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खेती-बाड़ी, जो सदियों से हमारी संस्कृति और आजीविका का आधार रही है, अब एक नए मोड़ पर खड़ी है। इस बदलाव की धारा उन किसानों से बह रही है, जिन्होंने पारंपरिक खेती (Traditional Farming) की जंजीरों को तोड़ते हुए जैविक खेती (Organic Farming) को अपनाया है। ये वो किसान हैं, जो न सिर्फ अपनी पैदावार को बढ़ाना चाहते हैं, बल्कि अपनी जमीन की उर्वरता, पर्यावरण और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की भी चिंता करते हैं।
जैविक खेती (Organic Farming) की यात्रा
लेकिन जैविक खेती (Organic Farming) की इस यात्रा की शुरुआत अक्सर आसान नहीं होती। परंपरागत खेती से हटकर जब कोई किसान जैविक खेती (Organic Farming) की ओर बढ़ता है, तो यह सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं होता, बल्कि एक सोच, एक दृष्टिकोण और जीवनशैली में परिवर्तन का प्रतीक होता है। खेत में बीज बोने के तरीके से लेकर खाद और कीटनाशक के चुनाव तक, हर एक कदम में जागरूकता, धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है।
फसल की गुणवत्ता और किसान की आजीविका
ये कहानी केवल खाद या कीटनाशकों के विकल्प की नहीं है, यह उस किसान के साहस की कहानी है, जिसने जोखिम उठाने का फैसला किया। यह परिवर्तन फसल की गुणवत्ता और किसान की आजीविका दोनों के लिए एक नया रास्ता खोलता है। ऐसे में, एक साधारण किसान जब अपने खेत को जैविक खेती (Organic Farming) में बदलता है, तो वह केवल अपनी जमीन की उर्वरता नहीं बचा रहा होता, बल्कि भविष्य की एक नई खेती की कहानी भी लिख रहा होता है।
कमलेश कुमार ने दी पारंपरिक खेती को एक नई दिशा
आज जब दुनिया भर में जैविक उत्पादों (Organic Farming) की मांग बढ़ रही है, तब इन प्रगतिशील किसानों की यह यात्रा हमें बताती है कि एक छोटे से गांव से भी बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है। कमलेश कुमार, एक प्रगतिशील किसान हैं, जिन्होंने अपनी पारंपरिक खेती को एक नई दिशा दी है। गोरखपुर जिले के एक छोटे से गांव से आने वाले कमलेश कुमार का परिवार वर्षों से खेती-बाड़ी के काम में लगा हुआ है। उन्होंने अपने पूर्वजों की विरासत को न केवल संभाला, बल्कि उसमें जैविक खेती को शामिल कर एक नया अध्याय भी जोड़ा है। कमलेश की इस यात्रा में मेहनत, धैर्य, और बदलाव को अपनाने का साहस साफ दिखाई देता है।
पारंपरिक खेती से जैविक खेती की ओर
कमलेश कुमार का परिवार वर्षों से गन्ने की खेती करता आ रहा है। उनके दादा-परदादा के समय से ही गन्ना इस क्षेत्र की मुख्य फसल रही है। पहले खेती के पारंपरिक तरीकों के साथ रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता था, जिससे फसल की पैदावार तो होती थी, लेकिन उसकी गुणवत्ता पर असर पड़ता था।
जब कमलेश ने जैविक खेती (Organic Farming) के बारे में जानकारी प्राप्त की, तो उन्होंने महसूस किया कि रासायनिक खेती के बजाय जैविक खेती न केवल फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगी, बल्कि जमीन की उर्वरता को भी बनाए रखेगी।
लागत और मुनाफा: एक संतुलन बनाए रखना
कमलेश की गन्ने की खेती में सालाना करीब 1.5 से 2 लाख रुपये का खर्च होता है। उन्होंने बताया, “गन्ना एक सालाना फसल है, जिसे एक बार बोने के बाद पूरे साल देखभाल करनी होती है। इसमें सही देखभाल, समय पर पानी और खाद का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है।”
फसल की पूरी तैयारी के बाद, जब गन्ने की फसल कटती है, तो उनका मुनाफा 6-7 लाख रुपये तक पहुँच जाता है। यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि पारंपरिक खेती में उन्हें इतना मुनाफा नहीं होता था। जैविक खेती ने न केवल उनकी उपज को बढ़ाया, बल्कि बाजार में भी उन्हें एक अलग पहचान दिलाई।
जैविक खेती की तकनीक: पारंपरिक और आधुनिक का समन्वय
कमलेश ने जैविक खेती (Organic Farming) के कई तरीकों को अपनाया है। उन्होंने सबसे पहले वर्मी कम्पोस्ट और गोबर की खाद का प्रयोग शुरू किया। इसके बाद, उन्होंने ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक कीटनाशकों का भी इस्तेमाल करना शुरू किया, जिससे फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हुआ।
उनका मानना है कि जैविक खेती (Organic Farming) से न केवल पैदावार अच्छी होती है, बल्कि इससे पर्यावरण और जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है। आज उनके खेत में जो गन्ना होता है, वह बाजार में ऊंचे दामों पर बिकता है, क्योंकि लोग जैविक उत्पादों को प्राथमिकता देने लगे हैं।
नई तकनीकों का प्रयोग: एक सीमित दृष्टिकोण
हालांकि, कमलेश जैविक खेती में कई पारंपरिक और जैविक तरीकों (Organic Farming) का प्रयोग करते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक मशीनों और अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग नहीं किया है। इसका मुख्य कारण उनकी आर्थिक स्थिति और स्थानीय मजदूरों को रोजगार देने की सोच है।
उनके अनुसार, “अगर हम मशीनों का उपयोग करेंगे, तो गाँव के मजदूरों का रोजगार छिन जाएगा। हम चाहते हैं कि हमारी खेती के माध्यम से गांव के लोगों को भी काम मिले, ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें।”
सरकारी योजनाओं का लाभ
कमलेश को किसान सम्मान योजना का लाभ मिल रहा है, जो 2014 से उनके परिवार की आय को थोड़ा स्थिरता प्रदान करता है। इस योजना से उन्हें खेती के दौरान आने वाली आर्थिक कठिनाइयों को कम करने में मदद मिलती है।
पारंपरिक खेती में बदलाव लाकर जैविक खेती को अपनाया
कमलेश कुमार की ये कहानी बताती है कि मेहनत और सही दिशा में किया गया प्रयास हमेशा फलदायक होता है। उन्होंने अपनी पारंपरिक खेती में बदलाव लाकर जैविक खेती (Organic Farming) को अपनाया और एक नई पहचान बनाई। उनकी यह यात्रा उन किसानों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी खेती को बेहतर बनाना चाहते हैं।
कमलेश का ये प्रयास न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बना रहा है, बल्कि समाज के लिए भी एक सकारात्मक संदेश दे रहा है कि जैविक खेती से हम न केवल अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि अपनी जमीन और पर्यावरण की भी रक्षा कर सकते हैं।