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विविधताओं वाले इस देश में बहुत से फल और सब्ज़ियां ऐसे हैं जिनके बारे में हर कोई नहीं जानता, मगर ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और अगर इनकी खेती को बढ़ावा दिया जाए, तो ये स्थानीय किसानों की आमदनी का अच्छा ज़रिया बन सकते हैं। ऐसा ही एक अनोखा फल है सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn), जिसका नाम भी शायद बहुत से लोगों ने नहीं सुना होगा, मगर नारंगी रंग की बेरी की तरह दिखने वाले ये फल पौष्टिकता का खज़ाना होता है।
Riyul sea buckthorn cooperative society लद्दाख और हिमाचल के कुछ इलाकों में उगाए जाने वाले इस सुपरफ्रूट की खेती और प्रोसेसिंग के ज़रिए रोज़गार के अवसर पैदा कर रही है। इस संस्था के प्रेसिडेंट स्टैनज़िन तौलदान ने इस खास फल और इस प्रोसेसिंग के बारे में विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
क्या है सी-बकथॉर्न?
कम ही लोगों ने इस फल का नाम सुना होगा। दरअसल, सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) बेरी के आकार का एक फल है जो खासतौर पर हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसमें विटामिन सी, एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। अकेले लद्दाख में ही इस फल का 90 प्रतिशत उत्पादन होता है। लद्दाख के इस सुपरफूड को जीआई टैग भी मिला हुआ है। साथ ही इस फल की खेती और प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के कई प्रयास हो रहे हैं।
लद्दाख के नुब्रा वैली की एक संस्था Riyul sea buckthorn cooperative society भी ऐसा ही प्रयास कर रही है। ये कोऑपकेटिव सोसाइटी एक समुदाय आधारित पहल है, जिसे 100 स्थानीय किसानों ने मिलकर शुरू किया है। ये पहल Swavalaban_LEAP परियोजना के तहत शुरू हुई, जिसका उद्देश्य हिमालयी सुपरफ्रूट सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) की खेती और प्रोसेसिंग के ज़रिए रोज़गार के अवसर पैदा करना है। इस कोऑपरेटिव के ज़रिए महिलाओं को भी स्वरोज़गार के अवसर मिल रहे हैं, जिससे उन्हें सशक्तिकरण का मौका मिल रहा है। ये कोऑपरेटिव सोसाइटी सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) से कई उत्पाद बना रही है।
सी-बकथॉर्न है दुर्लभ फल
Riyul sea buckthorn cooperative society के प्रेसिडेंट स्टैनज़िन तौलदान का कहना है कि सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) बेरी भारत में पाया जाने वाला एक बहुत ही दुर्लभ फल है, जो सिर्फ़ हिमाचल प्रदेश के स्फिति और लद्दाख में ही पाया जाता है
। अकेले लद्दाख में इसका 90 प्रतिशत उत्पादन होता है। ये फल बहुत ही पौष्टिक है, मगर हर किसी तक इसका फ़ायदा पहुंच नहीं रहा है। स्टैनज़िन तौलदान की कोऑपरेटिव सोसाइटी अब इसकी प्रोसेसिंग करके इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है, पहले वो इसे सिर्फ़ कच्चे माल के रूप में फल बेचते थे जिससे अधिक मुनाफ़ा नहीं होता था, मगर फिर उन्होंने इसकी प्रोसेसिंग सीखी।
बन रहे हैं कई उत्पाद
स्टैनज़िन तौलदान बताते हैं कि सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) की प्रोसेसिंग पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से की जाती है। इसकी प्रोसेसिंग का काम हाथ से ही होता है और इससे जूस, जैम और पल्प बनाया जाता है। जूस को तो किसी भी आम जूस की तरह ही आप पी सकते हैं, लेकिन पल्प को पानी में मिलाकर पीना होता है। वो बताते हैं कि ये सुपरफूड हमारे देश में मिलने वाले किसी भी दूसरे फल से कहीं अधिक पौष्टिक होता है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस फल का ज़िक्र कर चुके हैं। यही नहीं साइंटिफिक रिसर्च में भी इसके फायदे साबित हुए है।
