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अगर आपमें कुछ कर गुज़रने की चाह और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो एक दिन सफलता आपके कदम ज़रूर चूमती है। इसकी जीती-जागती मिसाल हैं डॉ. विष्णु डी. राजपूत। उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले के एक छोटे से गांव में जन्में डॉ. विष्णु आज Southern Federal University, Russia में Agricultural Scientist हैं। उनका नाम दुनिया के टॉप 2% वैज्ञानिकों में आता है और नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उन्हें 10-12 साल से भी अधिक का अनुभव है। उन्होंने कृषि में नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) का उपयोग करके कई नई रिसर्च की हैं, जो फ़सलों की गुणवत्ता और मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो रही हैं।
इतना ही नहीं, बायलॉजिकल साइंस और प्लांट साइंस की बात करें तो इनका नाम दुनिया के 0.5% वैज्ञानिकों में आता है। Russian Federation में एनवॉरमेंटल साइंस में सेकंड टॉप साइंटिस्ट हैं। एक किसान के बेटे के लिए ये उपलब्धि वाकई बहुत बड़ी है। आज वो देश-विदेश में न सिर्फ़ अपने परिवार, बल्कि देश का भी नाम रौशन कर रहे हैं। किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से बातचीत में रूस के एग्रीकल्चर सिस्टम, मिट्टी, खेती से जुड़े रिसर्च, नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) आधारित समाधानों और sustainable farming practices पर विस्तार से चर्चा की।
दृढ़ निश्चय से मिलती है सफलता
डॉ. विष्णु डी. राजपूत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकलकर रूस के प्रतिष्ठित संस्थान में टॉप के साइंटिस्ट बने, मगर उनका यह सफर आसान नहीं था। डॉ. विष्णु कहते हैं कि हर कोई किसी सफल इंसान को देखकर उसके जैसा बनना चाहता है, मगर किसी को उस सफलता के पीछे के संघर्ष की जानकारी नहीं होती है। एक किसान पिता के बेटे होने के नाते उन्हें भी बहुत संघर्ष करना पड़ा यहां तक पहुंचने के लिए।
वो बताते हैं कि जब उन्होंने बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई शुरू की तो लोगों ने कहा कि खेती-किसानी के बारे में पढ़ने की क्या ज़रूरत है। पिता जी भी तो खेती कर रहे हैं, तो इस बारे में पढ़ना क्यों। इस पढ़ाई के बाद नौकरी नहीं मिलती है। इस तरह की तमाम बातें लोग करते थे, मगर उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और डिग्री करने के बाद मास्टर्स भी किया। MSc उन्होंने प्लांट बायोटेक्नोलॉजी (CSA) से किया।
उस वक्त इसमें जॉब के बहुत ज़्यादा विकल्प नहीं थे, मगर उनका मानना है कि दृढ़ निश्चय से खराब निर्णय को भी अच्छा बनाया जा सकता है। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने वैज्ञानिक रिसर्च में रुचि विकसित की और आगे चलकर नैनोटेक्नोलॉजी की दिशा में भी काम शुरू किया। उन्होंने Chinese Academy of Science से पीएचडी की, जहां उनके कई रिसर्च प्रोजेक्ट्स में नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) का प्रयोग हुआ, ख़ासकर प्लांट ग्रोथ और मिट्टी की गुणवत्ता से जुड़े क्षेत्रों में। आज जिस मुकाम पर वे हैं, उसकी बुनियाद इन्हीं संघर्षों और रिसर्च के अनुभवों से बनी है। डॉ. विष्णु का मानना है कि कुछ भी बड़ा हासिल करने के लिए अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलना ज़रूरी होता है।
लंबे संघर्ष के बाद सफलता
डॉ. विष्णु बताते हैं कि चीन में रिसर्च के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति लगभग शून्य थी। कई बार तो उन्हें अपने पिता जी से पैसे मांगने पड़ते थे। करीब 6-7 साल तक उन्होंने काफी संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। फिर जब वो रूस गए तो 2018 से 2025 तक का समय उनके लिए बहुत अच्छा रहा। चीन में उन्होंने लगभग 20 यूनिवर्सिटी में प्रेज़ेंटेशन दिए, जहां उन्हें काफी सराहना मिली। इसी दौरान उन्होंने नैनोटेक्नोलॉजी से जुड़े कई रिसर्च पर भी काम किया, जो खेती और प्लांट साइंस के क्षेत्र में नए आयाम जोड़ने वाले थे। 2020 से अब तक उन्हें Russian Federation की तरफ से हर साल “हाईली क्वालिफाइड स्पेशलिस्ट” का सर्टिफिकेट मिलता आ रहा है।
इसके अलावा यूनिवर्सिटी की ओर से भी हर साल एप्रीसिएशन लेटर मिलता है, जो उनके काम को मान्यता देता है। जाहिर है कि यह उपलब्धियां किसी भी वैज्ञानिक के लिए बहुत बड़ी होती हैं। डॉ. विष्णु के पास इस समय 18 रिसर्च प्रोजेक्ट्स हैं, जिनमें कुछ प्रोजेक्ट्स में एग्रीकल्चर में नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) के प्रयोग पर भी फोकस है। वो BRICS का एक प्रोजेक्ट पूरा कर चुके हैं और इंटरनेशनल लेवल पर 3 प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर चुके हैं। उनका कहना है कि जब समय विपरित हो तब ज़्यादा एफर्ड की ज़रूरत होती है, रिजल्ट बाद में मिलता है।
कैसे पढ़ रहे हैं वो ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं?
