बिमला देवी: हिमाचल की ऊंचाइयों से उठती जैविक खेती और पुराने बीजों के संरक्षण की बनी मिसाल

बिमला देवी ने मोटे अनाज (millet grains) पर ख़ास फोकस किया है। वो कहती हैं कि मोटा अनाज (millet grains)जैसे बाजरा, ज्वार, रागी और कुटकी न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बनाए रखते हैं। इन अनाजों में छिपे पोषक तत्व आज की बदलती जीवनशैली के लिए वरदान हैं।

Bimla devi

हम बात करने जा रहे हैं हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले की एक ऐसी महिला की कहानी, जिन्होंने अपने गांव चवरी से जैविक खेती (Organic Farming) में क्रांति ला दी है। हम बात कर रहे हैं बिमला देवी (Bimla Devi) की, जिन्होंने अपने जुनून और मेहनत से न सिर्फ अपनी बल्कि हजारों महिलाओं की जिंदगी बदल दी है।

बिमला देवी  का जन्म 19 अगस्त 1982 को हुआ था। बचपन से ही उन्हें खेती-किसानी में रुचि थी। परंपरागत खेती के बीच उन्होंने कुछ अलग करने का सपना देखा। वो समझ गईं कि आज की दुनिया में रसायनों और केमिकल से भरी खेती से हटकर जैविक और प्राकृतिक खेती (Organic Farming)  ही वो रास्ता है, जिससे हम अपनी मिट्टी, अपनी सेहत और अपनी फसल को बचा सकते हैं।

मोटे अनाज का प्रचार और पुराने बीजों का संरक्षण

बिमला देवी ने मोटे अनाज (millet grains) पर ख़ास फोकस किया है। वो कहती हैं कि मोटा अनाज (millet grains)जैसे बाजरा, ज्वार, रागी और कुटकी न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बनाए रखते हैं। इन अनाजों में छिपे पोषक तत्व आज की बदलती जीवनशैली के लिए वरदान हैं।

इसके अलावा, बिमला देवी पुराने बीजों के संरक्षण (preservation of old seeds) पर भी काम कर रही हैं। वो उन फसलों को फिर से उगाने की कोशिश कर रही हैं, जो समय के साथ कम उगाई जाने लगी थीं, लेकिन उनके स्वास्थ्य लाभ बेमिसाल हैं। वो गांव-गांव जाकर लोगों को इन बीजों की खेती और उनके उपयोग के फायदे बताती हैं।

स्वयं सहायता समूह और रेसिपी का प्रचार

बिमला देवी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह की स्थापना की। उनके इस समूह में आज कई महिलाएं शामिल हैं, जो जैविक खेती और पारंपरिक व्यंजनों के प्रचार में उनकी मदद कर रही हैं। बिमला देवी ने न सिर्फ फसल उगाने पर ध्यान दिया, बल्कि इन अनाजों से बनने वाली रेसिपी को भी प्रमोट किया। वो कहती हैं, “सिर्फ उगाना ही नहीं, लोगों को इसे अपने खान-पान में शामिल करना भी सिखाना जरूरी है।”

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान

बिमला देवी के काम को सिर्फ उनके गांव तक ही सीमित नहीं रखा गया। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेलों में हिस्सा लिया और अपनी खेती के तरीकों को दुनिया के सामने रखा। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई बार सम्मानित किया गया। बिमला देवी का कहना है कि हर सम्मान उनके काम के प्रति जिम्मेदारी को और बढ़ा देता है।

जैविक खेती के फायदे और भविष्य की योजना

बिमला देवी मानती हैं कि जैविक खेती न सिर्फ पर्यावरण को बचाती है, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ाती है। उनका कहना है कि रसायनिक खेती के मुकाबले जैविक खेती में लागत कम आती है और बाजार में इसका दाम ज्यादा मिलता है।

उनकी सालाना आय 1-10 लाख रुपये के बीच है। बिमला देवी चाहती हैं कि आने वाले समय में ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक खेती की तरफ रुख करें। इसके लिए वो गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाती हैं।

प्रेरणा और संदेश

बिमला देवी का मानना है कि अगर महिलाएं खेती में कदम बढ़ाएं तो वे न सिर्फ आत्मनिर्भर बन सकती हैं, बल्कि समाज में भी बदलाव ला सकती हैं। वो कहती हैं, “खेती सिर्फ पुरुषों का काम नहीं है। महिलाएं भी इसमें अपना योगदान दे सकती हैं और इसे एक नई दिशा दे सकती हैं।”

बिमला देवी का संघर्ष और उनका काम हमें ये सिखाता है कि मेहनत और सच्चे इरादे से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। उनकी कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है, जो कुछ अलग करने का सपना देखती है।

 पूरे देश के लिए एक मिसाल

आज बिमला देवी न सिर्फ हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। उन्होंने दिखा दिया कि अगर लगन और मेहनत हो, तो आप पहाड़ों की ऊंचाइयों को भी पार कर सकते हैं।

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