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विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश के पटनायकुनी गीता रामकृष्ण ने भारतीय कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने के लिए जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के साथ मोती पालन (Pearl Farming) को अपनाया है। 20 अगस्त 1962 को जन्मे रामकृष्ण जी ने खेती को पर्यावरण के अनुकूल और लाभकारी बनाने के उद्देश्य से मोती पालन की शुरुआत की। उनकी मेहनत और इनोवेशन ने उन्हें विशाखापत्तनम के किसानों के बीच एक प्रेरणा के रूप में स्थापित किया है।
मोती पालन में जैविक दृष्टिकोण (Organic approach in pearl farming)
मोती पालन का प्रारंभ
पटनायकुनी गीता रामकृष्ण ने 6-10 एकड़ भूमि पर मोती पालन की शुरुआत की। यह पारंपरिक खेती से अलग और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, लेकिन उन्होंने इसे सफलतापूर्वक अपनाया।
- जैविक तरीके:
– बिना किसी रसायन का उपयोग किए मोती की खेती।
– पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जैविक फिल्टर और बैक्टीरिया का उपयोग।
- पर्यावरण संरक्षण:
– जल स्रोतों की स्वच्छता और पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने का विशेष ध्यान।
मोती पालन की विधि (pearl farming method)
सीपों (Oysters) की देखभाल: सीपों का चयन और उनके अंदर मोती उत्पन्न करने की प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक संचालित किया जाता है।
जैविक पोषण: सीपों को जैविक पोषण देकर उनकी वृद्धि सुनिश्चित की जाती है।
गुणवत्ता: उत्पादित मोती उच्च गुणवत्ता और आकर्षक आकार के होते हैं, जिनकी मांग बाजार में अधिक है।
प्रेरणा और योगदान (Inspiration and contributions)
खेती में नवाचार का उद्देश्य:
रामकृष्ण जी ने पारंपरिक खेती से हटकर मोती पालन को अपनाया और जैविक तरीकों से इसे अधिक फ़ायदेमंद बनाया।
– यह प्रयास स्थानीय किसानों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गया है।
– उन्होंने यह साबित किया कि सीमित संसाधनों के बावजूद, सही तकनीकों और दृष्टिकोण से बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव (Economic and social impact)
– मोती पालन ने उनकी आय में वृद्धि की है।
– उन्होंने स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा किए हैं।
चुनौतियां और प्रयास (Challenges and efforts)
चुनौतियां:
- प्रारंभिक निवेश की कठिनाई:
मोती पालन में प्रारंभिक लागत अधिक होती है।
- तकनीकी ज्ञान की कमी:
मोती पालन तकनीकी विशेषज्ञता की मांग करता है।
प्रयास (Effort)
रामकृष्ण जी ने इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए स्व-अध्ययन और विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त किया। उन्होंने सीपों की देखभाल और पोषण में जैविक दृष्टिकोण को अपनाया।
सरकारी योजनाओं का लाभ (Benefits of government schemes)
हालांकि रामकृष्ण जी ने अब तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है, लेकिन उनका प्रयास यह दर्शाता है कि सीमित संसाधनों के साथ भी सफलता प्राप्त की जा सकती है।
भविष्य की योजनाएं (future plans)
- जैविक खेती का विस्तार:
जैविक मोती पालन के साथ अन्य जल कृषि तकनीकों को शामिल करना।
- स्थानीय किसानों को प्रशिक्षित करना:
मोती पालन और जैविक खेती के बारे में जागरूकता फैलाना।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच:
अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात करना।
निष्कर्ष (conclusion)
पटनायकुनी गीता रामकृष्ण का जीवन इस बात का उदाहरण है कि नवाचार और दृढ़ संकल्प से खेती को लाभकारी और टिकाऊ बनाया जा सकता है। उनका प्रयास न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि स्थानीय किसानों को भी नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। जैविक मोती पालन में उनका योगदान भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करता है।
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