Table of Contents
आज हम बात करेंगे एक ऐसे किसान की, जिन्होंने अपनी पारिवारिक खेती को स्मार्ट फार्मिंग (smart farming) से जोड़ा और पिछले तीन दशकों में खेती को एक नई दिशा दी। यह कहानी है धीरेंद्र कुमार भानुभाई देसाई की, जिन्होंने 1991 में खेती की शुरुआत की और अपने दृढ़ संकल्प और नए प्रयोगों से खेती में क्रांति ला दी। उनके नवाचारों ने न केवल उनकी पैदावार को बढ़ाया बल्कि उन्हें एक सफल उद्यमी भी बनाया।
नई सोंच के साथ कदम बढ़ाया
1991 में, जब धीरेंद्र ने खेती शुरू की, तब पारंपरिक तरीकों से ही काम किया जाता था। हालांकि, पारंपरिक खेती में कम उत्पादन और बढ़ती लागत से उन्हें अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कुछ नया करने की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने देखा कि पारंपरिक खेती से कम मुनाफा होता था, क्योंकि उपज की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी और बाजार में भी उसका मूल्य कम ही मिल पाता था।
2002-03 में, जब धीरेंद्र जलगांव गए, तब उन्होंने पहली बार smart farming टिश्यू कल्चर तकनीक के बारे में सुना और इसे करीब से देखा। टिश्यू कल्चर ने उन्हें यह समझाया कि एक ही फसल को नई तकनीक से कैसे उगाया जा सकता है और कैसे पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। जलगांव से लौटने के बाद, उन्होंने अपने गाँव में इस तकनीक का प्रयोग किया और पाया कि उनकी उपज की गुणवत्ता और मात्रा, दोनों में ही सुधार हुआ।
टिश्यू कल्चर और ड्रिप सिंचाई से शुरुआत
टिश्यू कल्चर तकनीक को अपनाने के बाद, धीरेंद्र के खेत की पैदावार बढ़ गई। पहले वे पारंपरिक तरीकों से खेती कर रहे थे, लेकिन इस नई तकनीक से फसल की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ और हार्वेस्टिंग का समय भी कम हो गया। उन्होंने ड्रिप सिंचाई की प्रणाली भी अपने खेत में लागू की ताकि पानी का सही उपयोग हो सके और पौधों के लिए सबसे अच्छे विकास की स्थिति बनी रहे। गुजरात सरकार ने ड्रिप सिंचाई, टिश्यू कल्चर तकनीक और इंटीग्रेटेड बायो-न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट के लिए सब्सिडी प्रदान की, ताकि कम संसाधनों में भी निर्यात-गुणवत्ता की पैदावार प्राप्त हो सके।
इन तकनीकों के साथ, धीरेंद्र ने एक बड़ी सफलता प्राप्त की—सिर्फ 27 महीनों में एक ही पौधे से तीन बार केले की फसल प्राप्त की, जो कृषि जगत में एक बड़ी उपलब्धि मानी गई। इसके बाद, 2014 से उन्होंने अपने उत्पादों का निर्यात भी शुरू कर दिया। आज वे अपने उत्पाद मिडिल ईस्ट के देशों में निर्यात कर रहे हैं, जिससे उनकी खेती एक सफल आधुनिक कृषि मॉडल बन चुकी है।
सहकारी संस्था और स्थानीय उद्योग की स्थापना
धीरेंद्र ने अपनी सफलता को केवल अपने खेत तक सीमित नहीं रखा। 1991 से 2018 तक, उन्होंने विशेष रूप से केले के किसानों के लिए एक किसान उत्पादक संगठन (FPO) और एक सहकारी समिति का गठन किया, जिससे सामूहिक मार्केटिंग को बढ़ावा मिला और किसानों की आमदनी में वृद्धि हुई। स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अपने गाँव में एक केले के चिप्स बनाने की इकाई भी शुरू की। इस इकाई ने न केवल रोजगार के नए अवसर पैदा किए, बल्कि केले के उत्पादकों के लिए एक नया मूल्य श्रृंखला भी बनाई। उनके प्रयासों से किसानों को 70% पानी, 65% ऊर्जा, और 60% श्रम की लागत में बचत हुई, जिससे छोटे किसानों को भी लाभ हुआ।
मार्केटिंग में नई ऊंचाइयां
