कई विशेषज्ञ मानते हैं कि आज के दौर में शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिलने के बजाय भोजन में हानिकारक तत्व शायद ज़्यादा मिल रहे हैं। उनका मानना है कि इसका लोगों के स्वास्थ्य बहुत विपरीत असर पड़ रहा है। यही नहीं घटती पैदावार, मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए पानी की कमी भी किसानों की आय में कमी का कारण बन रहा है। इन्हीं सब प्रासंगिक विषयों पर मैंने मध्य प्रदेश में रतलाम ज़िले के प्रगतिशील किसान अरविंद धाकड़ से बात की। वह अपने ‘धाकड़ हाइड्रोपोनिक्स’ में हाइड्रोपोनिक खेती कर रहे हैं और इसमें अब एक्सपर्ट बन गए हैं। मैंने उनसे इस तकनीक और उनके फ़ार्म से जुड़े कई सवाल पूछे। आइए जानते हैं कि उन्होंने इसे कैसे समझाया:
अर्पित – अपने फार्म के बारे में हमें बताइये और ये भी बताईये कि आप किस-किस चीज की खेती करते हैं?
अरविंद – हम यहाँ पारंपरिक खेती को छोड़कर बागवानी (Horticulture) कर रहे हैं। हम अंगूर, अमरूद, अंजीर, स्ट्रॉबेरी और विदेशी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। हम स्ट्रॉबेरी की खेती मिट्टी रहित यानी हाइड्रोपोनिक तकनीक के ज़रिये कर रहे हैं।
अर्पित – आपका फ़ार्म कितना बड़ा है और बागवानी करना कैसे क्यों शुरू किया?
अरविंद – पारंपरिक खेती में मुझे अच्छा भाव नहीं मिल रहा था। इसके साथ ही पैदावार भी उतनी नहीं हो पाती है। बागवानी में हम मन मुताबिक़ पैदावार ले पाते हैं। इनका बाज़ार में दाम भी अच्छा मिलता है। मौसम के बदलाव से फसलों को नुकसान भी कम होता है। ये सब जानकारी मुझे देश-विदेश में अलग-अलग जगह जाने से मिली है।
अर्पित – हाइड्रोपोनिक खेती की तकनीक आपने कहाँ से सीखी और उसका कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं?
अरविंद – मैं 2015 में इज़रायल गया था और वहाँ मैंने अलग-अलग तरीके की खेती देखी। इजरायल की बात करें तो वो खेती में नंबर 1 है, छोटा सा देश होने के बावजूद वहाँ अच्छा प्रोडक्शन होता है। वहीं मैंने बिना मिट्टी के यानी हाइड्रोपोनिक तकनीक से स्ट्रॉबेरी, टमाटर, पालक की खेती देखी थी। इसी तकनीक को फिर मैंने अपने फार्म में इस्तेमाल किया जिसमें मुझे सफलता भी मिली। इसके साथ ही अब मैंने अपने फार्म में एग्रो-टूरिज़्म भी शुरू किया है। इसके अलावा हम हाइड्रोपोनिक खेती की दो दिन की ट्रेनिंग भी देते हैं। इस तकनीक को पढ़ने के साथ-साथ प्रैक्टिकल तरीके से समझना भी ज़रूरी है।
अर्पित – पारंपरिक तकनीक और हाइड्रोपोनिक तकनीक की लागत में कितना फ़र्क है?
