भवाना ब्लॉक के चौरन पंचायत में रहने वाली रजीना देवी और उनके ससुर सुरेंद्र सिंह ने अपने खेतों में एक बड़ा और साहसिक बदलाव किया। उन्होंने साल 2018 में रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया। यह निर्णय लेना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और एक नई शुरुआत की। इस बदलाव ने न सिर्फ उनकी खेती के तरीके को बदला, बल्कि उनके जीवन में भी एक सकारात्मक मोड़ लाया। आज वे न सिर्फ ज़मीन की सेहत का ध्यान रख रहे हैं, बल्कि परिवार की सेहत और आमदनी में भी सुधार देख रहे हैं
बदलाव की राह (The path to change)
शुरुआत में रजीना देवी ने 12 कनाल (यानि लगभग 6 बीघा) ज़मीन पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग किया। यह उनके लिए एक नया अनुभव था, लेकिन उन्होंने पूरे विश्वास के साथ शुरुआत की। जल्द ही उन्होंने देखा कि इस पद्धति से मिट्टी की उर्वरकता बढ़ने लगी और फ़सलों की पैदावार भी पहले से बेहतर हुई। सबसे अच्छी बात यह रही कि रासायनिक खेती की तुलना में उनकी लागत काफी कम आई और मुनाफ़ा ज़्यादा हुआ।
रजीना देवी बताती हैं कि जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई है, उनकी फ़सलों की गुणवत्ता और स्वाद दोनों में बड़ा सुधार आया है। क्योंकि इन फ़सलों में किसी भी प्रकार के कीटनाशकों या रसायनों का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए लोग भी इनकी सब्ज़ियों और अनाज को ज़्यादा पसंद करने लगे हैं। अब गांव और आसपास के बाज़ारों में उनकी फ़सलों की मांग बढ़ गई है, जो उनके आत्मविश्वास को और मज़बूत करती है।
नए अनुभव और पहचान (New experiences and identities)
जैसे-जैसे समय बीतता गया, रजीना देवी की मेहनत और सफलता की चर्चा पूरे गांव में फैलने लगी। धीरे-धीरे आस-पास के गांवों से भी किसान उनके खेतों को देखने और प्राकृतिक खेती के बारे में जानने आने लगे। उनकी खेती की पद्धति और अच्छे परिणाम देखकर कई किसानों ने भी रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।
आज रजीना देवी की पहचान गांव में एक प्रगतिशील और जागरूक महिला किसान के रूप में होती है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर संकल्प मज़बूत हो तो बदलाव लाना संभव है। महिला दिवस के अवसर पर राज्य स्तर पर आयोजित प्राकृतिक खेती कार्यक्रम में भी उन्होंने भाग लिया और वहां अपने अनुभवों को सभी के साथ साझा किया। उन्होंने कहा –
“प्राकृतिक खेती का असर पहले ही साल से नजर आने लगता है। अगर हम इसे पूरी तरह अपनाएं, तो यह खेती हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।”
उनकी यह सोच और अनुभव आज न जाने कितने किसानों को एक नई दिशा दिखा रहे हैं।
लागत और लाभ (Costs and benefits)
रजीना देवी और उनके ससुर सुरेंद्र सिंह के खेती से जुड़े आंकड़े यह साफ़ दिखाते हैं कि प्राकृतिक खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि आर्थिक रूप से भी बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। उनके पास कुल 15 कनाल (लगभग 7.5 बीघा) ज़मीन है, और खास बात यह है कि उन्होंने पूरी ज़मीन पर प्राकृतिक खेती ही अपनाई है। यानी अब वे रासायनिक खेती बिल्कुल नहीं करते। वे अपनी ज़मीन पर कई तरह की फ़सलें उगाते हैं, जिनमें शामिल हैं – फ्रासबीन, प्याज़, लहसुन, मटर, गेहूं, धान, मक्का, गोभी, मूली, शलगम, भिंडी, धनिया, पालक, बैंगन और खीरा।
इतनी विविधता होने से उन्हें हर मौसम में कुछ न कुछ फ़सल मिलती रहती है, जिससे उनकी आमदनी लगातार बनी रहती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए उनकी लागत बहुत कम आती है। वहीं, फ़सलों की गुणवत्ता और स्वाद अच्छा होने की वजह से बाज़ार में अच्छे दाम भी मिलते हैं। इस तरह, रजीना देवी की खेती आज आर्थिक रूप से एक सफल मॉडल बन चुकी है, जिसे बाकी किसान भी अपनाने लगे हैं।
आर्थिक तुलना (Economic Comparison)
- रासायनिक खेती – ख़र्च ₹8,000
- प्राकृतिक खेती – ख़र्च ₹2,000
यह आँकड़े बताते हैं कि प्राकृतिक खेती में न केवल लागत कम होती है बल्कि मुनाफ़ा भी अधिक मिलता है।
किसानों के लिए संदेश (Message for farmers)
रजीना देवी का मानना है कि प्राकृतिक खेती अपनाकर किसान रासायनिक दवाओं और खादों से छुटकारा पा सकते हैं। इससे मिट्टी की सेहत बनी रहती है, फ़सलें अधिक पौष्टिक होती हैं और ग्राहकों की मांग भी बढ़ती है। आज रजीना देवी 300 से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ चुकी हैं और उन्हें मार्गदर्शन भी देती हैं। उनका सपना है कि आने वाले समय में पूरा ब्लॉक प्राकृतिक खेती को अपनाए।
निष्कर्ष (Conclusion)
रजीना देवी की कहानी यह साबित करती है कि यदि हिम्मत और धैर्य हो तो बदलाव संभव है। प्राकृतिक खेती न केवल सेहत और पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि यह किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मज़बूत करती है।
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