डॉ. विष्णु का मानना है कि यह ज़रूरी नहीं है कि आप सिर्फ़ टॉप इंस्टीट्यूट से पढ़ाई करके ही साइंटिस्ट बन सकते हैं। उन्होंने खुद यह साबित किया है कि आप कहां से पढ़ रहे हैं, उससे ज़्यादा मायने यह रखता है कि आप पढ़ाई कैसे कर रहे हैं, उसमें आपकी मेहनत और समझ कितनी है। किसी साधारण संस्थान से पढ़कर भी आप विदेश में रिसर्च कर सकते हैं, अच्छी नौकरी पा सकते हैं, या वहां से सीखकर अपने देश में कुछ बड़ा योगदान दे सकते हैं। डॉ. विष्णु बताते हैं कि हर देश में स्टूडेंट्स के लिए तीन स्तरों पर एंट्री होती है — बीएससी, एमएससी और पीएचडी। इन सभी स्तरों पर स्कॉलरशिप की सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं।
वो कहते हैं कि गांव और छोटे शहरों के युवा, जिन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती, उनके लिए भी अवसरों की कोई कमी नहीं है। ज़रूरी नहीं कि आप सिर्फ़ इंग्लिश स्पीकिंग कंट्री (जैसे अमेरिका) में जाएं। आप दुबई, रूस या जापान जैसे देशों में भी जा सकते हैं, जहां पढ़ाई के साथ भाषा सिखाने की भी व्यवस्था होती है। रूस जैसे देशों में छात्रों को पहले भाषा सिखाई जाती है और फिर बीएससी जैसे कोर्स कराए जाते हैं।
डॉ. विष्णु खुद नैनोटेक्नोलॉजी जैसे जटिल विषय में काम कर रहे हैं और उन्होंने यह सफर साधारण शुरुआत से ही तय किया है। उनका मानना है कि अगर किसी स्टूडेंट में शोध और सीखने का जुनून है, तो वह किसी भी जगह से शुरुआत कर सकता है और नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) जैसे एडवांस फील्ड में भी बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है।
नैनोटेक्नोलॉजी और मिट्टी पर रिसर्च
डॉ. विष्णु 10 साल से नैनोटेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं। वो बताते हैं कि किसी भी मटीरियल को केमिकली, बायोलॉजिकली एकदम बारीक करके नैनो स्केल पर ले जाने की प्रक्रिया को ही नैनोटेक्नोलॉजी कहा जाता है, इसमें उस मटीरियल की प्रॉपर्टी बदल जाती है। नैनो मटीरियल का खेती में बहुत इस्तेमाल हुआ है। अपनी रिसर्च के दौरान उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि कोई नैनो मटीरियल पर्यावरण या मिट्टी में जाकर उसे कैसे नुक़सान पहुंचा सकता है।
साथ ही अगर ये किसी पौधे की जड़ में जाता है या उसका छिड़काव किया जाता है तो ये कैसे काम करता है, ये जानने की कोशिश की। उनका कहना है कि नैनोटेक्नोलॉजी कैसे काम करती है ये जानने का फ़ायदा ये होता है कि मान लो ये पता चल जाए कि ये पत्ते में जाने से किसी पौधे को ज़्यादा फ़ायदा हो रहा है तो उस हिसाब से उसे इस्तेमाल किया जाएगा।
खेती में बायोचार का इस्तेमाल
बायोचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कृषि अपशिष्ट को एक बंद कमरे या मशीन में हाई टेम्प्रेचर यानी 400-700 डिग्री पर कम समय के लिए जलाया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन नहीं होती, इसलिए अपशिष्ट सीधे कार्बन में बदल जाता है। इससे न केवल प्रदूषण नहीं होता, बल्कि जो कार्बन बनता है, उसे खेती में खाद की तरह इस्तेमाल किया जाता है। बायोचार में पोरोसिटी होती है और इसमें माइक्रोब्स भी मौजूद होते हैं, जो फ़सलों की ग्रोथ के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं। यह अपशिष्ट को विघटित करने का काम करता है, यानी कचरा प्रबंधन में भी मददगार है।
