रूना रफीक ने एंटीबायोटिक-फ्री चिकन से पोल्ट्री फ़ार्मिंग में नई राह दिखायी

रूना रफीक ने पोल्ट्री फ़ार्मिंग में एंटीबायोटिक-फ्री चिकन उत्पादन के साथ अपनी पहचान बनाई। उनकी सफलता का सफ़र बढ़ती मांग और गुणवत्ता पर आधारित है।

पोल्ट्री फ़ार्मिंग Poultry Farming

असम में गुवाहाटी से लगभग 40 किमी दूर चांगसारी की रहने वाली रूना रफीक ने पोल्ट्री फ़ार्मिंग की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। उनका मिशन है – लोगों को एंटीबायोटिक-फ्री चिकन उपलब्ध कराना, जिससे चिकन खाने वालों को एक हेल्दी और सुरक्षित विकल्प मिले। रूना ने अपनी यह यात्रा 2020 में शुरू की, जब उनके पोल्ट्री फ़ार्म की मासिक उत्पादन क्षमता मात्र 20 किलो थी। लेकिन बढ़ती मांग के कारण आज उनका पोल्ट्री फ़ार्म हर महीने 500 किलो एंटीबायोटिक-फ्री चिकन तैयार करता है, फिर भी डिमांड इतनी ज़्यादा है कि उनकी सप्लाई कम पड़ जाती है।

क्या है रूना के पोल्ट्री फ़ार्म की ख़ासियत? (What is special about Runa’s poultry farm?) 

बाज़ार में उपलब्ध ज़्यादातर पोल्ट्री फ़ार्मों में ब्रॉयलर मुर्गों को तेजी से बड़ा करने और बीमारियों से बचाने के लिए एंटीबायोटिक के इंजेक्शन दिए जाते हैं। लेकिन रूना ने इस परंपरा को तोड़ते हुए एक प्राकृतिक और स्वस्थ तरीका अपनाया है:

  • उनके चिकन को कोई इंजेक्शन या दवा नहीं दी जाती।
  • वे बाज़ार में मिलने वाले रेडीमेड पोल्ट्री फीड का इस्तेमाल नहीं करतीं।
  • फ़ार्म में ही ख़ासतौर पर प्राकृतिक फीड तैयार किया जाता है।

रूना बताती हैं, “हम रेडीमेड फीड का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि खुद ही नेचुरल फीड बनाते हैं,” उनकी यह मेहनत सस्टेनेबल पोल्ट्री फ़ार्मिंग को बढ़ावा दे रही है और लोगों को सेहतमंद चिकन का विकल्प दे रही है।

सुअर पालन से मुर्गी पालन की सफलता तक (From pig farming to poultry farming success)

रूना ने 2019 में सबसे पहले सुअर पालन का व्यवसाय शुरू किया था। किसानों में छोटे सुअरों (पिगलेट्स) की भारी मांग थी, जिससे उनका व्यापार तेजी से बढ़ा। लेकिन फिर कोरोना महामारी आई और साथ ही अफ्रीकन स्वाइन फीवर का प्रकोप फैला। इस बीमारी ने उनके पूरे फ़ार्म को तबाह कर दिया, जिससे उन्हें सुअर पालन पूरी तरह बंद करना पड़ा।

लेकिन रूना ने हार नहीं मानी। एक दिन उन्हें सरकारी रिपोर्ट मिली, जिसमें मुर्गी पालन में एंटीबायोटिक्स के उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों का जिक्र था। यह जानकर उन्हें प्रेरणा मिली और उन्होंने साराइघाट फ़ार्म की शुरुआत की, जहां वह सिर्फ एंटीबायोटिक-फ्री पोल्ट्री फ़ार्मिंग करने लगीं।

रूना बताती हैं, “अगर आप बार-बार एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करेंगे, तो शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाएगी, जिससे दवाइयां बेअसर हो सकती हैं।”

स्वस्थ मुर्गी का ब्रांड कैसे बना? (How did the healthy chicken brand come into being?)

रूना का पोल्ट्री फ़ार्म छोटे स्तर पर शुरू हुआ। उन्होंने पहली बार 20 किलो एंटीबायोटिक-फ्री चिकन अपने दोस्तों के बीच वितरित किया। धीरे-धीरे लोगों को इसके बारे में पता चला और मांग बढ़ती गई।

  • आज 200+ ग्राहक उनके चिकन के नियमित खरीदार हैं, जो WhatsApp पर ऑर्डर करते हैं।
    • पूरा काम—चूजों को पालने, पैकिंग और डिलीवरी तक—फ़ार्म पर ही किया जाता है।
    • ग्राहकों को घर तक डिलीवरी मिलती है, जिससे यह बाज़ार से चिकन खरीदने के मुकाबले ज़्यादा सुविधाजनक और सेहतमंद विकल्प बन गया।
    • वह सख्त स्वच्छता मानकों का पालन करती हैं, ताकि उनके पोल्ट्री फ़ार्म का चिकन का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहे।
    • ग्राहकों को मुर्गी पालन में एंटीबायोटिक्स के खतरे के बारे में जागरूक करने के लिए वह उनसे सीधा संवाद करती हैं।
    • समय के साथ, उनके पोल्ट्री फ़ार्म का नाम विश्वसनीय ब्रांड बन चुका है। उनके ग्राहक दूसरों को भी इसकी सलाह देते हैं, जिससे उनकी बिक्री और बढ़ रही है।
    • बढ़ती मांग को देखते हुए वह उत्पादन बढ़ाने के तरीके तलाश रही हैं, लेकिन नैतिक और प्राकृतिक पोल्ट्री फ़ार्मिंग के मूल्यों से कोई समझौता किए बिना।

