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अगर आप में कुछ करने की चाह हो, तो कुछ भी असंभव नहीं होता, रास्ता अपने आप बन ही जाता है। लखनऊ की रेणु अग्रवाल को बचपन से ही बागवानी का शौक था, मगर घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों के नीचे उनका ये शौक दब गया, मगर जब बच्चे सेटल हो गए तो उन्होंने अपने इस शौक और पैशन को पूरी शिद्दत से पूरा किया। इतना ही नहीं, अपने इस शौक को पूरा करने में अपने रिटायर पति की भी मदद ले रही हैं, जिससे उन्हें भी इस काम में बहुत मज़ा आ रहा है।
लखनऊ के इस दंपत्ति ने अपनी छत पर टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) शुरू की, जहां औषधीय, सजावटी, फल और सब्ज़ियों के सैकड़ों पौधे लहलहा रहे हैं। हज़ारों पौधों से सजी उनकी ये छत न सिर्फ़ घर की खूबसूरती बढ़ाती है, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरुकता और स्वस्थ जीवनशैली को भी बढ़ावा दे रही है।
बचपन का सपना अब पूरा हुआ (Childhood dream has now come true)
लखनऊ की रहने वाली रेणु अग्रवाल जो कि एक गृहणी हैं, उन्हें बचपन से ही बागवानी का शौक रहा है, मगर उन्हें पहल उस तरह की सुविधाएं मिलीं, जिससे वो अपने इस शौक को पूरा कर सकें। फिर शादी के बाद घर-परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारियों के बीच उनका शौक कहीं दब गया।
रेणु कहती हैं कि अब बच्चों की शादी हो चुकी है और सब सेटल हो गए हैं, तो अब वो अपना शौक पूरा कर रही हैं, खासकर अपनी छत पर टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) करते हुए। इस काम में उनके पति और बच्चे सहयोग करते हैं। रेणु का कहना है कि उन्होंने गार्डनिंग की कोई खास ट्रेनिंग नहीं ली हैं, हां, मगर उन्होंने NBRI (CSIR-National Botanical Research Institute) से 3-4 दिन का प्रशिक्षण लिया है। बाकी वो काम करते-करते ही सीख रही हैं।
छत पर कौन-कौन से पौधे लगाए हैं? (Which plants are planted on the rooftop?)
टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) करने वालों के लिए रेणु और प्रदीप अग्रवाल का ये टेरेस गार्डन एक बेहतीरन उदाहरण हो सकता है, क्योंकि इन्होंने न सिर्फ़ करीने से ढेर सारे गमलों को सजा रखा है, बल्कि पौधों के हिसाब से सेक्शन भी बनाए हुए हैं। रेणु बताती हैं कि छत पर पहले तो उन्होंने सेक्शन बना रखे हैं, जैसे छाया वाली जगह पर पेरेनियल प्लांट्स रखे है, जो बारहमासी होते हैं, फूलों के पौधों को धूप में रखा है, एक सेक्शन है जिसमें सब्ज़ियां लगा रखी हैं। वो कहती हैं कि उन्हें पौधों का बहुत शौक है इसलिए वो हर तरह के पौधे लगाना चाहती हैं।
टेरेस गार्डन के प्रति बदलती सोच (Changing thinking towards terrace gardening)
रेणु के पति प्रदीप अग्रवाल सर्विस से रिटायर हो चुके हैं। उनका कहना है कि शुरू में उन्हें बागवानी से कोई खास लगाव नहीं था, मगर जब उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी को पौधों से बहुत प्यार है तो उनके काम में हाथ बंटाने लगे। गमले को इधर-उधर रखने और मिट्टी भरने के साथ ही नर्सरी से पौधे लाने तक में उनका साथ देने लगे। इस तरह से धीरे-धीरे उनकी भी इसमें दिलचस्पी बढ़ने लगी और अब वो पूरे मन से टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) करते हैं।
जिन लोगों को डर रहता है कि छत पर इतने पौधे कैसे लगा सकते हैं, उन्हें प्रदीप कहते हैं कि आमतौर पर हम सब घर ऐसा बनवाते हैं कि उसके ऊपर एक फ्लोर और बन जाएगा, तो जब एक फ्लोर और बनवाएंगे तो वहां भी तो ढेर सारा सामान रखेंगे न। बस टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) के समय इस बात का ध्यान रखना होता है कि कहां बीम हैं, कहां भार कम और कहां ज़्यादा देना है।
साथ ही गमले की मिट्टी ऐसे बनाएं कि उसका वज़न ज़्यादा न हो। जहां तक पानी की बात है, तो आमतौर पर गमले के पानी से छत में कोई रिसाव नहीं होता है। वैसे भी आजकल तो सीलन आदि के लिए कई तरह के उपचार भी हैं, तो आप वो करवा सकते हैं। प्रदीप बताते हैं कि उन्हें भी इस तरह का डर था पहले, तो उन्होंने घर बनाने वाले आर्किटेक्ट को बुलाकर ही पूछ लिया कि क्या टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) बनाई जा सकती है, तो उसने कहा कि आप आराम से 1000 गमले रख सकते हैं।
आस-पास में कैसा परिवर्तन हुआ? (What changes have happened in the surroundings?)