सेहत का खज़ाना
स्टैनज़िन तौलदान इसके स्वास्थ्य लाभ का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) शुगर के मरीज़ों के लिए वरदान है, ये प्राकृतिक तरीके से शुगर लेवल को नियंत्रित करता है। इसके अलावा वज़न कम करने और पाचन तंत्र में सुधार करने में भी ये मददगार है। यदि सुबह इसका सेवन किया जाए तो ये शरीर को डिटॉक्सीफाई करता है। ये फल बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक, सबके लिए फायदेमंद है।
जिम जाने वाले युवाओं के लिए ये एनर्जी बूस्टर का काम करता है। इतना ही नहीं सबसे बड़ी बात की ये दुनिया का एकमात्र शाकाहारी पदार्थ है जिसमें ओमेगा 3, 6, 7, 9 एक साथ मौजूद है। किसी भी दूसरे वेज आइटम में ये चारों एक साथ नहीं होते हैं, सिर्फ़ मछली में ही ये पाया जाता है। ये आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
बहुत जल्दी खराब हो जाता है फल
स्टैनज़िन तौलदान कहते हैं कि इसका उत्पादन जंगल में होता है और इसका पेड़ कांटेदार होता है। इसका फल बहुत नाजुक होता है और हाथों से तोड़ने पर ये फट जाता है, इसलिए इसे एक बेडशीट में तोड़ा जाता है। क्योंकि सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) बहुत जल्दी खराब हो जाता है, इसलिए एक दिन में ही इसका पल्प निकालना पड़ता है, फिर इसे लंबे समय के लिए स्टोर किया जा सकता है।
मार्केटिंग कैसे करते हैं
अपने उत्पादों की मार्केटिंग के बारे में स्टैनज़िन तौलदान का कहना है कि उनकी कोऑपरेटिव सोसाइटी पिछले साल ही रजिस्टर्ड हुई है, तो फिलहाल तो बहुत ज़्यादा मार्केटिंग नहीं हो रही है। मगर उन्हें गुड़गांव में अच्छी शुरुआत मिली है और इसे वो आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। फिलहाल गुड़गांव के स्टोर्स में इसकी मार्केटिंग कर रहे हैं। साथ ही बताते हैं कि ईकॉमर्स कंपनियां जैसे एमेजन और फिल्पकार्ट पर भी उत्पाद की लिस्टिंग का काम चल रहा है और वो अपनी वेबसाइट भी बना रहे हैं, मगर इन सबमें थोड़ा समय लगेगा।
रोज़गार का ज़रिया
इस कोऑपरेटिव सोसाइटी की पहल से स्थानीय लोगों को रोज़गार का अवसर मिला है। स्टैनज़िन तौलदान कहते हैं कि कोऑपरेटिव सोसाइटी में 100 सदस्य हैं और 500 से ज़्यादा किसान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनसे जुड़े हैं। इसके अलावा जंगल से फल लाना और प्रोसेसिंग के काम के ज़रिए भी कई लोगों को रोज़गार मिला है।
भविष्य की योजना
आने वाले समय में स्टैनज़िन तौलदान सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) से कई और चीज़ें बनाने की योजना बना रहे हैं। वो बताते हैं कि सी बकथॉर्न से कुकीज़ बनाने का काम भी चल रहा है। इसके अलावा इससे सौंदर्य उत्पाद भी बनाने पर काम कर रहे हैं, उन लोगों ने लिप बाम बना लिया है और अब सनस्क्रीन बनाने की भी योजना है। स्टैनज़िन तौलदान कहते हैं कि बाज़ार में विटामिन सी के नाम पर बहुत से उत्पाद बिक रहे हैं उनमें सबसे ज़्यादा आंवले का इस्तेमाल होता है, मगर कम ही लोगों को पता है कि सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) में आंवले से 5 गुना अधिक विटामिन सी होता है, तो कॉस्मेटिक्स के लिए ये बहुत फायदेमंद है,
आमतौर पर इसके बीजों का इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों में किया जाता है। इसके अलावा चाय बनाने में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है। सी-बकथॉर्न (Sea Buckthorn) के साथ ही स्टैनज़िन तौलदान की योजना एप्रिकॉट और सेब के उत्पाद बनाने की भी है। उनका कहना है कि वो एप्रिकॉट के 2-3 उत्पाद बना रहे हैं और एप्पल चिप्स भी बना रहे हैं।
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