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महेश बी. सोलंकी, एक जुझारू और समर्पित किसान हैं, जो गुजरात के सुरेन्द्रनगर ज़िले से हैं। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में गहरी समझ और तकनीकी सूझबूझ के साथ न केवल अपने खेत की उर्वरता को बढ़ाया है बल्कि अपनी आय को भी बढ़ाने में सफलता पाई है। सोलंकी जी की कृषि में नई तकनीक के उपयोग और परंपरागत खेती के लिए उनकी दीर्घकालिक योजना उनके क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत बन चुकी है।
प्राकृतिक खेती और आत्मनिर्भरता का मॉडल (Model of natural farming and self-sufficiency)
महेश जी का जैविक खेती का मॉडल एक अनोखा उदाहरण है जिसमें वे किसी बाहरी संसाधन पर निर्भर नहीं रहते। उनके पास लगभग 20-25 देशी गाय हैं, जिनके गोबर और गोमूत्र का उपयोग वे खाद, कीटनाशक और पोषक तत्वों के निर्माण में करते हैं। सोलंकी जी का कहना है कि Organic Farming में अगर बाहरी रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग न करके, खेत में उपलब्ध सामग्री से ही खाद और अन्य आवश्यक पदार्थ बनाए जाएं तो उत्पादन की गुणवत्ता और पौष्टिकता बेहतर होती है। उनके फार्म पर सभी आवश्यक सामग्री का निर्माण होता है और वे अपने खेत में किसी भी प्रकार के रासायनिक उत्पादों का उपयोग नहीं करते।
नए तकनीकों का कुशल उपयोग (Efficient use of new technologies)
महेश जी ने जैविक खेती में नवाचार लाने के लिए कई प्रकार की आधुनिक तकनीकों का भी उपयोग किया है। उनके पास बड़ी-बड़ी टंकियों में जीवामृत, बीजामृत और अन्य पोषक तत्वों का निर्माण होता है, जिन्हें स्वचालित मोटरों से मिलाया जाता है। इससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि मिश्रण भी एक समान बनता है। इन मिश्रणों का उपयोग करके वे अपने खेतों में उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं और इसकी विशेषता यह है कि इनका पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
चुनौतीपूर्ण शुरुआत और नवाचार का लाभ (Challenging beginnings and the benefits of innovation)
महेश जी का यह सफर चुनौतियों से भरा रहा है। जैविक खेती में कीटों और खरपतवार से निपटना एक बड़ी समस्या होती है। इसके लिए उन्होंने जैविक तकनीकों का सहारा लिया और प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के उपयोग से कीट नियंत्रण को प्राथमिकता दी। उनका कहना है कि यह विधि न केवल जैव विविधता को बचाने में सहायक है बल्कि इसके माध्यम से वे अपने उत्पादों की पोषकता को बनाए रखने में सफल होते हैं। इन उपायों से उनकी फ़सलें बेमिसाल गुणवत्ता वाली होती हैं और स्थानीय बाजारों में अधिक मूल्य पर बिकती हैं।
स्थानीय किसानों के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा (Guidance and inspiration for local farmers)
महेश सोलंकी न केवल अपने फार्म पर ही नई तकनीकों का उपयोग करते हैं, बल्कि वे अपने अनुभवों को अन्य किसानों के साथ भी साझा करते हैं। उनके खेत पर आने वाले किसानों को वे जैविक खेती की संपूर्ण विधियां सिखाते हैं, जिससे अन्य किसान भी पर्यावरण अनुकूल खेती को अपना सकें। उनके फार्म का दौरा करने वाले किसानों को न केवल Organic Farming का व्यवहारिक ज्ञान मिलता है बल्कि एक प्रायोगिक और प्रेरणादायक उदाहरण भी मिलता है।
जैविक खेती का भविष्य और महेश जी का योगदान (The future of organic farming and the contribution of Mahesh)
महेश बी. सोलंकी का मानना है कि Organic Farming का भविष्य उज्ज्वल है, खासकर तब जब कृषि में नई तकनीकों का प्रयोग हो। जैविक खेती में लागत कम और मुनाफा अधिक होने से किसानों की आय में सुधार आता है और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में भी सहायता मिलती है। महेश जी का योगदान और उनका समर्पण उनके क्षेत्र में Organic Farming को मजबूती प्रदान कर रहा है, जो आने वाले समय में पर्यावरण संरक्षण और कृषि की नई दिशा के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
महेश जी का यह कार्य केवल उनके खेतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में एक प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती ही एक ऐसा रास्ता है जो न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधार सकता है, बल्कि समाज को स्वस्थ और शुद्ध भोजन भी प्रदान कर सकता है।
