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प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है मशरूम (Mushroom Production) और दिनों-दिन इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसके स्वास्थ्य लाभ के कारण अब हर कोई इसका सेवन करना चाहता है, ऐसे में मशरूम उत्पादन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है, क्योंकि बाज़ार में मशरूम की अच्छी कीमत मिल जाती है। बस ज़रूरत है तो इसके उत्पादन की सही जानकारी प्राप्त करने की।
नैनीताल के ललितपुर जिले के किसान खेम सिंह ने नए उद्यम के रूप में मशरूम उत्पादन (Mushroom Production) शुरू किया और अब वह एक सफल मशरूम उत्पादक बन गए हैं। मशरूम उत्पादन से न सिर्फ उनकी आमदनी में इज़ाफा हुआ, बल्कि परिवार की पोषण संबंधी ज़रूरत भी पूरी हुई।
खेती और पशुपालन के साथ मशरूम उत्पादन
नैनीताल के ललितपुर जिले के किसान खेम सिंह के पास 2 हेक्टेयर सिंचित भूमि है जिस पर वह चावल और गेहूं की खेती करते हैं। पशुओं पर आधारित कृषि प्रणाली से होने वाली आमदनी से वह संतुष्ट नहीं थे और कृषि आधारित कोई नया उद्यम शुरू करना चाहते थे। इस काम में उनकी मदद की पड़ोसी गांव के एक युवा मोनू सिंह ने जिसने मशरूम उत्पादन पर प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
दरअसल, मार्च 2018 में ICAR-IIFSR ने पूरे साल मशरूम उत्पादन तकनीक पर 7 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। जहां मोनू सिंह ने अच्छी तरह प्रशिक्षण प्राप्त किया। मोनू सिंह की मदद से खेम सिंह ने बटन मशरूम का उत्पादन शुरु किया।
घर की छत पर तैयार मुर्गियों की खाद से बटन मशरूम का उत्पादन 20’x10’ के छोटे से कमरे में शुरु किया, इसके लिए उन्होंने 3 टायर रैक्स का भी इस्तेमाल किया।
ICAR से मिली मदद
खेम सिंह को मशरूम उत्पादन में ICAR IIFSR से भी मदद मिली। किसानों को ये संस्था मोबाइल आधारित एप्लीकेशन की मदद से ज़रूरी सलाह देने के साथ ही फसल के विकास की भी निगरानी करती है।
प्राप्त हुई अच्छी उपज
घर की छत पर तैयार 12 क्विंटल मुर्गियों की खाद के इस्तेमाल से उन्हें 310 किलो अच्छी गुणवत्ता वाले ताजे बटन मशरूम की उपज प्राप्त हुई। जिनकी जैविक दक्षता भी बेहतरीन थी। 60 दिनों के अंदर ही उन्हें मशरूम की उपज प्राप्त हुई।
50 किलो मशरूम घर में उपयोग और रिश्तेदारों को बांटने के लिए रखने के बाद बाकी मशरूम को उन्होंने 125 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बाज़ार में बेचा जिससे उन्हें 28,050 रुपए का शुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ।
इसके अलावा रिसाइकल योग्य 9.50 क्विंटल खाद भी प्राप्त हुई। मशरुम उत्पादन से पहले उनकी सालाना आमदनी 2.11 लाख थी जो अब 2.39 लाख हो गई है। साथ ही उनके परिवार की प्रोटीन, कैल्शियम की ज़रूरत भी अब अच्छी तरह पूरी हो जाती है, क्योंकि मशरूम प्रोटीन और कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
आदिवासी किसानों को मिली नई राह
मशरूम में भरपूर प्रोटीन और कैल्शियम होता है, ऐसे में इसके उत्पादन से आदिवासी किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनकी पोषण संबंधी ज़रूरत भी पूरी हो जाएगी। मशरूम उत्पादन आदिवासी किसानों के लिए रोज़गार और आजीविका के नए साधन के रूप में उभर रहा है।
खेम सिंह की सफलता ने अन्य किसानों को प्रेरित किया है। साथ ही किसानों की मदद के लिए ICAR-IIFSR द्वारा प्रशिक्षित विशेषज्ञ भी आगे आए हैं और किसानों को नई तकनीक की जानकारी देने के साथ ही उन्हें जागरुक और प्रेरित भी कर रहे हैं।
मशरूम उत्पादन ने खेम सिंह की ज़िंदगी बदल दी और अब वह एक सफल और खुशहाल किसान बन चुके हैं, जो अपने इलाके के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
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