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छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव ज़िले के परगांवखुर्द गांव में रहने वाले अनेश्वर कुमार वर्मा ने कृषि क्षेत्र में नवाचार, नई सोच और तकनीक का उदाहरण पेश किया है। 1987 में जन्मे अनेश्वर ने अपनी खेती को नए यंत्रों, जैविक विधियों, और जल संरक्षण के उपायों से सुसज्जित किया है, जिससे उन्हें न केवल अच्छी पैदावार मिली, बल्कि कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
कृषि में नवीन तकनीकों का उपयोग
अनेश्वर वर्मा का कृषि मॉडल मुख्य रूप से चार प्रमुख तकनीकों पर आधारित है:
1. कृषि यंत्रों का निर्माण: उन्होंने छोटे कृषि यंत्र और आवाज़ यंत्रों का निर्माण किया, जो खेतों में खेती की लागत कम करने और मेहनत को कम करने में सहायक हैं। उनकी इस पहल से अन्य किसान भी प्रेरित होकर इन यंत्रों का उपयोग करने लगे हैं।
2. जीवामृत और डी-कंपोजर छन्ना मशीन: अनेश्वर द्वारा विकसित जैविक खाद और डी-कंपोजर छन्ना मशीन ने किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने का अवसर दिया। ये उपकरण जैविक खेती में सहायक हैं और किसानों को रासायनिक खादों पर निर्भरता से मुक्ति दिलाने का प्रयास करते हैं।
3. जैविक खाद (PROM): अनेश्वर द्वारा बनाई गई फासफोरस रिच ऑर्गेनिक मैन्योर (PROM) एक विशेष प्रकार की जैविक खाद है, जो मृदा की उर्वरता को बढ़ाती है और भूमि को रासायनिक उर्वरकों के हानिकारक प्रभावों से बचाती है।
4. वर्षा जल संरक्षण: उन्होंने अपने खेत में वर्षा जल संरक्षण के उपाय लागू किए हैं। मनरेगा योजना के तहत छोटे तालाबों का निर्माण करके उन्होंने जल संग्रहण का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो सूखे समय में भी सिंचाई के लिए पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
जैविक खेती में सफलता और किसानों के लिए प्रेरणा
अनेश्वर वर्मा ने जैविक खेती को अपनाकर न केवल अपनी फसल उत्पादन लागत को कम किया है, बल्कि अपनी जमीन की उर्वरता को भी बनाए रखा है। उनका खेती मॉडल जैविक खादों और प्राकृतिक उर्वरकों पर आधारित है, जिनमें वर्मी-कंपोस्ट, जीवामृत, जैविक कीटनाशक और रॉक फॉस्फेट से निर्मित जैविक डीएपी शामिल हैं। इन तत्वों का उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है और रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों से जमीन को बचाया जा सकता है।
जैविक खेती की विधियां लाभ देती हैं
अनेश्वर का मानना है कि जैविक खेती की विधियाँ भूमि को दीर्घकालिक लाभ देती हैं और इसे प्रदूषण रहित बनाए रखने में भी सहायक हैं। वर्मी-कंपोस्ट का उपयोग फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है और इसे बनाने में खेती से निकले अपशिष्टों का भी प्रभावी उपयोग होता है। जीवामृत का उपयोग, जो गोबर, गोमूत्र, और अन्य जैविक तत्वों से निर्मित होता है, पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और फसलों में मजबूती लाता है। जैविक कीटनाशक हानिकारक कीटों को नियंत्रित करते हैं और रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता को खत्म करते हैं, जिससे पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुँचता है।
अनेश्वर का जैविक खेती मॉडल दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत
अनेश्वर का जैविक खेती मॉडल आज कई किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। उन्होंने अपने अनुभवों और तकनीकों को साझा कर कई किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित किया है। उनके इस प्रयास से गाँव और आसपास के कई किसान अब जैविक खाद और उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं और रासायनिक उर्वरकों पर अपनी निर्भरता को कम कर रहे हैं। अनेश्वर द्वारा अपनाई गई जैविक खेती विधियों ने उन किसानों की फसल लागत में कमी लाने के साथ-साथ उत्पादन की गुणवत्ता में भी सुधार किया है।
जैविक खेती में सफलता और तकनीकी नवाचार
अनेश्वर के इन प्रयासों का व्यापक असर अब उनके गाँव के बाहर भी दिखने लगा है। जैविक खेती में उनकी सफलता और उनके तकनीकी नवाचारों ने उन्हें न केवल क्षेत्र में, बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दिलाई है। आज वे किसानों के बीच एक प्रेरणा के रूप में जाने जाते हैं, जो जैविक खेती के प्रति एक नई जागरूकता पैदा कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा अन्य किसानों को एक स्थायी, लाभकारी, और पर्यावरण-संवेदनशील खेती की ओर प्रेरित करती है, जो खेती की पारंपरिक विधियों से हटकर एक नई दिशा में बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है।
सम्मान और पुरस्कार
अनेश्वर की इन उपलब्धियों के चलते उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें:
• डॉ. खूबचंद बघेल कृषक रत्न सम्मान
• अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल ग्रीन अवार्ड
• भा.कृ.अ.सं. नवोन्मेषी किसान पुरस्कार-2024
ये पुरस्कार न केवल उनके कार्यों की सराहना करते हैं, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं। इसके अलावा, उन्हें “प्राइड ऑफ यंग हिंदुस्तान” और “अंतरराष्ट्रीय मैत्री सम्मान” जैसे प्रतिष्ठित सम्मान भी प्राप्त हुए हैं, जो उनके कृषि नवाचार को वैश्विक पहचान दिलाते हैं।
सरकारी योजनाओं का योगदान
अनेश्वर ने कई सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अपने कृषि कार्यों में सुधार किया है। इनमें शामिल हैं:
• एनएचएम योजनान्तर्गत शेडनेट और पैक हाउस निर्माण
• पीएम किसान सम्मान निधि योजना
• पीएम कृषि सिंचाई योजना (ड्रिप इरिगेशन)
• मृदा स्वास्थ्य योजना
इन योजनाओं की मदद से उन्होंने अपने कृषि कार्यों में तकनीकी सुधार किया है, जिससे उन्हें कम लागत में बेहतर फसल उत्पादन संभव हुआ है।
भविष्य की योजनाएं
अनेश्वर का सपना है कि उनके द्वारा विकसित जैविक और नवाचार तकनीकों को देश के अन्य हिस्सों में भी फैलाया जाए। उनका मानना है कि किसानों को सही तकनीक और संसाधनों का ज्ञान देकर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। जैविक खेती और जल संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उनकी यह पहल आने वाले समय में भारत की कृषि प्रणाली को और सुदृढ़ बनाएगी और किसानों के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक साबित होगी।