अरविंद – देखिए, हाइड्रोपोनिक खेती उन किसानों के लिए फायदेमंद है जो शहरों के नजदीक रहते हैं और जिनके पास ज़मीन कम है। इसके अलावा ज़मीन अगर बंजर है और कम उपजाऊ है तो भी फायदेमंद है। ये वर्टिकल फ़ार्मिंग कॉन्सेप्ट है। मैंने भी अपने यहाँ 6.5 से 7 फ़ीट का टॉवर लगाया है यानि एक के ऊपर एक लेयर बनाकर उसमें फिर फसल लगाई है। लागत इस पर निर्भर करती है कि आप कितने क्षेत्र में और कितनी ऊंचाई तक इसकी खेती कर रहे हैं। इसमें 200 से 250 रुपये वर्ग फ़ीट के हिसाब से खर्चा लगता है। इसके अलावा पॉलीहाउस के अंदर करते हैं तो लागत बढ़ जाती है। इसकी साथ ही प्रोडक्शन की बात करें तो 1 साल के अंदर लागत की रिकवरी मिल जाती है।
अर्पित – इस तकनीक में प्रोडक्शन के साथ-साथ क्या फसल के चुनाव पर भी अच्छी कमाई निर्भर करती है?
अरविंद – जी, हमें ऐसी फसल चुननी चाहिए जिसकी बाज़ार में कीमत 100 रुपये किलो से ज़्यादा हो। इसमें खेती करने के लिए हम विदेशी सब्जियों (exotic vegetables) को चुन सकते हैं। आप जिस भी फसल की खेती कर रहे हैं उसकी मार्केटिंग करना भी ज़रूरी है। आप रसायन मुक्त (Chemical free) खेती करते हैं तो उसकी मार्केटिंग भी वैसे ही होनी चाहिए।
अर्पित – हाइड्रोपोनिक तकनीक से कोई खेती करना चाहे तो शुरू में किन-किन चीजों की ज़रुरत पड़ती है?
अरविंद – इसमें फसल के मुताबिक दो तरीके से खेती होती है। पहला, अगर पौधों की ऊंचाई कम है तो वर्टिकल फ़ार्मिंग और पौधों की ऊंचाई ज़्यादा है तो हॉरिजॉन्टल फ़ार्मिंग। इसके लिए हमें पाइप की जरूरत पड़ती है। पानी की सप्लाई के लिए एक मोटर चाहिए। इसके लिए लोहे के स्टैंड भी बनाने पड़ते हैं। इसके साथ ही पॉलीहाउस तकनीक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं । ये फसलों के लिए सही तापमान, जलवायु बनाने का काम करता है।
अर्पित – हाइड्रोपोनिक खेती से कैसे फायदा मिलता है?
अरविंद – इसे हम एक उदाहरण के तौर पर ऐसे समझ सकते हैं। एक बीघा में पारंपरिक तरीके के मुकाबले 5 से 6 गुना ज़्यादा पौधे इसमें लगा सकते हैं। इससे सीधे-सीधे पैदावार ज़्यादा मिलती है।
अर्पित – मार्केटिंग की बात करें तो उसको आप कैसे कर रहे हैं?
अरविंद – हम स्ट्रॉबेरी की खेती कमर्शियल लेवल पर कर रहे हैं। इसकी खेती का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि इसे हम गांव और शहर, दोनों में बेच सकते हैं। अभी हम डायरेक्ट ग्राहकों को बेच रहे हैं। हम खुद ही पैकेजिंग करते हैं। मैं ये भी सुझाव देना चाहूँगा कि किसान मंडी पर ही सिर्फ़ निर्भर ना रहें। इसके अलावा सोशल मीडिया और amazon, flipkart पर भी फसल को बेच सकते हैं। हमने भी अपना नेटवर्क facebook, whatsaap के जरिए बनाना शुरू किया है।
अर्पित – आपके फार्म का बिज़नेस मॉडल किस तरीके से काम करता है?
अरविंद – मैं यहाँ चार चीजों पर फोकस करता हूँ। पहला है एग्रो-टूरिज़्म, दूसरा कमर्शियल लेवल पर खेती, तीसरा फार्म पर ट्रेनिंग और चौथा है फार्म सेटअप। इसके साथ ही मैंने अपना यूट्यूब चैनल भी शुरू किया है।
अरविंद जी से अगर आपका भी कोई सवाल हो या संपर्क करना चाहें तो कमेंट सेक्शन में अपना सवाल पूछ सकते हैं।
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