रेणु अग्रवाल कहती हैं कि अगल-बगल से लोग देखते हैं, तो बोलते हैं कि आपका गार्डन बहुत सुंदर है, हमें भी कटिंग दीजिएगा। तो बहुत से लोगों उन्होंने कटिंग दी है जिससे धीरे-धीरे आस-पास के कुछ और लोग टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) करने लगे हैं।
वो बताती हैं कि बरसात में बहुत कटिंग निकलती हैं, जिसे वो आस-पास बांट देती हैं, इससे होता ये है कि मामूली खर्च में दूसरे लोग भी पौधे लगा लेते हैं और आपके आस-पास हरियाली बढ़ती है। आगे वो बताती हैं कि अगर कोई इससे पैसा कमाना चाहे और उसके पास जगह है तो इन कटिंग से पौधे विकसित करके बेच सकता है। इस तरह घर बैठे पैसे कमाने का ये एक अच्छा ज़रिया बन सकता है।
छत पर खेती करते समय किन बातों का रखें ध्यान? (What things should be kept in mind while doing farming on the rooftop?)
रेणु बताती हैं कि पौधों के सही विकास के लिए सबसे ज़रूरी है सही मिट्टी, खाद और धूप। टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) में मिट्टी तैयार करने के लिए उसमें वर्मी कंपोस्ट और बालू मिलाना अच्छा रहता है क्योंकि इससे मिट्टी भूरभूरी हो जाती है और भूरभूरी मिट्टी में पौधों का विकास अच्छा होता है। वो खाद भी घर में ही बनाती हैं। रेणु कहती हैं कि किचन के कचरे को रिसाइकिल करके वो उसकी खाद बनाती हैं। खाद और मिट्टी के साथ ही पौधों की अच्छी ग्रोथ के लिए पानी की निकासी का भी उचित प्रबंध होना चाहिए। इसके अलावा समय-समय पर सड़े-गले पत्तों को निकालना और खरपतवारों को साफ करना भी ज़रूरी है।
सीजन के हिसाब से लगाए पौधे (Plant trees according to the season)
प्रदीप बताते हैं कि पौधे दो ही वजहों से खराब होते हैं गलत मिट्टी और पानी की मात्रा से। अगर पानी कम या ज़्यादा हो जाए तो पौधे मरने लगते हैं। इसके अलावा उन्हें मौसम के हिसाब से लगाना चाहिए। हर सीज़न में हर पौधा नहीं लग सकता और ये बात उन्हें बहुत दिनों बात समझ आई। वो कहते हैं कि हर पौधे का स्वभाव अलग-अलग होता है, मगर आधारभूत चीज़ें एक जैसी ही होती हैं जैसे भूरभूरी मिट्टी, सही मात्रा में पानी, खाद और धूप देना।
घर के काम के साथ कैसे मैनेज करती हैं बागवानी (How do you manage gardening along with housework?)
रेणु बताती हैं कि सुबह उठकर वो छत का एक चक्कर लगाती हैं, फिर जाकर घर के काम निपटाती हैं। उसके बाद दोपहर में पौधों को पानी देती हूं और कुछ देर इनके पास बैठती हैं। शाम को एक बार फिर छत पर आती हैं और बैठती हैं, इसी दौरान वो देखती हैं कहां पत्ते पीले हो रहे हैं, किसमें पानी डालना है, किसमें खाद डालना है, कब कटिंग करनी है आदि।
पेंशन से परिवर्तन (Changes from pension)
रेणु कहती हैं कि बागवानी उनका पैशन रहा है, खासकर टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening), इसलिए ये काम उन्हें कभी बोझ नहीं लगा। अगर कभी समय की कमी के चलते वो खुद पौधों को पानी नहीं डाल पाती तो अपनी हेल्पर से डलवा लेती हैं, मगर अपने पौधों को कभी भूलती नहीं हैं।
चाहकर भी रोक नहीं पाते पौधे खरीदने से (Even if I want to, I can’t stop myself from buying plants)
प्रदीप बताते हैं कि हर बार छत पर पत्नी के साथ टहलते वक्त वो बात करते हैं कि छत पर अब गमले रखने की जगह नहीं है, मगर जब भी नर्सरी में जाते हैं तो वो लोग खुद को नए पौधे खरीदने से रोक नहीं पाते हैं, उन्हें लगता है कि अरे! ये वाला पौधा तो उनके पास नहीं है और फिर 6-7 पौधे खरीद लाते हैं और उन्हें टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) में एडजस्ट करते रहते हैं। प्रदीप बताते हैं कि बागवानी के मेहनत वाले काम अब उनसे नहीं होते तो महीने में एक मज़दूर बुलाकर वो सारे काम करवा लेते हैं।
फ्यूचर प्लान क्या है? (What is the future plan?)
रेणु अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में बताती हैं कि वो सोच रही हैं कि बच्चों की छुट्टियों में उन्हें बुलाकर उनके हाथों से पौधे लगवाएं। इससे उनकी छुट्टियों का सही इस्तेमाल हो जाएगा और वो ज़्यादा टीवी देखने से भी बच जाएंगे। इस तरह से करने पर बच्चों का प्रकृति से लगाव बढ़ेगा और पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ेगी।
रिटायर लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प (Best option for retired people)
प्रदीप अग्रवाल का मानना है कि ऐसे लोग जो रिटायर होने के बाद सोचते हैं कि अब क्या करूं, मेरे पास तो कोई काम ही नहीं है, बस पूरे दिन खाना और सोना ही है, तो उन लोगों के लिए टेरेस गार्डनिंग (Terrace Gardening) सबसे अच्छा विकल्प है। क्योंकि पौधे आपसे बातें करते हैं, तो खुद के लगाए पौधे को अपने सामने बड़ा होते देखना का अलग ही आनंद आएगा।
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