महेश जैसे अन्य किसान भी यदि Organic Farming की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं तो वे कुछ मुख्य बातों का ध्यान रखकर एक सफल शुरुआत कर सकते हैं। जैविक खेती एक प्राकृतिक विधि है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, खेत में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर भूमि की उर्वरता को बनाए रखा जाता है। जैविक खेती में शुरुआत करने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी है:
1. मिट्टी की तैयारी और जैविक खाद का उपयोग:
- जैविक खेती की शुरुआत मिट्टी की जांच से होती है। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट, जीवामृत, और बीजामृत जैसे प्राकृतिक खादों का उपयोग किया जा सकता है।
- महेश जैसे किसान अपने खेत में उपलब्ध गायों के गोबर और गोमूत्र से जीवामृत और बीजामृत बनाते हैं, जो पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
2. बीज की गुणवत्ता और देसी बीजों का प्रयोग:
- जैविक खेती में उच्च गुणवत्ता वाले देसी बीजों का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि इन बीजों में पर्यावरणीय अनुकूलन की क्षमता अधिक होती है।
- जैविक बीजों की उपलब्धता के लिए स्थानीय कृषि केंद्रों या जैविक बीज वितरण कार्यक्रमों से संपर्क किया जा सकता है। देसी बीजों से पौधे अधिक स्वस्थ और कीट प्रतिरोधी होते हैं।
3. प्राकृतिक कीटनाशक और खरपतवार नियंत्रण:
- रासायनिक कीटनाशकों की जगह प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग करें। नीम का तेल, गोमूत्र, लहसुन-अदरक के मिश्रण और त्रिदोषक खटाई का इस्तेमाल फ़सलों में कीट नियंत्रण के लिए किया जा सकता है।
- खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक मल्चिंग, गुड़ाई, और बुवाई के दौरान उचित दूरी पर पौधों का रोपण किया जा सकता है। यह पौधों के विकास के साथ-साथ खरपतवार को भी नियंत्रित करता है।
4. जल संचयन और सिंचाई:
- जल संरक्षण के लिए खेत में वर्षा जल संचयन का इंतजाम करना जरूरी है, जिससे सूखे के समय फ़सलों को पानी मिल सके।
- ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग पानी की बर्बादी को रोकने में सहायक होता है और इससे फ़सलों को पर्याप्त पानी मिलता है।
5. सरकारी योजनाओं का लाभ:
- जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई प्रकार की योजनाएं चलाती हैं, जैसे कि Organic Farming योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, और वर्मी कम्पोस्ट यूनिट अनुदान योजना।
- इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क करें और कृषि केंद्रों से जानकारी प्राप्त करें।
6. समुदाय से सहयोग और प्रशिक्षण:
- जैविक खेती में अनुभव की अहमियत होती है, इसलिए अनुभवी किसानों के साथ मिलकर काम करें या फिर कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लें।
- महेश जैसे किसानों से संपर्क करना और उनसे मार्गदर्शन लेना एक अच्छा कदम हो सकता है। उनके जैसे सफल जैविक किसानों से प्रेरणा लेकर अन्य किसान भी अपने खेतों में इस तकनीक को आसानी से अपना सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
जैविक खेती न केवल पर्यावरण के अनुकूल होती है बल्कि इसके उत्पाद भी स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं। इसके अलावा, इससे किसानों की आय में सुधार होता है और वे एक स्थायी एवं आत्मनिर्भर खेती की ओर कदम बढ़ाते हैं। Organic Farming में निवेश की जरूरत कम होती है, और यदि इसे सही ढंग से किया जाए तो मुनाफा अधिक हो सकता है।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
To,
Mr Mahesh B Solanki
“Heartfelt congratulations to the honorable Mahesh Solanki for being a true inspiration to farmers across the nation. Your unwavering dedication to promoting organic farming has earned you the well-deserved title of the ‘Godfather of Organic Farming.’ Your visionary leadership and tireless efforts have empowered countless farmers and set a benchmark for sustainable agricultural practices. You are shaping a healthier and greener future for generations to come. We deeply admire your contributions and wish you continued success in your noble mission!”