रूना का सफ़र इस बात का सबूत है कि सही सोच और मेहनत से मुश्किलों को अवसरों में बदला जा सकता है।

फर्क साफ दिखता है ग्राहकों की प्रतिक्रिया में (The difference is clearly visible in the customer feedback) 

“बाज़ार में मिलने वाले चिकन का टेक्सचर अक्सर चिकना और गंधयुक्त होता है। लेकिन रूना के पोल्ट्री फ़ार्म का चिकन अलग है—ज़्यादा दुबला, ताज़ा और बिना किसी दुर्गंध के,” कहती हैं गुवाहाटी की निवासी चयनिका गोस्वामी। एक और ग्राहक, दिलीप राजबोंगशी, भी सहमति जताते हुए कहते हैं, “बाज़ार के चिकन में विटामिन्स और एंटीबायोटिक्स की मात्रा ज़्यादा होती है। यहाँ मुझे पूरी तरह से नैचुरल और एंटीबायोटिक-फ्री चिकन मिलता है।”

पोल्ट्री से आगे बढ़ते हुए (Moving on from poultry) 

अपने सफल अनुभव से प्रेरित होकर, रूना ने अपने पोल्ट्री फ़ार्म का विस्तार कर दिया है। अब वे बत्तख और बकरियों का भी पालन कर रही हैं, उसी एंटीबायोटिक-फ्री सिद्धांत के साथ ताकि उपभोक्ताओं को सेहतमंद मांस मिल सके।

  • उनकी बत्तख और बकरियों को भी प्राकृतिक आहार दिया जाता है, बिना किसी कृत्रिम ग्रोथ हार्मोन या दवाओं के।
    • वे पारंपरिक और जैविक आहार विधियों के साथ प्रयोग कर रही हैं, स्थानीय अनाज और जड़ी-बूटियों को शामिल करके पशुओं की सेहत को प्राकृतिक रूप से सुधारने का प्रयास कर रही हैं।
    • हार्मोन-फ्री और एंटीबायोटिक-फ्री मांस को लेकर बढ़ती जागरूकता के कारण, रूना को अपने इस नैतिक पशुपालन मॉडल के लिए एक बड़ा बाज़ार दिख रहा है।
    • उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ भी सहयोग शुरू किया है, उन्हें टिकाऊ पोल्ट्री फ़ार्मिंग (Poultry Farming) और पशुपालन के तरीकों के बारे में मार्गदर्शन दे रही हैं और एंटीबायोटिक-फ्री फ़ार्मिंग अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
    • वे फ्री-रेंज फ़ार्मिंग तकनीक लागू करने की योजना बना रही हैं, जिससे जानवरों को अधिक प्राकृतिक वातावरण में चरने का मौका मिलेगा, जिससे उनका स्वास्थ्य और उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर होगी।

खेती-किसानी में आने से पहले, रूना एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थीं। लेकिन उद्यमिता और खाद्य सुरक्षा के प्रति उनके जुनून ने उन्हें नौकरी छोड़ने और पूरी तरह से नैतिक और टिकाऊ पोल्ट्री फ़ार्मिंग को समर्पित होने के लिए प्रेरित किया। आज, वे एक मिसाल बन चुकी हैं, यह साबित करते हुए कि खेती सिर्फ मुनाफे का नहीं, बल्कि सेहत और सतत विकास का जरिया भी हो सकती है।

किसानों को सशक्त बनाने की राह (Way to empower farmers)

रूना सिर्फ़ एक किसान नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक भी हैं। उन्होंने अपने खेत पर छोटे किसानों के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया है, जहाँ किसान ये सीखते हैं:
• मुर्गी पालन (पोल्ट्री फ़ार्मिंग)
• सुअर पालन
• टिकाऊ खेती के तरीके

उनके प्रयास से किसान बेहतर और ज़्यादा लाभदायक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। कई चुनौतियों को पार करके, रूना रफीक़ ने बिना एंटीबायोटिक के पोल्ट्री फ़ार्मिंग की शुरुआत की, जो उनके जज़्बे और नवाचार का प्रमाण है। उनका फ़ार्म असम में टिकाऊ और स्वस्थ पोल्ट्री फ़ार्मिंग का प्रतीक बन चुका है।

उनकी कहानी महिला उद्यमियों और किसानों के लिए प्रेरणा है। यह दिखाती है कि अगर हौसला और सही सोच हो, तो मुश्किलें भी नए अवसर में बदल सकती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion) 

रूना ने गुणवत्ता को बड़े पैमाने पर उत्पादन से ज़्यादा अहमियत दी है। उन्होंने साबित किया कि नैतिक और प्राकृतिक पोल्ट्री फ़ार्मिंग न सिर्फ़ फ़ायदेमंद हो सकती है, बल्कि लोगों की सेहत पर भी सकारात्मक असर डाल सकती है। उनके इस सफ़र से यह भी ज़ाहिर होता है कि लोग अब सेहतमंद खानपान को लेकर ज़्यादा जागरूक हो रहे हैं, जिससे रसायन-मुक्त पोल्ट्री फ़ार्मिंग के लिए एक नया बाज़ार उभर रहा है।

रूना अपनी पहल को और आगे बढ़ाने और जैविक खेती को अपनाने की योजना बना रही हैं। उनका यह कदम सिर्फ़ एक व्यापार नहीं, बल्कि भारत के ग्रामीण इलाकों में सेहत, नैतिक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण की एक नई लहर लेकर आ रहा है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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