकि इसमें पानी की बहुत ज़रूरत होती है। जहां तक मिट्टी का सवाल है तो इसकी खेती के लिए मध्यम, दोमट मिट्टी अच्छी होती है। साथ ही मिट्टी में जल निकासी की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
डॉ. दीपेंद्र कहते हैं कि औषधीय पौधों की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे किसान सह फसल यानी कि दूसरी फसलों के साथ लगा सकते हैं। इसे गेहूं, गन्ने आदि के साथ लगाया जा सकता है। यही नहीं औषधीय पौधों को जानवर भी नहीं खाते हैं। डॉ. दीपेंद्र किसानों से इन फसलों को लगाने की अपील करते हैं। उनका कहना है कि फसल को सुरक्षित रखने का भी ये बढ़िया तरीका है।
बढ़ रही है जागरुकता
हमारे गांव-घर के आसपास बहुत से औषधीय पौधों को लोग जंगल-झाड़ समझकर फेंक देते हैं, क्योंकि उन्हें इसके उपयोग पता ही नहीं है। इस बारे में डॉ. दीपेंद्र कुमार कहते हैं कि आज से 40-50 साल पहले तक किसान इन फसलों को खऱपतवार समझकर उखाड़ देते थे, क्योंकि उन्हें इसके उपयोग के बारे में जानकारी नहीं थी।
जैसे-जैसे साइंस टेक्नोलॉजी आगे बढ़ी, रिसर्च हुई तो लोगों को इसके फ़ायदे समझ आए। अब अगर लेमनग्रास की बात की जाए तो इसका जो तेल है वो हमारे घरों में पोंछा लगाने में इस्तेमाल होता है, इसकी खुशबू बहुत अच्छी होती है। रोशा ग्रास की बात की जाए तो इससे भी तेल मिलता है और मेंथॉल से भी।
मिंट का इंडस्ट्री में इस्तेमाल
डॉ. दीपेंद्र कुमार बताते हैं कि हर फसल का फसल का अलग-अलग इंडस्ट्री में अपना उपयोग है। जैसे परफ्यूम, कॉस्मेटिक्स, साबुन, टूथपेस्ट, च्यूंगम आदि में अलग-अलग तरह के मिंट का उपयोग होता है। च्यूगंम में स्पीयरमिंट का इस्तेमाल होता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य
CSIR – CIMAP तो औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती (Cultivation of medicinal and aromatic plants) के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर ही रहा है, साथ ही उन्हें प्रसंस्करण से लेकर उत्पाद को बाज़ार पहुंचाने में भी मदद कर रहा है, मगर कई बार किसानों को उपज की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। ऐसे में डॉ. दीपेंद्र इंडस्ट्री से अनुरोध कर रहे हैं कि किसानों को उचित दाम मिले। जिससे वो आगे भी इसकी खेती के लिए प्रेरित हो। दरअसल, इन फसलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) अभी नहीं दी जा रही है, इसलिए वो सरकार से ऐसा करने की अपील कर रहे हैं, क्योंकि मुनाफा होगा तभी किसान खेती के लिए प्रेरित होंगे।
औषधीय पौधों की खासियत
- ये पौधें आमतौर पर किसी भी तरह के मौसम में उग जाते हैं और पूरे साल इनकी खेती की जा सकती है।
- कम उपजाऊ और बंजर भूमि में भी कुछ पौधें लगाए जा सकता हैं। जैसे गिलोय और तुलसी रेगिस्तान में भी उग जाती हैं।
- जानवरों को दूर रखने में मदद करते हैं। आम फसलों की तुलना में कम देखभाल की ज़रूरत होती है जिससे लागत भी कम आती है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।