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पंजाब के संगरूर जिले के भवानगढ़ गाँव में रहने वाले गुरिंदर पाल सिंह ज़ैलदार ने संरक्षित खेती और जैविक तकनीकों के प्रयोग से कृषि क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। गुरिंदर ने अपनी करीब बीस एकड़ भूमि पर कृषि के नवीनतम तरीकों को अपनाकर उत्पादन में वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण में अद्वितीय योगदान दिया है। उन्होंने न केवल कृषि में नई तकनीकों का उपयोग किया है बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने हैं।
संरक्षित खेती क्या होती है?
संरक्षित खेती (Protected Cultivation) एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें फसलों को बाहरी वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाकर एक नियंत्रित वातावरण में उगाया जाता है। इस विधि में पौधों के विकास के लिए आवश्यक तापमान, नमी, प्रकाश और हवा की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है, ताकि अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता प्राप्त हो सके। संरक्षित खेती मुख्यतः उच्च मूल्य वाली सब्जियों, फलों, फूलों और औषधीय पौधों की खेती के लिए अपनाई जाती है।
संरक्षित खेती के कुछ मुख्य घटक इस प्रकार हैं:
- ग्रीनहाउस/पॉलीहाउस:
यह एक ढांचा होता है जो पॉलीथीन, प्लास्टिक या ग्लास से ढका होता है। इसमें तापमान और नमी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें पौधों को अत्यधिक गर्मी, ठंड, बारिश और कीटों से बचाया जा सकता है। - शेड नेट हाउस:
इसमें सूर्य के प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है और अधिक गर्मी से पौधों की सुरक्षा होती है। इस ढांचे का उपयोग गर्मियों में संवेदनशील फसलों की खेती के लिए किया जाता है। - ड्रिप इरीगेशन और फर्टिगेशन:
संरक्षित खेती में जल और पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ड्रिप इरीगेशन प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इसमें पौधों की जड़ों तक जल और खाद धीरे-धीरे पहुंचते हैं। इससे जल की बचत होती है और पौधों को सीधे पोषक तत्व मिलते हैं। - मल्चिंग:
पौधों की जड़ों में नमी बनाए रखने और खरपतवार को रोकने के लिए पौधों की मिट्टी पर मल्च (प्लास्टिक या जैविक सामग्री) बिछाई जाती है।
संरक्षित खेती के लाभ
- उच्च उत्पादकता:
पौधों को नियंत्रित वातावरण में उगाने से उनकी वृद्धि दर अधिक होती है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है। - कम कीटनाशकों का उपयोग:
कीटों से बचाव के कारण कीटनाशकों का उपयोग कम होता है। - पानी की बचत:
ड्रिप इरीगेशन और फर्टिगेशन से पानी का उपयोग बहुत कम होता है, जिससे जल संरक्षण होता है। - गुणवत्तायुक्त उत्पादन:
नियंत्रित वातावरण में खेती करने से उत्पाद की गुणवत्ता और रंग-रूप बेहतर होता है। - साल भर खेती:
इस प्रणाली में फसलों को मौसम की सीमाओं के बिना साल भर उगाया जा सकता है।
भारत में संरक्षित खेती धीरे-धीरे बढ़ रही है और सरकार इसके प्रोत्साहन के लिए सब्सिडी तथा प्रशिक्षण जैसी योजनाएँ भी चला रही है। कोशिश यही है कि किसान नई तकनीकों को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकें और सतत कृषि को बढ़ावा दे सकें।
संरक्षित खेती में गुरिंदर का योगदान
गुरिंदर का मुख्य उद्देश्य खेती में नवाचार और जैविक विधियों का प्रयोग करना है। उन्होंने अपने खेतों में फसल अवशेषों का उपयोग करते हुए मिट्टी में सुधार किया है। जब उनसे इस विषय पर बात की गई, तो उन्होंने बताया:
“पंजाब में पराली जलाने की समस्या का समाधान मैं अपने स्तर पर करने की कोशिश कर रहा हूँ। हमने फसल अवशेषों को जलाने के बजाय मिट्टी में मिलाने की तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। इससे ज़मीन की उर्वरता भी बनी रहती है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता।”
उन्होंने फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने के लिए आईएआरआई पूसा (IARI PUSA) द्वारा निर्मित वेस्ट डिकंपोजर का इस्तेमाल किया। इसके साथ ही, गुरिंदर वाम और एज़ोटोबैक्टर जैसे जैविक तत्वों का भी उपयोग करते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
आधुनिक बीज और तकनीकों का उपयोग
गुरिंदर सिंह ने अपने खेतों में आधुनिक बीजों और नवीनतम तकनीकों का उपयोग किया है। उनके अनुसार:
“नए बीजों और तकनीकों के इस्तेमाल से न केवल उत्पादन बढ़ा है, बल्कि फसल की गुणवत्ता में भी सुधार आया है।”
उनके खेतों में उगाई जाने वाली फसलें अब अधिक पोषक और गुणवत्तापूर्ण हैं। इस तकनीकी सुधार का असर यह है कि उनके खेतों को देखने के लिए आईएआरआई पूसा दिल्ली और आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल (IIWBR Karnal) के निदेशकों ने भी दौरा किया।
जैविक खाद और गैस प्लांट का उपयोग
गुरिंदर अपने खेतों में जैविक खाद का उत्पादन भी करते हैं। उन्होंने एक गैस प्लांट स्थापित किया है, जहाँ से वह फसल अवशेषों का उपयोग कर जैविक खाद और ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल खेतों के लिए लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है।
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
गुरिंदर के कार्यों को विभिन्न मंचों पर सराहा गया है। उन्हें 2024 में पूसा इनोवेटिव फार्मर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल से चार बार सम्मानित किया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा भी पराली जलाने से बचने के उनके प्रयासों के लिए उन्हें सराहा गया है।
दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा
गुरिंदर का मानना है कि पराली जलाने के बजाय फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से प्रदूषण कम होता है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। उन्होंने कहा:
“हमारा उद्देश्य केवल अपने लाभ के लिए खेती करना नहीं है, बल्कि पूरे समाज को एक बेहतर भविष्य देना है।”
संरक्षित खेती का भविष्य
गुरिंदर का सपना है कि आने वाले वर्षों में भारत के किसान आधुनिक तकनीकों और जैविक खेती की दिशा में अधिक से अधिक कदम बढ़ाएँ। उनका यह प्रयास भारतीय कृषि में नवाचार और स्थायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो अन्य किसानों के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।