इसके इस्तेमाल से मिट्टी को उपजाऊ बनाया जा सकता है और लंबे समय तक उसकी गुणवत्ता को बनाए रखा जा सकता है। आजकल वैज्ञानिक इस क्षेत्र में नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) के साथ मिलाकर बायोचार को और अधिक प्रभावी बनाने पर काम कर रहे हैं। कुछ रिसर्च में यह भी देखा गया है कि नैनोटेक्नोलॉजी आधारित बायोचार से मिट्टी में पोषक तत्वों की पकड़ और जल धारण क्षमता दोनों बेहतर होती है, जिससे फ़सलों की उत्पादकता बढ़ती है।
प्रदूषित मिट्टी को कैसे बनाएं उर्वर
डॉ. विष्णु कहते हैं कि 1960 की हरित क्रांति के बाद से ही रासायनिक खादों का इस्तेमाल लगातार बढ़ता गया है। अब किसान साल में तीन बार खेतों में केमिकल खाद डालते हैं, जिससे मिट्टी में इनका जमाव होता जाता है। इसका सीधा असर मिट्टी के सूक्ष्म जीवों पर पड़ता है, जो पहले मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने का काम करते थे। इन सूक्ष्म जीवों के कम होने से मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होने लगती है। डॉ. विष्णु बताते हैं कि मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता को दोबारा पाने के लिए बायोचार, नैनो बायोचार और नैनो मटीरियल जैसे विकल्पों को अपनाया जा सकता है।
बायोचार मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्वों को अवशोषित करता है और मिट्टी की संरचना को सुधारता है। आजकल नैनोटेक्नोलॉजी के प्रयोग से तैयार किए गए बायोचार और अन्य समाधानों की मदद से मिट्टी की गुणवत्ता को पहले से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से बहाल किया जा रहा है। ये तकनीकें मिट्टी को फिर से जीवित बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभा रही हैं।
किसान कैसे करें मिट्टी में सुधार?
डॉ. विष्णु का मानना है कि जिस तरह से रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो 10 साल बाद मिट्टी की अपनी कोई क्षमता नहीं रहेगी। जितना खाद डाला जाएगा बस उसी हिसाब से फ़सल होगी। अब किसानों के सामने चुनौती ये है कि वो एकदम से रासायनिक खाद डालना बंद नहीं कर सकते, क्योंकि इससे उपज का नुकासन होगा। ऐसे उन्हें धीरे-धीरे रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करना होगा। भारत में एकदम से ऑर्गेनिक कृषि की तरफ जाना संभव नहीं है। इससे राष्ट्रीय उपज एकदम नीचे आ सकता है और भूखमरी की समस्या आ सकती है।
मगर धीरे-धीरे इस ओर जाने की कोशिश की जा सकती है। इसके लिए बड़े किसानों को चाहिए कि अपने ज़मीन का कुछ हिस्सा अलग रखकर उस में ऑर्गेनिक खेती करें। रासायन का इस्तेमाल लंबे समय तक नही किया जा सकता, तो उसका विकल्प ढूंढ़ना होगा। किसान चाहे तो राइज़ो बैक्टीरिया, ट्राईकोडर्मा का इस्तमाल करके खेती के अपशिष्ट को विघटित कर सकते हैं, इससे मिट्टी उपजाऊ बनती है। साथ ही, अब वैज्ञानिक नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे नैनो फॉर्म्युलेशंस भी तैयार कर रहे हैं जो बहुत ही कम मात्रा में इस्तेमाल होकर बेहतर परिणाम दे सकते हैं। ये समाधान मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाने और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
नैनो यूरिया और नैनो डीएपी बहुत पॉप्युलर नहीं हुए
नैनोटेक्नोलॉजी के बारे मे बातें तो बहुत हो रही है, मगर सच्चाई ये है कि किसान इस जल्दी अपनाना नहीं चाहते हैं। इस बारे में डॉ. विष्णु कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग इकोलॉजिकल रिजन के हिसाब से मटीरियल को स्टेंडराइज़्ड नहीं किया गया है। उनका कहना है कि नैनोटेक्नोलॉजी को ज़्यादा क्विक होना चाहिए, साथ इसे और फार्मर फ्रेंडली बनाने की ज़रूरत है।
नैनो केमकिल या फर्टिलाइज़र को फ़सल उगने के पहले या बाद में, कब डालना चाहिए ये बताना भी ज़रूरी है। वो कहते हैं कि हमारे देश की मिट्टी केमिकल इनपुट की वजह से लगातार प्रदूषित होती जा रही है यहां मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ सिर्फ़ 0.5 प्रतिशत ही है, जबकि रूस की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ 4-6 प्रतिशत तक है।
सुरक्षित कृषि की ज़रूरत
डॉ. विष्णु कहते हैं कि खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायनों का असर फ़सल में भी रहता है और वही फ़सल खाने पर वो इंसानों को बीमार कर रही है। दरअसल, जानकारी के अभाव में किसान निर्देशित मात्रा से अधिक रसायनों का इस्तेमाल कर देते हैं जिससे फ़सल जहरीले हो जाते हैं। उनका कहना है कि सुरक्षित कृषि को लाना ज़रूरी है ये काम सिर्फ़ पॉलिसी मेकर, साइंटिस्ट और सरकार ही मिलकर कर सकते हैं।
डॉ. विष्णु बताते हैं कि रूस की सरकार लंबे समय से मिट्टी के स्वास्थ्य सुधार पर ध्यान दे रही है और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है। आज जब दुनिया भर में स्वास्थ्य और पर्यावरण को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, तो वैज्ञानिक भी नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे सुरक्षित समाधान विकसित कर रहे हैं जो न केवल फ़सल की सुरक्षा सुनिश्चित करें, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी नुक़सान न पहुंचाएं। सुरक्षित कृषि की दिशा में यह तकनीक आने वाले समय में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।
प्रैक्टिकल रिसर्च की ज़रूरत
कृषि को बेहतर बनाने के लिए अब ज़रूरत है प्रैक्टिकल और फार्मर-फ्रेंडली रिसर्च की, न कि सिर्फ़ थ्योरी पर आधारित साधारण प्रयोगों की। डॉ. विष्णु कहते हैं कि भारत में ज़्यादातर फंड सिर्फ़ सामान्य रिसर्च पर खर्च होता है, जबकि बड़े स्तर पर ऐसा कोई रिसर्च नहीं हुआ है जिसने कृषि में बड़ा बदलाव लाया हो। सिंचाई की तकनीक तक इज़राइल से ली गई है और बीज भी विदेशों से मंगाए जा रहे हैं।
ऐसे में करोड़ों किसानों वाले इस देश को ऐसी तकनीकों की ज़रूरत है जो उनकी ज़मीन और ज़रूरतों के अनुसार काम करें। उनका कहना है कि नैनोटेक्नोलॉजी जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अगर प्रैक्टिकल स्तर पर किया जाए तो वह मिट्टी, पानी और फ़सलों की गुणवत्ता सुधारने में बहुत मददगार हो सकती है।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि भारत में अभी भी रिसर्च को पूरी स्वतंत्रता नहीं है। वैज्ञानिकों से शोध के बजाय प्रशासनिक काम ज़्यादा करवाए जाते हैं और राजनीतिक हस्तक्षेप भी काफी होता है। डॉ. विष्णु बताते हैं कि रूस में वैज्ञानिकों को अपने प्रयोग और रिसर्च पर काम करने की पूरी आज़ादी होती है, वहीं भारत में एग्रीकल्चर स्टूडेंट्स को नई रिसर्च करने की जगह पुरानी रिपोर्टों पर ही काम करने को कहा जाता है, जिससे कोई नया इनोवेशन नहीं निकल पाता। अगर भारत को कृषि में आत्मनिर्भर बनाना है, तो नैनोटेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में वास्तविक, व्यावहारिक और किसान केंद्रित रिसर्च को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है।
रूस और भारत के किसानों में अंतर
डॉ. विष्णु बताते हैं कि रूस और भारत के किसानों में सबसे बड़ा फर्क ज़मीन और संसाधनों को लेकर है। रूस में आबादी कम है, इसलिए वहां के किसानों के पास खेतों का रकबा काफी बड़ा होता है। इस वजह से वे बड़े पैमाने पर खेती करते हैं और खेती के हर स्तर पर आधुनिक और भारी मशीनों का इस्तेमाल करते हैं। वहां का किसान अपने आप में एक छोटी प्रोसेसिंग यूनिट जैसा होता है। मशीनों से ही खेत की बुवाई, सिंचाई और कटाई तक के सारे काम हो जाते हैं। इतना ही नहीं, वहां के किसान शिक्षित भी होते हैं, जिससे वे खेती में आधुनिक तकनीकों का भरपूर इस्तेमाल कर पाते हैं।
दूसरी ओर, भारत के अधिकतर किसानों के पास बहुत कम ज़मीन होती है और संसाधनों की भी कमी रहती है। यही कारण है कि तकनीक और नई खोजों का लाभ हर किसान तक नहीं पहुंच पाता। डॉ. विष्णु का मानना है कि भारत में भी अगर किसानों को समय पर जानकारी और ट्रेनिंग दी जाए, तो वे भी खेती में नैनोटेक्नोलॉजी जैसे उन्नत तकनीकी विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं।
इससे कम संसाधनों में भी बेहतर उत्पादन संभव हो सकता है। रूस जैसे देशों में पहले ही खेती में नैनो आधारित उर्वरक और स्मार्ट तकनीकों का उपयोग हो रहा है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर फ़सल की सेहत तक पर बेहतर असर पड़ता है। भारत को भी इस दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने की ज़रूरत है।
मीडिया को ट्रेंड बदलने की ज़रूरत
न्यूज़ चैनलों पर जो दिखता है आम जन मानस पर उसका गहरा असर होता है। ऐसे में जब खेती-किसानी से जुड़े लोगों और तकनीक के बारे में दिखाया जाएगा तो आम लोगों और किसानों में भी जागरुकता आएगी। डॉ. विष्णु कहते हैं कि रूस के नेशनल चैनल के पास हर दिन का स्लॉट है वो 5 मिनट से लेकर 30 मिनट तक का भी हो सकता है, जिसमें वो कृषि से संबंधित चीज़ें दिखाते हैं।
लैब में आते हैं और किस तरह का काम हो रहा है ये देखते हैं, रिसर्च कर रहे छात्रों का इंटरव्यू लेके हैं और चैनल पर दिखाते हैं। इससे होता ये है कि लोग इनकरेज होते हैं और इस फील्ड में आने के लिए प्रोत्साहित होते हैं साथ ही किसानों को नई तकनीक के बारे में जानकारी मिलती है। मगर भारत में इस तरह की स्टोरी की बजाय क्राइम स्टोरी को प्राथमिकता दी जाती है, इस ट्रेंड को बदलने की ज़रूरत है।
छात्रों को संदेश
एग्रीकल्चर का मतलब सिर्फ़ खेत में फ़सल उगाना ही नहीं है। इसकी पढ़ाई करके आप रिसर्च के क्षेत्र में भी करियर बना सकते हैं, साथ ही कई बड़े संस्थान में नौकरी मिल सकती है। इस बारे में डॉ. विष्णु कहते हैं कि जो भी छात्र कृषि में पढ़ाई कर रहे हैं, तो जिस यूनिवर्सिटी में भी वो पढ़ा रहे हैं उससे बाहर जाकर सोचें।
दूसरे देशों में जाकर सीखें, कुछ हटकर करना चाहते हैं तो ज़्यादा बड़ा सोचे, ज़रूरी नहीं कि टॉप यूनिवर्सिटी में एडिमशन हुआ हो तभी आप कुछ कर सकते हैं। डिजिटली दुनिया के बड़े-बड़े साइंटिस्टों से जुड़ने की कोशिश करिए, कहीं जाते हैं तो अपने सवाल बिना झिझक के पूछिए चाहे जो भी भाषा आपको आती हो उसमें पूछिए, तभी आप आगे बढ़ सकते हैं।
किसानों को संदेश
डॉ. विष्णु किसानों से कहते है कि टिकाउ/स्थायी कृषि की तरफ लौटना ही पड़ेगा। जिस खेत से हम भोजन ले रहे हैं, उस खेत की सुरक्षा भी तो ज़रूरी है। इसके लिए कीटनाशकों और फर्टिलाइज़र की निर्देशित मात्रा से ज़्यादा का इस्तेमाल न करें। कृषि अपषिष्ट को जलाए नहीं, छोटे किसान कैश क्रॉप लगाए। टिकाऊ उत्पादन के लिए मिट्टी की सेहत का ध्यान रखना ज़रूरी है, इसके लिए धीरे-धीरे रसायनों के विकल्प के तौर पर ऑर्गेनिक चीज़ो का इस्तेमाल शुरू कर दीजिए।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।