मार्केटिंग और वितरण के क्षेत्र में भी धीरेंद्र ने कुछ अनोखे कदम उठाए। उस समय, संचार माध्यम इतने विकसित नहीं थे। मोबाइल फोन और इंटरनेट की अनुपस्थिति में, उन्होंने नियमित फोन कॉल के जरिए ग्राहकों से संपर्क बनाए रखा और धीरे-धीरे अपने उत्पादों की पहचान बनाई। उन्होंने बताया, “तब हम एक-एक रुपए का सिक्का डालकर फोन कॉल करते थे और ग्राहकों से बात करते थे। संचार के साधन सीमित होने के बावजूद, हमने अपने उत्पादों की मांग बनाए रखी और आज भी अपने FPO के माध्यम से यह काम जारी रखा है।”
कृषि में ड्रोन तकनीक की अगुवाई
हाल ही में, धीरेंद्र ने अपनी केले की फसल में पहली बार ड्रोन तकनीक का उपयोग किया, जो गुजरात में अपनी तरह का पहला प्रयोग था। इस पहल का फायदा यह हुआ कि फसल पर कीटनाशकों और खाद का छिड़काव अधिक सटीकता से किया जा सका और समय की भी बचत हुई। उनके इस प्रयोग को देखकर कई किसानों ने भी ड्रोन का उपयोग अपनी खेती में शुरू कर दिया। उनकी इस पहल ने उन्हें एक तकनीकी अग्रणी किसान के रूप में पहचान दिलाई।
एक मार्गदर्शक
ड्रोन तकनीक के कारण, कई किसान गुजरात में उनसे संपर्क कर उनके तरीकों को अपनाने लगे। यहां तक कि किसानों के चैनल और कृषि विशेषज्ञ भी उनके काम को कवर करने के लिए उनके खेत में आए। एक मार्गदर्शक के रूप में, उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों को ऑनलाइन और ऑन-साइट प्रशिक्षण देकर खेती के नए आयामों से अवगत कराया। उनके योगदान ने किसानों की आय को दोगुना कर दिया और कृषि में एक नई राह दिखा दी।
पुरस्कार और सम्मान
धीरेंद्र के नवाचारों और कृषि में दिए गए योगदान के लिए उन्हें 2 अंतरराष्ट्रीय और 30 से अधिक राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें आईएआरआई इनोवेटिव फार्मर फेलो अवार्ड 2021 और जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार 2020 शामिल हैं, जो कि कृषि मंत्रालय और किसान कल्याण, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रदान किए गए हैं। उनकी उपलब्धियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, और उनकी कहानी राष्ट्रीय दूरदर्शन, डीडी किसान, और गुजरात के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित की गई है। हाल ही में, बीबीसी न्यूज़ गुजराती ने उनके खेत पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई, जिसमें उनके सर्वोत्तम कृषि प्रथाओं को दिखाया गया।
इसके अतिरिक्त, धीरेंद्र को राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन 2022 में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसका विषय “किसानों की आय को दोगुना करना” था, और इसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की उपस्थिति भी रही।
किसानों के लिए संदेश
धीरेंद्र का मानना है कि अगर आज के युवा किसान नई तकनीकों को समझकर खेती में अपनाएं, तो वे पारंपरिक खेती की सीमाओं से बाहर निकल सकते हैं और अपने खेत को एक सफल उद्यम में बदल सकते हैं। उन्होंने अपने अनुभव से यह सिद्ध कर दिया है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, सही दिशा में किया गया प्रयास हमेशा सफलता की ओर ले जाता है।
मेहनत, नई सोंच और नई तकनीक
उनका संदेश है कि मेहनत, नई सोच, और नई तकनीकों को अपनाने से खेती को एक लाभकारी व्यवसाय में बदला जा सकता है। धीरेंद्र की कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे परिश्रम और तकनीक मिलकर कृषि में सफलता के नए आयाम गढ़ सकते हैं।
तो आइए, धीरेंद्र की प्रेरक कहानी से सीख लेते हुए, हम भी खेती के क्षेत्र में नई तकनीकों को अपनाकर एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं।